महामारी से पहले की तुलना में अभी भी कम हैं 11.2 करोड़ रोजगार, थम सी गई है बहाली की रफ्तार

आईएलओ ने इसके लिए महामारी के साथ-साथ खाद्य पदार्थों, ईंधन की बढ़ती कीमतें और वित्तीय उतार-चढ़ाव को जिम्मेवार माना है, जिसने जॉब मार्किट को अस्थिर कर दिया है

By Lalit Maurya

On: Tuesday 24 May 2022
 

वैश्विक स्तर पर रोजगार के अवसरों में जो सुधार आ रहा था उसमें 2022 की पहली तिमाही में एक बार फिर से गिरावट दर्ज की गई है। अन्तरराष्ट्रीय श्रम संगठन (आईएलओ) द्वारा जारी आंकड़ों से पता चला है महामारी से पहले की तुलना में अभी भी 2022 के शुरूआती तीन महीनों में रोजगार 3.8 फीसदी कम है। मतलब की पहले की तुलना में अभी भी करीब 11.2 करोड़ रोजगार कम हैं।

इतना ही नहीं आईएलओ द्वारा वैश्विक रोजगार की स्थिति को लेकर जारी इस हालिया रिपोर्ट ‘आईएलओ मॉनिटर ऑन द वर्ल्ड ऑफ वर्क’ से पता चला है कि इस तरह के कठिन हालात साल की दूसरी तिमाही में और खराब हो सकते हैं। अनुमान है कि आने वाले कुछ महीनों में रोजगार की यह गिरावट बढ़कर 4.2 फीसदी पर जा सकती है।

गौरतलब है कि 2021 की अंतिम तिमाही में रोजगार में एक फीसदी का सुधार आया था जब कामकाज के घण्टों की संख्या में आती गिरावट 4.2 फीसदी से घटकर 3.2 फीसदी रह गई थी। लेकिन 2022 की शुरुआत से इसमें फिर से गिरावट के संकेत सामने आने लगे हैं और यह गिरावट भी अच्छी खासी है।   

अस्थिर होता जा रहा है श्रम बाजार

अन्तरराष्ट्रीय श्रम संगठन का कहना है कि रोजगार की स्थिति में जो सुधार आ रहा था, उसमें एक बार फिर गिरावट आने लगी है। इसके लिए महामारी के साथ-साथ खाद्य पदार्थों व ईंधन की बढ़ती कीमतें और वित्तीय उतार-चढ़ाव जिम्मेवार है, जिसने जॉब मार्किट को अस्थिर बना दिया है। इतना ही नहीं इसकी वजह से न केवल देशों के भीतर बल्कि देशों के बीच भी विषमताएं बढ़ गई हैं।

यूएन श्रम एजेंसी के प्रमुख गाय राइडर के अनुसार यूक्रेन में चलते युद्ध के कारण भी वैश्विक आपूर्ति श्रंखला बाधित हुई है। उनके अनुसार हालांकि रुसे हमले का असर पूरी तरह सामने आने में कई महीने लग सकते हैं। लेकिन मौजूदा संघर्ष के यूक्रेन और अन्य देशों के रोजगार पर असर साफ नजर आने लगे हैं।

गौरतलब है कि आईएलओ द्वारा जारी हालिया विश्लेषण से पता चला है कि यूक्रेन पर रूसी आक्रमण शुरू होने के बाद से अब तक लगभग 48 लाख लोगों के रोजगार छिन गए हैं। यह यूक्रेन में संघर्ष से पहले के कुल रोजगार का करीब 30 फीसदी है। वहीं यूएन एजेंसी का कहना है कि अगर यह टकराव इसी तरह जारी रहता है तो रोजगार को होने वाले नुकसान का यह आंकड़ा बढ़कर 70 लाख तक जा सकता है।

रिपोर्ट से यह भी पता चला है कि रोजगार के मामले में अमीर और गरीब देशों के बीच की खाई और गहराती जा रही है। वहीं कुछ स्थानों पर रोजगार के क्षेत्र में पुनर्बहाली बहुत कठिन दौर का सामना कर रही है। जहां 2022 के शुरूआती महीनों में उच्च-आय वाले देशों ने काम के घंटों में सुधार का अनुभव किया है।

