क्या है फ्री ट्रेड एग्रीमेंट, क्यों समीक्षा करना चाहती है सरकार?

आरसीईपी में शामिल होने से इनकार करने के बाद भारत लगातार फ्री ट्रेड एग्रीमेंट्स की समीक्षा करने की बात कर रहा है। डाउन टू अर्थ ने फ्री ट्रेड एग्रीमेंट्स पर खास सीरीज की, पढ़ें- पहली कड़ी

By Raju Sajwan

On: Tuesday 07 January 2020
 
बैंकॉक में आरसीईपी समिट में भाग लेने गए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और जापान के प्रधानमंत्री शिंजो आबे से अलग से मुलाकात करते हुए। फाइल फोटो-पीआईबी

दिल्ली विधानसभा चुनाव की घोषणा हो चुकी है। केंद्र के मंत्री दिल्ली में व्यापारियों के बीच जाकर दावा कर रहे हैं कि भारत सरकार पूर्ववर्ती सरकार द्वारा किए गए मुक्त व्यापार समझौतों की समीक्षा कर रही है कि ये समझौते भारतीय कारोबार के लिए फायदेमंद रहे या नुकसानदायक। दरअसल, नवंबर 2019 के पहले सप्ताह में जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने आरसीईपी (पढ़ें, क्या है आरसीईपी) में शामिल होने से इंकार कर दिया था, तब से ही केंद्रीय वाणिज्य मंत्री पीयूष गोयल कर रहे हैं कि मुक्त व्यापार समझौतों से भारत को फायदा कम हुआ, नुकसान ज्यादा। डाउन टू अर्थ अपने पाठकों के लिए मुक्त व्यापार समझौतों के असर पर एक सीरीज प्रकाशित कर रहा है। पढ़ें- पहली कड़ी…

सबसे पहले समझते हैं कि आखिर मुक्त व्यापार समझौता यानी फ्री ट्रेड एग्रीमेंट (एफटीए) क्या है?

एफटीए, यानी दुनिया के दो देशों के बीच व्यापारिक संधि, जिसके तहत देशों के बीच आयात व निर्यात शुरू होता है, इसमें कई तरह की छूट दी जाती है, जिससे सामान सस्ता हो जाता है। सन 1995 में दुनिया के देशों के बीच व्यापार को सरल बनाने के लिए गेट (जनरल एग्रीमेंट ऑन टैरिफ एंड ट्रेड) समझौता किया, जिसको लागू करने की जिम्मेवारी विश्व व्यापार संगठन (डब्ल्यूटीओ) की थी। भारत भी तब ही शामिल हो गया था। 

इसके बाद एक और प्रणाली आई, जिसमें दो देश या देशों का समूह आपस में सीधे-सीधे समझौता कर सकता है। इसे एफटीए कहा गया, इसमें डब्ल्यूटीओ का सीधे कोई हस्तक्षेप नहीं होता। भारत ने 1998 में सबसे पहले श्रीलंका के साथ समझौता किया। इससे पहले भारत ने मलेशिया व सिंगापुर से क्षेत्रीय व्यापार समझौता (आरटीए) कर चुका था। भारत द्वारा दूसरे देशों के बीच होने वाली व्यापारिक संधियों का व्यापक अध्ययन करने के बाद प्रकाशित पुस्तक इंडिया एंड बायलेटरल इंवेस्टमेंट ट्रीटीज में लेखक प्रभाष रंजन बताते हैं कि 1994 से 2010 के बीच भारत ने दूसरे देशों से 79 बायलेटरल ट्रेड एग्रीमेंट (व्यापारिक संधियां) की, लेकिन इनमें से 54 देशों के साथ समझौते रद्द कर दिए। 

दरअसल, एफटीए की वजह से भारत का व्यापारिक घाटा बढ़ा है। नीति आयोग के सदस्य वीके सारस्वत के नेतृत्व में जारी डॉक्यूमेंट के मुताबिक वित्त वर्ष 2001 में भारत का व्यापार घाटा 6 अरब डॉलर था, जो वित्त वर्ष 2017 में बढ़ कर 109 अरब डॉलर पहुंच गया। व्यापार घाटे का मतलब है कि निर्यात के मुकाबले आयात अधिक करना। इसी डॉक्यूमेंट में केंद्र सरकार से कहा गया था कि 16 देशों के साथ होने वाले क्षेत्रीय व्यापक आर्थिक भागीदारी (आरसीईपी, रीजनल कॉप्रीहेंसिव इकोनॉमिक पार्टनरशिप) को करते वक्त सावधानी बरतने की जरूरत है। 

अगली कड़ियों में आप पढ़ेंगे, आरसीईपी का सरकार ने क्यों विरोध किया और फ्री एग्रीमेंट एग्रीमेंट्स ने पीढ़ी दर पीढ़ी कारोबार कर रहे लोगों को किस तरह प्रभावित किया? साथ ही, कुछ विशेषज्ञों से बातचीत

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