फ्री पब्लिक ट्रांसपोर्ट: लग्जमबर्ग से क्या सीख सकती है दिल्ली

दिल्ली से दोगुने आकार के देश लग्जमबर्ग में इस महीने से सभी सावर्जनिक परिवहन सेवाएं मुफ्त कर दी गई हैं

By Rajit Sengupta

On: Thursday 05 March 2020
 
लग्जमबर्ग में बस, ट्रेन और ट्राम में सफर करना फ्री कर दिया गया है।

यूरोपीय संघ में सबसे छोटे देश लक्जमबर्ग में दिल्ली के जैसी ही समस्याएं हैं, जिसमें महंगे होते घर सबसे बड़ी समस्या है। तकरीबन 20 लाख लोग रोजाना पड़ोसी देश फ्रांस, बेल्जियम और जर्मनी से यात्रा करके यहां काम करने आते हैं। इतना ही नहीं, यूरोपीय संघ में आबादी के अनुपात में सबसे ज्यादा कारों की संख्या लक्जमबर्ग में ही है।

यूरोपियन कमीशन की स्टैटिस्टिकल विंग यूरोस्टैट के मुताबिक, 2017 में यहां पर प्रति 1000 लोगों पर 670 कारें थीं। नेविगेशन कंपनी टॉमटॉम के 2020 ट्रैफिक इंडेक्स के मुताबिक इस देश की राजधानी, जिसका नाम भी लक्जमबर्ग ही है, को दुनिया का सबसे भीड़भरा शहर कहा जाता है। इंडेक्स में ये भी बताया गया कि 2020 में शहर में गाड़ी चलाने वाले लोगों ने ट्रैफिक में 163 घंटे गंवाए। 2018 में ट्रैफिक में फंसने पर लोगों के 149 घंटे बर्बाद हुए थे।

हैरानी की बात ये है कि लक्जमबर्ग के यातायात मंत्री और उप प्रधानमंत्री फ्रैंकोइस बॉस्च ने कहा है कि यह पहल 'एक जरूरी सामाजिक कदम है', जिससे ये साफ होता है कि यह कदम पर्यावरण को सुधरने के लिए या फिर ट्रैफिक की समस्या को दूर करने के लिए नहीं उठाया गया है।

परिवहन और सामाजिक कार्य मंत्रालय की जनसंपर्क अधिकारी ने बताया कि यह प्रोजेक्ट प्रमुख रूप से एक सामाजिक कदम है, जिसके दो उद्देश्य हैं। इसका पहला उद्देश्य है, कम आय वाले लोगों की जेब में ज्यादा पैसा बचेगा और दूसरी तरफ इसका भार वो लोग उठाएंगे जो साधन संपन्न हैं, क्योंकि यह पहल आयकरदाताओं द्वारा फंड की जाएगी।

उन्होंने ये भी बताया कि टिकट की बिक्री से सालाना 41 मिलियन यूरो (तकरीबन 44 मिलियन डॉलर) की आय होती है जो कि देश के सार्वजनिक यातायात के कुल खर्च का 8 फीसदी है। इससे राजस्व में जो कमी आएगी, राष्ट्रीय बजट में इसका ध्यान रखा जाएगा और टैक्स के जरिए इसकी फंडिंग की जाएगी।

इस घोषणा के पीछे बड़ी योजनाएं और इन्वेस्टमेंट तैयार हैं, जिनके दम पर देश में सार्वजनिक यातायात का पूरा ढांचा सुधर गया है। 2018 में सरकार ने 20 साल से कम उम्र के सभी लोगों के लिए सार्वजानिक यातायात मुफ्त कर दिया था।

इसके कुछ समय बाद ही लक्जमबर्ग ने सस्टेनेबल मोबिलिटी प्लान 2.0 लॉन्च किया। इसका उद्देश्य था, व्यस्त समय में भीड़भाड़ को कम करना और 2017 के मुकाबले 2025 तक सार्वजनिक यातायात से सफर करने वाले लोगों की संख्या को 20 फीसदी बढ़ाना। अब इस योजना के तहत ट्रेनों में फर्स्ट क्लास की टिकट को छोड़कर सभी टिकट्स ख़त्म कर दिए गए हैं।

