बैठे ठाले: कीउपिड के तीर
जिसे भी तीर लगा, उसे ताकत व ओहदे से प्यार हो गया और वह अपनी जिम्मेदारियों को भूल गया
On: Friday 18 February 2022
सवाल: “वो तीर भला /किस काम का है/ जो तीर निशाने से चूके” पद्यांश की ऑब्जेक्टिव टाइप शैली में सन्दर्भ सहित व्याख्या कीजिए।
जवाब: उपरोक्त पद्यांश अधूरा है। इसके पूरे बोल हैं, चूके- चूके- चूके-रे। इस पद्यांश में कवि ने कीउपिड नामक वेले बालक की जीवन गाथा का वर्णन किया है जिसे लोगों पर बेवजह तीर चलाने की आदत थी।
बरसों पहले इटली के रोम नामी शहर में कीउपिड नामका एक बालक रहता था। आधार कार्ड उसका नाम कीउपिड वल्द मरकरी एंड वीनस लिखा था। कहते हैं दुनिया में आज कुछ भी हो रहा है, सबके लिए केवल यह बालक जिम्मेदार है क्योंकि उसे यह वरदान प्राप्त था कि उसका तीर जिसे लगेगा उसे प्रेम हो जाएगा (बाद में पाया गया कि जिसको भी तीर लगता उसे ताकत और ओहदे से प्यार हो जाता है और वह अपनी जिम्मेदारियों को भूल जाता है)।
अब खबरें तफसील से।
‘टन्न!’ अलार्म की तेज घंटी से कीउपिड की नींद खुली। आंखों को मलते हुए उसने कैलेण्डर की ओर देखा। “आज 14 तारीख है! मुझे तुरंत निकलना होगा!” वह बुदबुदाया।
नहीं, न तो उसे मकान मालिक को किराया देना था और न ही आज बिजली बिल भरने की आखिरी तारीख थी।
बात उससे कहीं ज्यादा बड़ी थी। महीना फरवरी का था और तारीख थी चौदह। आज के दिन उसकी उतनी ही इज्जत थी जितनी मतदान के दिन आमतौर पर एक भारतीय मतदाता की होती है। उसने चारों ओर निगाह दौड़ाई अपने धनुष-बाण को उठाया और पंख फड़फड़ाता हुआ खिड़की से बाहर निकल गया। बाहर निकलते ही उसे जोरों की ठंड लगी तो उसे अपनी भूल का पता चला।
“ओह नो! मैं तो कपड़े डालना ही भूल गया! और तो और मेरा मास्क भी कमरे में रहा गया है! खिड़की भी बंद हो गई है। आज मेरा चालान काटने से कोई नहीं बचा सकता!” वह बुदबुदाया।
“ठण्ड/मास्क/कोविड जैसी तुच्छ नश्वर चीजों पर सोचने का आज समय नहीं है! आज चौदह फरवरी है। आज मानुष प्रजाति को प्रेम का पाठ पढ़ाने का दिन है।” उसने सोचा और अपने धनुष पर बाण चढ़ा लिया। निशाना साधा और तरन्नुम में गुनगुनाया, “वो तीर भला किस काम का है /जो तीर निशाने से चूके-चूके-चूके रे।” और उसने तीर चला दिया। कहते हैं एक दिन उसका तीर निशाना भटककर एक नेता को जा लगा और नेता को अपनी कुर्सी से प्यार हो गया। इसके बाद कुछ ऐसा हुआ कि नेताजी केवल कुर्सी के होकर रह गए।
“ओह नो!” कीउपिड ने मन ही मन सोचा। उसने अपने धनुष पर दूसरा तीर चढ़ाया। तीर इस बार एक पत्रकार को जाकर लगा और देखते ही देखते पत्रकार को टीआरपी से प्रेम हो गया। उसके बाद से वह केवल झूठी खबरें ही दिखाता। ऐसी खबरें जिससे सच का कोई लेना देना नहीं था। लेना देना था तो बस टीआरपी का। खिसिया कर कीउपिड ने धनुष पर तीसरा तीर चढ़ाया। तीर इस बार बड़े उद्योगपति को जाकर लगा। उद्योगपति को पैसे से प्रेम हो गया और उन्होंने तत्काल तय किया कि कुछ भी हो जाए वह बैंकों से लिया ऋण कभी भी नहीं लौटाएगा। केवल यही नहीं अपने पैसा प्रेम के चलते उसने कभी जंगलों को काट डाला तो कभी एक अच्छी खासी नदी को अपने कारखानों के गंदे पानी से भरकर एक नाले में तब्दील कर दिया।
कीउपिड एक के बाद दूसरा तीर चलाता जाता। कभी उसका तीर किसी न्यायाधीश को लगता तो कभी किसी नौकरशाह को। कभी किसी खिलाड़ी को लगता तो कभी किसी फिल्म निर्देशक को। कभी किसी पुलिस अधिकारी को लगता तो कभी किसी शिक्षाविद को। जिसको भी तीर लगा उसे ताकत और ओहदे से प्यार हो गया और वह अपनी जिम्मेदारियों को भूल गया।
कहते हैं आज चारों ओर जो अफरातफरी मची है, इसके लिए केवल और केवल कीउपिड ही जिम्मेदार है।