क्या इस साल भी विकास को थामे रखेगी कृषि ?

कृषि को छोड़कर अर्थव्यवस्था के सभी क्षेत्र अभी भी 2019-20 के स्तर से नीचे हैं।   

By Richard Mahapatra

On: Wednesday 01 September 2021
 

सांख्यिकी और कार्यक्रम कार्यान्वयन मंत्रालय (एमओएसपीआई) द्वारा जारी नवीनतम आंकड़ों के अनुसार वित्त वर्ष 2021-2022 (पहली तिमाही : अप्रैल-जून, 2021) में 31 अगस्त को भारत का सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) 20.1 प्रतिशत बढ़ा है।

यह लगातार चौथी तिमाही है जब अर्थव्यवस्था कोविड-19 महामारी की दो लहरों के बाद बेहतर होने का संकेत दे रही है।

एमओएसपीआई के मुताबिक सभी प्रमुख आठ प्रकार के उद्योगों ने पिछले वित्त वर्ष 2020-21 की तुलना में इस वर्ष समान अवधि (पहली तिमाही) में वृद्धि दर्ज की है। पिछले साल पहली तिमाही में यानी पहले राष्ट्रीय लॉकडाउन और उसके बाद एकमात्र कृषि ही ऐसा “उद्योग का प्रकार” था जिसने 3.5 प्रतिशत की वृद्धि दर्ज की थी, जबकि समग्र अर्थव्यवस्था में -22.4 प्रतिशत की गिरावट आई थी।

इस वित्तीय वर्ष की पहली तिमाही में हुई प्रभावशाली वृद्धि को न्यूनतम आधार पर मापा गया है, यही वजह है कि अर्थशास्त्री और उद्योग जगत के विशेषज्ञ इस तिमाही में 20 फीसदी से ज्यादा की वृद्घि की शर्त लगा रहे हैं।

हालांकि बीते सामान्य वर्ष 2019-2020 की पहली तिमाही की तुलना में कृषि को छोड़कर सभी आर्थिक क्षेत्रों में विकास का निचला स्तर रिकॉर्ड करना जारी है।

चालू वित्त वर्ष की पहली तिमाही में कृषि में 4.5 प्रतिशत की वृद्धि दर्ज की गई है, जो पिछले वर्ष की इसी अवधि की तुलना में अधिक है। कृषि एकमात्र ऐसा क्षेत्र है जो पिछले तीन वर्षों में पहली तिमाही में उच्च सकल मूल्य वर्धित (जीवीए) की रिपोर्ट कर रहा है।

उदाहरण के लिए 2019-2020 की पहली तिमाही में कृषि में जीवीए रु. 4,49,390 करोड़ था जो 2020-2021 की इसी अवधि में बढ़कर 4,65,280 करोड़ हो गया। और इस चालू वित्त (2021-22) वर्ष की पहली तिमाही में 4,86,292 करोड़ पर पहुंच गया है।

समग्र अर्थव्यवस्था के लिए जीवीए 30,47,516  करोड़ रुपए है जो कि एक वर्ष पूर्व 2020-21 की पहली तिमाही की जीवीए (25,65,909 करोड़ रुपए) की तुलना में भले ज्यादा है लेकिन  यह 2019-20 की जीवीए 33,05,273 करोड़ रुपए से 10 फीसदी कम है। 

निजी उपभोग व्यय पिछले वर्ष की इसी अवधि की तुलना में बढ़ा है। हालांकि, यह अब भी 2019-2020 के स्तर से नीचे है। यह चिंताजनक है क्योंकि जीडीपी में निजी खपत का हिस्सा 55 फीसदी है। इससे यह भी पता चलता है कि लोगों के पास खर्च करने की क्षमता नहीं है या वे आय की अनिश्चितता को ध्यान में रखते हुए खर्च रोक रहे हैं।

2019-2020 की पहली तिमाही में निजी उपभोग व्यय 20, 24,421 करोड़ रुपए था जो कि  2020-2021 की इसी अवधि में 14, 94,524 करोड़ रुपए था और इस वित्तीय वर्ष 2021-22 की पहली तिमाही में यह 17, 83,611 करोड़ रुपए है। 

दिलचस्प बात यह है कि पिछले वित्त वर्ष की पहली तिमाही की तुलना में सरकारी उपभोग व्यय जीडीपी के प्रतिशत के रूप में कम हुआ है। यह 2020-2021 की पहली तिमाही में सकल घरेलू उत्पाद का 16.4 प्रतिशत था जो इस वित्त वर्ष की पहली तिमाही में घटकर 13 प्रतिशत रह गया है।

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