पानी निकालना अब बच्चों का खेल !

अध्यापकों की समझदारी से बच्चों के लिए आसान हुए हैंडपंप से पानी निकालना

On: Friday 16 August 2019
 
फोटो: पुरुषोत्तम सिंह ठाकुर

गीतकारमुड़ा गांव से लौटकर पुरुषोत्तम सिंह ठाकुर

आप बचपन में ऐसे झूले में झूले होंगे, जो कभी ऊपर जाता है तो कभी नीचे। इसे 'सी-सा' झूला कहा जाता है। लेकिन ऐसा झूला झूलते वक्त आपकी एक जरूरत भी पूरी हो जाए तो कैसा लगेगा। जी हां, एक स्कूल में बच्चे जब इस झूले में झूलते हैं तो मनोरंजन के साथ-साथ वे अपनी जरूरत का पानी निकाल लेते हैं।

छत्तीसगढ़ के धमतरी जिले के आदिवासी विकासखंड के एक गांव गीतकारमुडा में है। यह गांव धमतरी से करीब 75 किमी दूर जंगली इलाके में है। इस गांव की कुल आबादी करीब 200 है। गांव के सभी निवासी अति पिछड़ी कमार जनजाति से हैं।

यहां एक आंगनबाड़ी और एक प्राथमिक स्कूल है और इस स्कूल में कुल 20 बच्चे हैं, जिनमें 9 लड़कियां और 11 लड़के हैं। स्कूल में 2 शिक्षक हैं, प्रधान पाठक (हेडमास्टर) छगनलाल साहू और सहायक शिक्षक सिधेश्वर साहू। इस स्कूल में बागवानी और रसोई और पीने की पानी की जरूरत एक हैंडपंप से पूरी होती है।

साहू बताते हैं कि हैंडपंप से पानी निकालने में बहुत मेहनत लगती थी, इस बारे में गांव और पंचायत स्तर पर बोर-पंप लगवाने का कई बार प्रयास किया गया, लेकिन कोई परिणाम नहीं निकला। इसलिए हम दोनों शिक्षकों ने हैंडपंप से पानी निकालने का कोई और तरीका निकालने पर विचार करना शुरु किया। 

तब उन्हें एक सी–सा झूले का ध्यान आया। उन्होंने इसका डाईग्राम बनाना शुरू किया कि कैसे इसे हैंडपंप से जोड़ा जा सकता है। अगले ही दिन कबाड़ में पड़े लोहे की सहायता से झूला तैयार किया गया और उसे हैंडपंप से जोड़ दिया।

अब उस सी-सा झूले में बच्चे बड़े शौक से झूलते झूलते जितनी मात्रा में पानी की आवश्यकता होती है, पानी निकालते हैं। कबाड़ के जुगाड़ से बहुत ही कम लागत में बने झूले से पानी निकालने के साथ-साथ खेल के उद्देश्य को पाने में सफलता मिली है।

छगनलाल बताते हैं कि आठ साल पहले जब उनकी यहां पोस्टिंग हुई थी तो उन्होंने लगता था कि जंगल में आकर रहना पड़ रहा है, कई बार नौकरी छोड़ने का भी मन बनाया, लेकिन धीरे-धीरे जिम्मेवारी का अहसास हुआ।  

ऐसे आम धारणा है की कमार जाति के बच्चों में पढ़ाई के प्रति उत्साह नहीं है, इसलिए उन्होंने बच्चों से नजदीकी बढ़ाई और उन्हें विभिन्न माध्यमों से पढ़ाई और स्कूल के प्रति आकर्षित किया। स्कूल में बैठने के लिए बैंचों का इंतजाम किया। साथ ही, स्थानीय लोगों के सहयोग से पुस्तकालय भी बनाया गया है। इसका असर भी दिखने लगा है। न केवल बच्चे उत्साह के साथ स्कूल आते हैं, बल्कि उनके अभिभावक भी पूरी रूचि ले रहे हैं। 

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