आने वाले समय में बद से बदतर हो सकती है स्थिति

वहीं कम और निम्न-मध्यम-आय वाली अर्थव्यवस्थाओं को को काफी बड़े झटके लगे हैं। इन देशों में महामारी से पहले की तुलना में रोजगार में 3.6 से लेकर 5.7 फीसदी की गिरावट दर्ज की गई है। इतना ही नहीं अनुमान है कि 2022 की दूसरी तिमाही में यह स्थिति और खराब हो सकती है।

रिपोर्ट के मुताबिक कुछ विकासशील देश, कड़े वित्तीय नियमों और उच्च कर्ज अदायगी की वजह से कठिन हालात का सामना कर रहे हैं। ऐसे में यह जरुरी है कि वैश्विक स्तर पर समान पुनर्बहाली के लिए नियमों में सुधार किया जाए। गौरतलब है कि दुनिया भर में अभी भी बहुत से श्रमिक दो वर्ष बाद भी महामारी के प्रभावों से जूझ रहे हैं।

2021 के दौरान अमीर देशों और चीन में श्रमिकों की आय में औसतन महामारी से पहले की तुलना में 0.9 फीसदी की वृद्धि हुई है। वहीं रिपोर्ट में यह भी सामने आया है कि अधिकांश श्रमिकों की आय में अब तक सुधार नहीं आया है। अनुमान है कि 2021 में हर पांच में से तीन श्रमिक उन देशों में रहते थे जहां उनका पारिश्रमिक, वेतन या आमदनी महामारी से पहले के स्तर पर नहीं पहुंची है। मतलब इन श्रमिकों को अभी भी दो वर्ष पहले की तुलना में कम आय मिल रही है। 

रोजगार की अवधि के मामले में पुरुषों और महिलाओं के बीच है 57 फीसदी का अंतर

यदि महिला श्रमिकों की बात करें तो वो अभी भी इस महामारी से बुरी तरह प्रभावित हैं। विकसित देशों में सुधार के बावजूद कम और मध्यम-आय वाले देशों में उनकी स्थिति कहीं ज्यादा खराब है। रिपोर्ट के मुताबिक वर्ष 2022 की पहली तिमाही में महिलाओं की तुलना में पुरुषों के कामकाज के घण्टों की संख्या में 0.7 फीसदी की वृद्धि हुई है।

पता चला है कि जहां वैश्विक स्तर पर महिलाओं को औसतन प्रति सप्ताह 18.9 घंटे काम कर रही हैं वहीं पुरुषों के लिए हर सप्ताह औसतन 33.4 घंटे के लिए रोजगार उपलब्ध है। देखा जाए तो महिलाओं को मिलने वाला यह काम पुरुषों की तुलना में करीब 57 फीसदी कम है।

रिपोर्ट के मुताबिक महामारी का सबसे ज्यादा बुरा असर अनौपचारिक क्षेत्र के रोजगार पर पड़ा है। जहां 2020 की दूसरी तिमाही में जब संकट अपने चरम पर था तब अनौपचारिक क्षेत्र की नौकरियों में 20 फीसदी की गिरावट दर्ज की गई थी।

यह प्रभाव औपचारिक क्षेत्र की तुलना में लगभग दोगुना है। वहीं यदि महिलाओं की बात करें तो इस अवधि में अनौपचारिक क्षेत्र में महिलाओं के रोजगार में 24 फीसदी की गिरावट आई थी वहीं पुरुषों के रोजगार में 18 फीसदी की कमी दर्ज की गई थी।

यदि आईएलओ द्वारा बेरोजगारी को लेकर जारी आंकड़ों पर नजर डालें तो दुनिया भर में अभी भी 20.7 करोड़ से ज्यादा लोग बेरोजगार हैं, जोकि महामारी से पहले की तुलना में 2.1 करोड़ ज्यादा हैं। यह अपने आप में एक बड़ी समस्या है, ऊपर से घटते रोजगार इस समस्या को और विकराल बना रहे हैं। इस बारे में आईएलओ महानिदेशक गाय राइडर का कहना है कि इन समस्याओं का प्रभाव बहुत विनाशकारी होगा, जिसका असर सामाजिक व राजनैतिक व्यवधान के रूप में भी सामने आ सकता है।

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