नालों-खालों में अतिक्रमण से रुके नदियों के रास्ते

नैनीताल हाईकोर्ट ने नाला-खालों पर अतिक्रमण के खिलाफ दायर याचिका पर सरकार व प्रशासन से जवाब मांगा। 

By Varsha Singh

On: Wednesday 15 May 2019
 
नाले में तब्दील हो चुकी है उत्तराखंड की रिस्पना नदी । Photo : Varsha Singh

विकास की मिसाल के रूप में बहुमंजिला इमारतें तैयार करते हुए हम सिर्फ नदियों का घर नहीं छीन रहे, बल्कि नदियों तक पानी लाने वाली छोटी-छोटी जल धाराओं, नाला-खाला और ढांगों को पाटकर हम पानी के हर रास्ते पर कब्ज़ा कर रहे हैं। जिसका खामियाजा हमें ही उठाना पड़ेगा। उत्तराखंड में वर्ष 2013 में आई केदारनाथ आपदा के सबक भी यही थे।

रिस्पना और बिंदाल देहरादून की वो नदियां हैं, जो कभी साल भर बहा करती थीं। लेकिन अब बरसात में ही इन नदियों में पानी दिखता है। इन नदियों में पानी भरने की अहम जिम्मेदारी नाला-खाला और ढांगों की भी हुआ करती थी। जब पानी को बहा ले जाने वाले ये नाला-खाला और ढांग ही नहीं बचे, तो नदियों में पानी कहां से आएगा।

नैनीताल हाईकोर्ट ने देहरादून के राजपुर क्षेत्र में नाला-खाला और ढांगों पर अतिक्रमण को लेकर दायर की जनहित याचिका पर सुनवाई करते हुए कहा कि देश में कम ही ऐसे राज्य हैं. जहां हरियाली बची हुई है। हम उत्तराखंड के प्राकृतिक संसाधन को इस तरह बर्बाद नहीं होने दे सकते। कोर्ट ने इस मामले में केंद्र, राज्य सरकार, एमडीडीए और जिलाधिकारी देहरादून को नोटिस जारी कर तीन हफ्ते में जवाब मांगा है।

देहरादून के राजपुर क्षेत्र में रहने वाली पार्षद उर्मिला थापा का कहना है कि नाला-खाला समेत ड्रैनेज सिस्टम पर भू- माफिया अतिक्रमण कर रहे हैं। कॉलोनियों और सोसाइटी के ड्रैनेज सिस्टम को प्रशासन की मदद से बर्बाद किया जा रहा है। कोई हमारी सुनने को तैयार नहीं है। हम शिकायत लेकर थाने जाते हैं, तो लौटा दिये जाते हैं, नगर निगम जाते हैं, एमडीडीए जाते हैं, तो वे उन्हें आवासीय घोषित कर देते हैं। उर्मिला कहती हैं कि ये जलमग्न जमीन है, जिस पर बहुत बड़ा घपला चल रहा है। उनका कहना है कि इस मसले पर जब कहीं सुनवाई नहीं हुई तो मैंने अदालत का सहारा लिया। इन्हीं ड्रैनेज सिस्टम से बरसात में हमारे घरों में पानी नहीं भरता। लेकिन प्रॉपर्टी डीलर इस बरसों पुराने ड्रैनेज सिस्टम को बंद करते जा रहे हैं।

राजपुर रोड का पूरा इलाका देहरादून और मसूरी के बीच बसा है। 1989 में वन एवं पर्यावरण मंत्रालय में दून घाटी को इको सेंसेटिव जोन घोषित किया था। लेकिन इस बात का भी ख्याल नहीं रखा जा रहा। नैनीताल हाईकोर्ट में याचिका कर्ता ने दस साल पहले की और अब के समय की सैटेलाइट तस्वीरें दिखाईं। उन्होंने कहा कि पहले जो नाले इतने बड़े हुआ करते थे, उन्हें पाटा जा रहा है। भू-माफिया जंगल पर कब्जा कर रहे हैं। प्रशासन सड़क पर अतिक्रमण हटाने का कार्य करता है, इन पर से अतिक्रमण क्यों नहीं हटाया जाता।

याचिका कर्ता के वकील अभिजय नेगी का कहना है कि रिस्पना और बिंदाल नदियों पर अतिक्रमण की बात तो की जा रही है लेकिन इन नाला-खाला और ढांगों के अतिक्रमण को नज़र अंदाज़ किया जा रहा है जो आगे चलकर बेहद खतरनाक साबित हो सकता है। स्थिति की गंभीरता समझाने के लिए वे चेन्नई की अड्यार नदी में वर्ष 2015 में बाढ़ का उदाहरण देते हैं। जिसने चेन्नई में एक तरह की तबाही ला दी थी। अभिजय कहते हैं कि नाला-खाला और ढांग पर अतिक्रमण को लेकर ये जनहित याचिका डाली गई थी। ये ड्रैनेज का ज़रिया हैं, बाढ़ रोकते हैं, साथ ही प्राकृतिक फायर लाइन भी हैं।

अदालत में याचिकाकर्ता का पक्ष रखते हुए अभिजय ने कहा कि नाला-खाला और ढांगों को भरा जा रहा है, फिर इस पर निर्माण कार्य किया जाएगा। जबकि ये राजपुर रोड और उससे सटे इलाकों से पानी को बाहर ले जाते हैं। इन्हीं नाला-खाला के जरिये रिस्पना-बिंदाल नदियों में पानी आता था। मानसून में यही नदियां दून घाटी से पानी बाहर ले जाती हैं। यदि हम पानी की इस व्यवस्था को तोड़ेंगे तो ये पानी कहर बरपा सकता है।

फिर उत्तराखंड सरकार रिस्पना पुनर्जीवन अभियान चला रही है। जो कभी बारहमासी नदी हुआ करती थी, और अब बरसात में ही दिखाई पड़ती है। मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत ने रिस्पना नदी को उसका पुराना रूप लौटाने के लिए चलाए गए इस अभियान को अपना ड्रीम प्रोजेक्ट कहा है। इन नदियों को बचाना है तो नाला-खाला, ढांगों जैसे उनके साथियों को भी रक्षा करनी होगी। ऊंचे पहाड़ों में बांधों के ज़रिये, घाटियों में अतिक्रमण के ज़रिये और मैदानों में संक्रमण के ज़रिये नदियां संकट के दौर से गुज़र रही हैं।

Subscribe to our daily hindi newsletter