श्रमिकों पर तीन राज्य की सरकारें हुई मेहरबान, राहत अभी कागजों पर

राजस्थान, तमिलनाडु और दिल्ली की राज्य सरकारों द्वारा श्रमिकों की सामाजिक सुरक्षा को सुनिश्चित करने की कोशिश  

By Anil Ashwani Sharma

On: Friday 28 April 2023
 

कामगारों पर तीन राज्य सरकारें- राजस्थान, दिल्ली और तमिलनाडु मेहरबान हुईं हैं। आननफानन में इनके लिए तमाम सामाजिक सुरक्षा योजनाओं की घोषणा की गई है। राजस्थान सरकार गिग वर्कर्स (ऑनलाइन सामान पहुंचाने वाले वर्कर्स) के लिए गिग वर्कर्स विधेयक, 2023 लेकर आई है और उसका मसविदा लगभग अंतिम दौर में है। वहीं तमिलनाडु सरकार ने श्रमिकों को शोषण से बचाने के लिए फैक्टरी एक्ट में ही बदलाव कर डाला और कहा कि श्रमिकों के काम के घंटों में लचीलापन लाया गया है ताकि इससे महिला श्रमिकों लाभ मिले। साथ ही इसके चलते श्रमिकों को अब हफ्ते में चार दिन ही काम करने की छूट रहेगी और वे तीन दिन की छुट्टी ले सकेंगे। हालांकि उनको इन छुट्टी के दिनों का भी पैसा मिलेगा। इसके अलावा श्रमिकों का ख्याल रखने में दिल्ली सरकार भी पीछे नहीं है। राज्य सरकार ने लेबर डिपार्टमेंट को इस बात की सख्त हिदायत दी है कि पंजीकृत लगभग 13 लाख कंस्ट्रक्शन वर्कर्स तक सरकार की कल्याणकारी योजनाओं का लाभ हर हाल में पहुंचे। इसके लिए एक एक्शन प्लान तैयार करने का निर्देश जारी किया है।

राजस्थान सरकार का कहना है कि गिग वर्कर्स विधेयक में राज्य में कार्य कर रहे ऑनलाइन प्लेटफाॅर्म आधारित गिग वर्कर्स के लिए वेलफेयर बोर्ड का गठन किया जाएगा। यह राज्य में ऑनलाइन काम कर रहे तीन से चार लाख से अधिक वर्कर्स की सामाजिक सुरक्षा सुनिश्चित करेगा। साथ इनके लिए कल्याणकारी योजनाएं तैयार करेगा और उनकी शिकायतों को सुनेगा। राजस्थान ऐसा पहला राज्य होगा जहां गिग वर्कर्स की सामाजिक सुरक्षा के लिए राज्य सरकार द्वारा दो सौ करोड़ रुपए का बजट रखा गया है। मिली जानकारी के अनुसार, विधेयक में कहा गया है कि राज्य में काम कर रहे किसी भी ऑनलाइन प्लेटफाॅर्म का कर्मचारी वेलफेयर बोर्ड के पंजीकृत सदस्य होंगे। इसके अलावा वर्कर्स को एक यूनिक आईडी भी मिलेगी। इसकी कार्य अवधि तीन साल की होगी। विधेयक का मसौदा अभी कानून विभाग के पास है लेकिन शीघ्र ही इसे सार्वजनिक डोमेन में रखा जाएगा। राजस्थान सरकार के श्रमिक विभाग का कहना है कि राज्य में कई श्रमिक कानून हैं लेकिन दुर्भाग्य से ऑनलाइन के नियोक्ताओं ने अपने वर्कर्स को पार्टनर के रूप में रेखांकित किया है। इससे कर्मचारी को तमाम सामाजिक सुरक्षा स्कीमों से वंचित रहना पड़ता है।

