2021 में 9.5 फीसदी की दर से बढ़ सकती है भारतीय अर्थव्यवस्था: आईएमएफ
अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष (आईएमएफ) द्वारा जारी नवीनतम अनुमानों के अनुसार 2021 में भारतीय अर्थव्यवस्था के 9.5 फीसदी की दर से बढ़ने के आसार हैं।
On: Wednesday 13 October 2021
अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष (आईएमएफ) द्वारा जारी नवीनतम अनुमानों के अनुसार 2021 में भारतीय अर्थव्यवस्था के 9.5 फीसदी की दर से बढ़ने के आसार हैं। वहीं 2022 में यह आर्थिक विकास दर करीब 8.5 फीसदी रह सकती है। गौरतलब है कि 2020 में महामारी के चलते भारतीय अर्थव्यवस्था में 7.3 फीसदी की कमी दर्ज की गई थी।
वहीं वैश्विक अर्थव्यवस्था की बात करें तो आईएमएफ के अनुसार 2021 में उसके 5.9 फीसदी की दर से बढ़ने के आसार हैं, जोकि 2021 के लिए जुलाई में जारी पूर्वानुमान की तुलना में 0.1 फीसदी कम है। वहीं 2022 में विकास दर के एक फीसदी की गिरावट के साथ 4.9 फीसदी रहने का अनुमान है।
आईएमएफ द्वारा जारी इस नई वर्ल्ड इकनोमिक आउटलुक अक्टूबर 2021 के अनुसार जुलाई के बाद यह जो नए अनुमान जारी किए गए हैं, वो विकसित अर्थव्यवस्थाओं के लिए उतने बेहतर नहीं हैं, जितने पहले अनुमान लगाए गए थे। इसके लिए कहीं हद तक आपूर्ति में आए व्यवधान जिम्मेवार हैं। वहीं निम्न आय वाले देशों में इसके लिए महामारी से उपजा संकट बड़ी वजह है।
यदि रिपोर्ट में जारी आंकड़ों को देखें तो जहां 2020 के दौरान अमेरिका की आर्थिक विकास दर में 3.4 फीसदी की गिरावट दर्ज की गई थी, वहीं 2021 में इसमें 6 फीसदी की वृद्धि का अनुमान है, जबकि 2022 में 5.2 फीसदी की वृद्धि का अनुमान है। वहीं यदि जर्मनी की बात करें तो जहां उसकी अर्थव्यवस्था में 2020 में 4.6 फीसदी की गिरावट दर्ज की गई थी वहीं 2021 में उसमें सुधार की सम्भावना है अनुमान है कि वो 3.1 फीसदी हो जाएगी, जबकि 2022 में उसके 4.6 फीसदी रहने का अनुमान है।
वहीं आईएमएफ ने अनुमान लगाया है कि 2022 में चीन की विकास दर 5.6 फीसदी और अमेरिका की 5.2 फीसदी रहने का अनुमान है। वहीं जर्मनी, फ्रांस और इटली जैसी प्रमुख यूरोपीय अर्थव्यवस्थाओं के लिए, आईएमएफ ने क्रमशः 4.6 फीसदी, 3.9 फीसदी और 4.2 फीसदी की वृद्धि का अनुमान लगाया है। वहीं यदि यूनाइटेड किंगडम से जुड़े आंकड़ों को देखें तो उसकी अर्थव्यवस्था का 2022 में 5 फीसदी की दर से बढ़ने का अनुमान है।
हालांकि इसमें कोई शक नहीं कि 2020 में आई गिरावट के बाद 2021 में एक बार फिर अर्थव्यवस्था पटरी पर लौटने लगी है पर उसकी रफ्तार उतनी तेज नहीं है। यदि वैश्विक स्तर पर इस महामारी से मरने वालों का आंकड़ा देखें तो यह संख्या 48.8 लाख को पार कर चुकी है। वहीं डेल्टा के तेजी से प्रसार और नए वेरिएंट के खतरे ने इस बारे में अनिश्चितता और बढ़ा दी है कि हम कितनी जल्दी इस महामारी के खतरे से उबर पाएंगे। ऐसे में नीति सम्बन्धी विकल्प पहले के मुकाबले कहीं ज्यादा मुश्किल हो गए हैं।
यही नहीं विकसित और कमजोर देशों के बीच जो आर्थिक सुधारों की जो खाई है वो भी एक बड़ी समस्या है, जहां एक तरफ विकसित देश तेजी से आर्थिक सुधार की राह पर हैं वहीं कमजोर देश अभी भी महामारी से उबरने के लिए संघर्ष कर रहे हैं। यह असमानता कहीं हद तक वैक्सीन के अंतर से भी जुड़ी हैं। जहां विकसित देशों की करीब 60 फीसदी आबादी का टीकाकरण पूरा हो चुका है, कई तो बूस्टर शूट भी ले रहे हैं वहीं निम्न आय वाले देशों की करीब 96 फीसदी आबादी को अभी भी वैक्सीन नहीं मिल पाई है।
ऐसे में यह जरुरी है कि जल्द से जल्द लोगों को वैक्सीन मिले जिससे इस महामारी के खतरे को कम किया जा सके और आर्थिक गतिविधियां बिना किसी समस्या के फिर से पहले की तरह शुरु हो सकें।