नोटबंदी से अधिक नुकसान देशबंदी से होगा

लॉकडाउन से उत्पादन गतिविधियां रुक गई हैं। इसका अर्थ है, कामगारों की आय खत्म हो जाना

By Pronab Sen

On: Friday 17 April 2020
 
फोटो: अरिंदम घोष

भारत एक अभूतपूर्व संकट में फंसा है। नोवेल कोरोनोवायरस बीमारी (कोविड-19) का प्रकोप तो था ही, इसी बीच प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने लॉकडाउन (तालाबंदी) की घोषणा कर दी। इससे देश के विभिन्न भागों में हजारों प्रवासी अपने घर लौटने के लिए सड़क पर आ गए। केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में माना कि इससे लॉकडाउन का उद्देश्य असफल हो सकता है। अब तक, इस महामारी का प्रकोप केवल शहरों में था। लेकिन, लोगों को अपने गांव लौटने की अनुमति देना, आपदा को निमंत्रण देने जैसा हो सकता है।

ग्रामीण भारत में स्वास्थ्य सुविधाएं बेहद खराब हैं। यदि आपदा का विस्तार हुआ तो बड़ी तादाद में लोग मरेंगे। दुर्भाग्य से ऐसा ही हुआ है। सरकार को महामारी के केंद्र वुहान की तरह संपूर्ण लॉकडाउन की घोषणा करनी चाहिए थी, ताकि वायरस भौगोलिक रूप से सीमित हो सके। भारत के शहरों में फंसे लोग भूखे हैं और अपनी आजीविका कमाने में असमर्थ हैं। सरकार ने उनके बैंक खातों में पैसा भेजने की पहल की, ताकि वे राशन का सामान खरीद सकें। लेकिन यह पहल भी बहुत उपयोगी नहीं है, क्योंकि उनमें से कई के जन-धन खाते नहीं हैं। कई लोगों के पासबुक और डेबिट कार्ड उनके गांव में ही है।

यह अभी तक स्पष्ट नहीं है कि ऐसे लोगों का क्या होगा, क्योंकि सरकार ने इस पर कोई बात ही नहीं की है। और अगर लोगों को किसी तरह से पैसा मिल भी जाता है, तो सरकार के पास दुकानों तक राशन का सामान पहुंचाने की क्या योजना है? लगता है, सरकार यह भूल गई है कि थोक बाजार से स्थानीय दुकानों तक राशन और सब्जी आदि पहुंचाने का काम श्रम आधारित है। यानी, इसमें श्रमिकों की भारी संख्या की जरूरत होगी। सरकार ने लोगों को लॉकडाउन होने के लिए कहा और सिर्फ ये वादा किया कि भोजन और अन्य आवश्यक वस्तुओं की आपूर्ति सुनिश्चित की जाएगी। लेकिन इस बात पर कोई चर्चा नहीं हुई कि यह कैसे सुनिश्चित किया जाएगा।

सबसे बड़ी चिंता यह है कि अभी रबी फसल की कटाई का समय है। देश के कुछ हिस्सों में कटाई का काम खत्म हो गया है जबकि अन्य भागों में अभी बाकी है। लॉकडाउन से कृषि क्षेत्र तबाह हो सकता है। इसके केंद्र में थोक बाजार हैं। यदि उन्हें खुला छोड़ दिया जाता है, तो सरकार को कई चीजों के बारे में सावधान रहना होगा। खरीदार, विक्रेता, किसान और व्यापारी, सभी थोक बाजार में जाते हैं। ऐसे में वहां किस हद तक सामान्य स्थिति बनाए रखी जा सकती है? और, अगर थोक बाजार बंद हो जाते हैं, तो पूरी व्यवस्था ध्वस्त हो जाएगी। इसका कृषि पर व्यापक नकारात्मक असर पड़ेगा।

कोविड-19 की वजह से जो लॉकडाउन है, वो नोटबंदी (विमुद्रीकरण) की तुलना में अधिक हानिकारक हो सकता है। जब नवंबर 2016 में नोटबंदी की घोषणा की गई थी, तब भी आर्थिक गतिविधियां जारी थीं। समस्या सिर्फ धन (करेंसी) तक पहुंच की थी। उस वक्त भी बहुत सारे लोग काम करना और उत्पादन जारी रखे हुए थे, लेकिन उसके बदले उन्हें पैसा नहीं मिल पा रहा था। नियोक्ताओं के पास नकदी का अभाव था। हालांकि, कामगार इस शर्त के साथ काम कर सकते थे कि एक बार नकदी उपलब्ध होने के बाद उन्हें भुगतान कर दिया जाएगा। वे दुकानों से भी इसी तरह की अनौपचारिक बातचीत करके सामान उधार ले सकते थे और जब नकदी आने लगी थी तब उन्होंने पैसा चुका दिया।

लेकिन इस बार मामला अलग है। उत्पादन गतिविधियां रुक गई हैं। इसका अर्थ है, कामगारों की आय खत्म हो जाना। यदि कामगारों के पास बचत नहीं होगी तो उनके लिए जीना कठिन जो जाएगा। और जो बचत होगी, वे उसे खर्च करेंगे, लेकिन अगर लॉकडाउन जारी रहता है, तो क्या होगा? 

नोटबंदी का दुष्प्रभाव लंबे समय तक रहा, क्योंकि ने सरकार ने वे काम नहीं किए, जो उसे पहले दिन से करने चाहिए थे। जैसे, तब तक बैंक ऋण चुकाने की बाध्यता खत्म कर देनी चाहिए थी, जब तक नए नोटों की आपूर्ति का काम पूरा नहीं हो जाता या तब तक क्रेडिट व्यवस्था जारी रखनी चाहिए थी जब तक लोगों के पास भुगतान के लिए नकद उपलब्ध नहीं हो जाते। नोटबंदी की प्रक्रिया को पूर्ण करने में तकरीबन एक साल लग गए।

इस बीच, छोटे और मध्यम उद्यमों (एसएमई) को गैर-निष्पादित आस्तियां (एनपीए) बना दिया गया, कई बंद हो गए। नतीजतन, इसके दुष्प्रभाव आज तक दिखाई दे रहे हैं। निम्न-मध्यम वर्ग, जैसे छोटे दुकानदार और व्यापारियों का अस्तित्व खतरे में आ गया। नोटबंदी अब भी अर्थव्यवस्था को प्रभावित कर रही है। तो क्या अगर नोटबंदी नहीं की गई होती तो, आज भारत लॉकडाउन के इस चोट से उबर सकता था?

इसका जवाब यही है कि मुद्रा लोन के बलबूते अर्थव्यवस्था कुछ हद तक सामान्य होने लगी थी। एसएमई ऋण लेकर काम शुरू कर रहे थे, हालांकि पहले के मुकाबले काम का पैमाना थोड़ा कम ही था, लेकिन वे सक्रिय हो रहे थे। लेकिन, अब तो वह भी बंद हो गए हैं।

(डाउन टू अर्थ को दिए साक्षात्कार के संपादित अंश। प्रणव सेन, सांख्यिकी और कार्यक्रम कार्यान्वयन मंत्रालय में आर्थिक सांख्यिकी संबंधी स्थायी समिति के प्रमुख हैं)

Subscribe to our daily hindi newsletter