ध्यान रहे कि दिल्ली सहित एनसीआर में भी गिग वर्कर्स ने अप्रैल माह में लगभग दो हफ्ते तक हड़ताल की थी क्योंकि उनकी कंपनी ने उनको दिया जाने वाला पैसा आधे से भी कम कर दिया था। देश की बड़ी एप बेस्ट कंपनी ब्लिंकिट में काम करने वाले कर्मचारी हड़ताल पर चले गए थे। इससे देश के कई शहर प्रभावित हुए। कंपनी ने अपनी पेआउट पॉलिसी में बदलाव किया। इससे गिग वर्कर्स की कमाई आधे से भी कम हो गई थी। पहले उन्हें प्रति राइड 25 रुपए मिलते थे, अब इसे कंपनी ने घटाकर 15 रुपए कर दिया था। इसी बात को लेकर वर्कर्स हड़ताल पर चले गए थे। ध्यान रहे कि नीति आयोग के अनुसार, 2020-21 में देश में 77 लाख कामगार इस प्रकार के काम से जुड़े हुए हैं। साथ ही आयोग ने यह भी कहा है कि आगामी 2030 तक इनकी संख्या 2.35 करोड़ तक पहुंचने की संभावना है। आयोग के अनुसार इनमें से 47 फीसदी मध्यम कौशल वाले, 22 फीसदी उच्च कौशल वाले और 31 फीसदी कम कौशल वाले काम से जुड़े वर्कर्स हैं। इन कामगारों के लिए नीति आयोग के प्रस्ताव में कई सुझाव सरकार को दिए हैं। इसमें रियाटरमेंट या पेंशन देने की भी बात कही गई है लेकिन ये अभी तक केवल कागजों पर ही है।

दूसरी ओर तमिलनाडु में फैक्टरी एक्ट में बदलाव किया गया है। राज्य सरकार का कहना है कि इससे श्रमिकों को अब हफ्ते में तीन दिन की छुट्टी मिल सकेगी और उसके कार्यदिवस चार दिन ही रहेगा। हालांकि श्रमिकों के काम के घंटों में किसी प्रकार बदलावा नहीं किया गया है। साथ ही सरकार का कहना है कि इस काम के लचीलेपन से महिला श्रमिकों लाभ पहुंचेगा। राज्य के श्रम मंत्री के अनुसार, इस संशोधन को लागू करने वाले उद्योग ही 12 घंटे की कार्य शिफ्ट को अपनाएंगे। मौजूदा समय में कर्मचारियों को हफ्ते में 48 घंटे काम करना होता है और इसमें कोई बदलाव नहीं होगा। केवल स्वेच्छा से काम करने वाले कर्मचारी ही 12 घंटे की शिफ्ट में काम कर सकते हैं। किसी को भी 12 घंटे की शिफ्ट करने के लिए बाध्य नहीं किया जा सकता। 

एक्ट में संशोधन को तमाम श्रमिक यूनियन ने कामगारों के साथ धोखा करार दिया है। यहां तक कि राज्य की सत्तारूढ़ पार्टी के श्रमिक विंग ने भी इस बदलाव का विरोध किया है। यह विरोध लगातार बढ़ता जा रहा है। अधिकांश श्रमिक संघों ने मांग की है कि सरकार ने यह बदलाव उद्योग संघों के दबाव में आकर किया है। संघों का कहना है कि इसका मकसद सूचना प्रौद्योगिकी उद्योग, इलेक्ट्रॉनिक्स, गारमेंट सहित गैर चमड़ा फुट वियर निर्माताओं को लचीले श्रम कानून और सस्ते श्रम की सुविधा उपलब्ध कराते हुए सुरक्षित मुनाफे वाले निवेश की सुविधा उपलब्ध कराना है। विश्व के कई बड़े वैश्विक पूंजी निवेशकों के दबाव में आकर कर्नाटक और तमिलनाडु ने श्रम कानून इस तरह का संशोधन किया है। ध्यान रहे कि कर्नाटक ऐसा पहला राज्य था, जिसने गत 24 फरवरी को फैक्ट्री एक्ट में संशोधन करते हुए प्लांट में 12 घंटे के कार्य दिवस और रात्रि पाली में प्लांट में महिलाओं से काम करवाने की छूट प्रदान की थी। इसके बाद दुनिया के कई शीर्ष इलेक्ट्रॉनिक्स उत्पाद निर्माता कंपनियों ने राज्य में कई करोड़ रुपयों के निवेश की घोषणाएं कीं।

दिल्ली सरकार ने भी कामगारों तक सामाजिक सुरक्षा योजनाओं का लाभ पहुंचे, इसके लिए एक एक्शन प्लान तैयार करने का आदेश लेबर डिपार्टमेंट को दिया है। अपने आदेश में राज्य सरकार ने कहा कि हर हाल में राज्य में पंजीकृत लगभग 13 लाख श्रमिकों को सामाजिक सुरक्षा योजना का लाभ मिले। इसके लिए राज्य सरकार ने जून तक समय विभाग को दिया है जब तक सभी पंजीकृत श्रमिकों का सत्यापन हो जाना चाहिए। इसके अलावा दिल्ली के सभी पंजीकृत श्रमिकों को ईएसआई योजना से कवर करने के प्रस्ताव को भी मंजूर किया गया है। योजना के तहत नियोक्ता 3.25 फीसद योगदान देता है जबकि कर्मचारी अपने वेतन का 0.75 फीसद योगदान देता है।

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