Economy

आर्थिक सर्वेक्षण ने दी ‘बौनों’ को खत्म करने की सलाह  

आर्थिक सर्वेक्षण में कहा गया है कि जो छोटे उद्योग आर्थिक वृद्धि को रोक रहे हैं और रोजगार सृजन नहीं कर रहे हैं, उन्हें बौना कहा जाना चाहिए 

 
By Richard Mahapatra
Published: Thursday 04 July 2019
Photo: Getty images

संसद में पेश किए गए आर्थिक सर्वेक्षण 2018-19 में रोजगार के संकट पर बात तो की गई, लेकिन इसके कारण खोजने के मामले में सर्वेक्षण ने चौंकाने वाले तक्ष्य पेश किए हैं।

"सर्वेक्षण ने एक चौंकाने वाले तथ्य की पहचान की है।" लघु और सीमांत विनिर्माण क्षेत्र को लेकर सर्वेक्षण ने यह तथ्य पेश किए हैं। इस तथ्य को “बौना” कहकर पेश किया गया है, जो जो देश की आर्थिक वृद्धि के साथ-साथ प्रभावशाली तरीके से रोजगार सृजन नहीं कर रहा है।

विनिर्माण क्षेत्र रोजगार देने वाला एक बड़ा क्षेत्र हैं और अब इसे ग्रामीण युवाओं का रोजगार देने के लिए प्रोत्साहित करने का लक्ष्य रखा गया है। इसकी वजह यह है कि कृषि क्षेत्र अब रोजगार देने वाला क्षेत्र नहीं रहा।

सर्वेक्षण में बौना उन छोटे उद्योगों को कहा गया है कि जिन्होंने पुराना होने के बावजूद तरक्की नहीं की। सर्वेक्षण के मुताबिक, 100 से कम लोगों को रोजगार देने वाले संस्थान को छोटा माना जाता है और जो संस्थान 10 साल से अधिक पुराना है, उन्हें बौना कहा जा सकता है। आर्थिक सर्वेक्षण का आशय यह है कि उम्र बढ़ने के साथ कोई बच्चा बड़ा नहीं होने पर उसे बौना कहा जाता है।

आर्थिक सर्वेक्षण में कहा गया है कि पिछले एक दशक से अधिक समय से ऐसे संस्थानों का विकास नहीं हो पा रहा है। यही वजह है कि ऐसे छोटे संस्थान देश के आर्थिक विकास और रोजगार सृजन में अपना योगदान नहीं दे रहे हैं।  

जबकि विनिर्माण क्षेत्र में इनकी संख्या लगभग आधी होने के बावजूद रोजगार देने के मामले में इनका योगदान 13.3 फीसदी है। हालांकि शुद्ध मूल्य वर्धित (एनवीए) में इनकी भागीदारी 4.7 फीसदी है। इसका मतलब है कि इस क्षेत्र में आधी हिस्सेदारी होने के बावजूद इसका योगदान न के बराबर है।

लेकिन वे संस्थान बौने नहीं है या जवान हैं, जिनमें 100 से अधिक कर्मचारी काम कर रहे हैं और वे अर्थव्यवस्था के विकास में अपनी भागीदारी निभा रहे हैं।

सर्वेक्षण के मुताबिक, बड़ी कंपनियां, जिनमें 100 से अधिक कर्मचारी काम करते हैं और 10 साल से अधिक पुरानी नहीं हैं की संख्या 6.2 फीसदी है, लेकिन रोजगार के मामले में इनका योगदान एक चौथाई से अधिक है और एनवीए में हिस्सेदारी 38 फीसदी है। ऐसे में जो 10 साल से अधिक पुरानी है और जिसमें 100 से अधिक कर्मचारी काम कर रहे हैं की संख्या 9.5 फीसदी है और उनकी रोजगार और एनवीए दोनों में आधी से अधिक हिस्सेदारी है।  

सर्वेक्षण में कहा गया है कि जो कंपनियां अधिक पुरानी हैं और जिनमें कर्मचारियों की संख्या भी अधिक है अर्थव्यवस्था में अपना अधिक योगदान दे रही हैं। लेकिन यह उम्मीद के मुताबिक नहीं है। बौने संस्थान जो पुराने होने के बावजूद छोटे ही हैं का अर्थव्यवस्था में उत्पादकता व रोजगार के मामले में योगदान कम ही रहता है।

विकसित व बड़े देशों में ऐसा नहीं है। उदाहरण के लिए, अमेरिका में कोई फर्म जितनी पुरानी होती जाती है, उतना अधिक कर्मचारियों को रोजगार देती है। जैसे कि कोई फर्म 5 साल पुरानी होने पर 10 कर्मचारियों को काम देती है तो 40 साल पुरानी होने पर 7 गुणा अधिक यानी लगभग 70 लोगों को काम देती है।

इसके विपरीत भारत में एक औसत फर्म 5 साल के मुकाबले 40 साल बाद केवल 40 फीसदी अधिक कर्मचारियों को काम देती है। सर्वेक्षण में कहा गया है कि ये छोटी कंपनियां रोजगार उत्पन्न करने में पीछे हैं।

सर्वेक्षण में कहा गया है कि श्रम कानूनों की वजह से यह फर्म बौनी हुई हैं, क्योंकि इन बौने फर्मों को श्रम कानूनों से छूट दी जाती है। इसलिए इन छूटों का लाभ लेने के लिए ये कंपनियां छोटी बनी रहती हैं।   

इससे अर्थव्यवस्था को कोई फायदा नहीं होता और ना ही रोजगार बढ़ता है। जबकि ये बौनी कंपनियां लगभग सभी संसाधनों का इस्तेमाल करती हैं, जो कि संभवतः शिशु फर्मों को दिए जा सकते हैं, क्योंकि वे शिशु फर्मों की तुलना में नौकरियों के निर्माण और आर्थिक विकास में कम योगदान देते हैं।

ग्राफ: आर्थिक सर्वेक्षण 2018-19

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