कहां चूकती है दिल्ली

दिल्ली सरकार ने बीते अक्टूबर ऐसी ही एक पहल के तहत महिलाओं के लिए बसों में सफर मुफ्त कर दिया। टॉमटॉम के सर्वे में आठवें सबसे भीड़भाड़ भरे शहर दिल्ली में इस पहल का अनुभव अभी तक मिश्रित रहा है।

एक तरफ जहां इस स्कीम से महिला यात्रियों की संख्या बढ़ी है, वहीं इससे दिल्ली ट्रांसपोर्ट कॉर्पोरेशन (डीटीसी) को बड़ा आर्थिक नुकसान उठाना पड़ रहा है।

डीटीसी के प्रवक्ता रविंदर एस मिन्हास ने बताया कि इस स्कीम की शुरुआत में डीटीसी के कुल यात्रियों में 30 फीसदी (50 लाख) हिस्सेदारी महिलाओं की थी, जो अब तक बढ़कर 45 फीसदी (80 लाख) भी नहीं हुई है।

दिल्ली सरकार प्रत्येक महिला सवारी के लिए बस ऑपरेटर को 10 रुपए देती है। हैरानी की बात यह है कि यह राशि एसी और नॉन-एसी दोनों तरह की बसों के लिए बराबर है और महिला द्वारा कितना सफर किया है, इससे भी इस राशि पर कोई फर्क नहीं पड़ता है। आने वाले समय में सरकार इस स्कीम को छात्रों और वरिष्ठ नागरिकों तक विस्तार देने की योजना बना रही है। यह योजना सरकार को फायदे से ज्यादा नुकसान पहुंचा सकती है क्योंकि डीटीसी के पास बसें भी कम हैं और वह पहले से ही घाटे में है।

डीटीसी के पास फरवरी में पहली बार अब तक की सबसे ज्यादा 6,233 बसें थीं। 2001 में सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि शहर को 10 हजार बसों की जरूरत है।

दिल्ली के 2021 के मास्टरप्लान के मुताबिक बसों की कुल संख्या 15,000 होनी चाहिए। अप्रैल, 2015 से मार्च, 2016 के बीच केंद्र सरकार द्वारा कराए गए राज्य सड़क परिवहन उपक्रमों के प्रदर्शन के रिव्यू में सामने आया कि एक दूसरी समस्या ये है कि एक दिन में होने वाली कुल बस ट्रिप्स में से तकरीबन 15 फीसदी ट्रिप्स बसों के खराब रखरखाव के चलते कैंसिल हो जाती हैं।

मेट्रो में सफर महंगा

वहीं, इस दौरान दिल्ली मेट्रो अधिकतर लोगों के लिए महंगी बनी हुई है। गैर-लाभकारी संस्था सेंटर फॉर साइंस एंड एनवायरनमेंट के वायु प्रदूषण और स्वच्छ परिवहन प्रोग्राम की प्रमुख अनुमिता रॉयचौधरी ने कहा कि हमारे अध्ययनों से पता लगा है कि दिल्ली के लोगों की आय का विवरण बताता है कि अपनी आय के अनुपात में परिवहन पर खर्च करने के मामले में कम से कम 34 फीसदी लोग बस का न्यूनतम किराया भी नहीं दे सकते हैं।

दिल्ली में 32 किमी तक की यात्रा करने के लिए मेट्रो रेल की बजाय टू-व्हीलर से यात्रा करना सस्ता पड़ेगा। 7 किमी तक के सफर के लिए कार भी मेट्रो से बेहतर साधन हैं। रॉयचौधरी ने कहा कि 2021 मास्टरप्लान के तहत दिल्ली ने महत्वाकांक्षी लक्ष्य निर्धारित किए हैं। इसके लिए दिल्ली को पब्लिक ट्रांसपोर्ट सिस्टम को दुरुस्त करने के लिए स्थायी इन्वेस्टमेंट की जरूरत पड़ेगी और इस बारे में दिल्ली लक्जमबर्ग से एक-दो चीजें सीख सकती है।

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