आर्थिक सर्वेक्षण: सार्वजनिक खर्च से उबरेगी भारतीय अर्थव्यवस्था

आर्थिक सर्वेक्षण में संकेत दिए गए हैं कि आगामी बजट में सरकारी खर्च की हिस्सेदारी अधिक होगी

By Richard Mahapatra

On: Friday 29 January 2021
 
फोटो: विकास चौधरी

आर्थिक सर्वेक्षण 2020-21 ने भारतीय अर्थव्यवस्था को सुस्ती से उबारने की जिम्मेदारी एकतरफा तौर से सरकार पर डाल दी है।

कोविड-19 महामारी की वजह से मांग और आपूर्ति दोनों पर मार पड़ी थी। इससे आर्थिक गतिविधियां पूरी तरह से ठप हो गई थी। यही वजह है कि भारत के जीडीपी में 7.7 प्रतिशत की गिरावट देखने को मिली।

29 जनवरी को पेश आर्थिक सर्वेक्षण में 1950 के दशक के सभी प्रचलित आर्थिक सिद्धांतों को सामने रख दिया गया और लगभग सभी मृत और जीवित अर्थशास्त्रियों का हवाला दिया गया। इनमें से ज्यादातर अर्थशास्त्री सार्वजनिक व्यय को आर्थिक विकास का माध्यम बताने में माहिर रहे हैं। उनका हवाला देते हुए आर्थिक सर्वेक्षण में सिफारिश की गई है कि ज्यादा से ज्यादा सार्वजनिक खर्च से ही निजी खपत को पुनर्जीवित और निजी निवेश को भी आकर्षित किया जा सकता है।

वर्तमान में, भारत की जीडीपी में निजी खपत की हिस्सेदारी 54 प्रतिशत है। वहीं निजी निवेश की जीडीपी में 29 प्रतिशत हिस्सेदारी है। देश में व्याप्त अनिश्चितता के माहौल को देखते हुए जहां निजी खपत घट रही है, वहीं निजी निवेश के पुनर्जीवित होने के कोई संकेत नहीं दिख रहे हैं।

सर्वेक्षण में कहा गया है, “एक ऐसे देश में संसाधनों का कम प्रयोग किया गया है, वहां सरकारी खर्च में बढ़ोतरी से अर्थव्यवस्था में समेकित मांग बढ़ जाती है। इससे निजी क्षेत्र बढ़ी मांग को पूरा करने के लिए अपना निवेश बढ़ाने को प्रेरित हो सकता है और इससे अब तक बिना उपयोग में लाये गए संसाधनों का उपयोग करके उत्पादन की प्रक्रिया शुरू की जा सकती है।”

पहली बार पैदा हुए ऐसे हालात को देखते हुए आर्थिक सर्वेक्षण में सुझाव दिया गया है कि अर्थव्यवस्था में सरकारी खर्च बढ़ाकर मांग पैदा करके और फिर ज्यादा रोजगार के मौकों के सहारे बचत बढ़ाई जा सकती है।

सर्वेक्षण में कहा गया है, “जैसा कि हालिया शोध बताते हैं कि भारत में कामगार आबादी की संख्या काफी अधिक है, इसलिए इस आबादी को रोजगार देकर बचत में वृद्धि की जा सकती है।

सर्वेक्षण में सुझाई गई रणनीति, उस रणनीति के बिल्कुल विपरीत है, जो वर्तमान में विकास और खपत को प्रोत्साहन देने के लिए अपनाई जा रही है। सरकार आय और फिर बचत बढ़ाने के लिए निजी निवेश का न केवल समर्थन कर रही है, बल्कि प्रोत्साहन भी दे रही है। कुल मिलाकर, बचत से खपत ही बढ़ेगी। मुक्त बाजार मॉडल का यही सार है।

बजट सत्र शुरू होने से ठीक पहले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा, “ऐसा पहली बार हुआ है कि वित्त मंत्री विभिन्न पैकेज लेकर आई हैं। 2020 में वास्तव में चार से पांच मिनी बजट थे। इसलिए, इस बजट को भी बजट की उस श्रृंखला के भाग के रूप में देखा जाएगा।”

उन्होंने प्रमुख रूप से संकेत दिए कि 1 फरवरी को पेश होने वाला बजट बीते साल सरकार द्वारा घोषित राहत पैकेज की श्रृंखला की पहली किस्त होगा। मोदी को बजटीय आवंटनों या घोषणाओं से इतर भारी वित्तीय पैकेजों की घोषणा के लिए जाना जाता है।

आर्थिक सर्वेक्षण में स्पष्ट रूप से एक सक्रिय राजकोषीय रणनीति की सिफारिश की गई है, जो पारंपरिक सालाना बजट के बजाय, परिस्थितियों का सामना करने के लिए तैयार की जाती है। महामारी का सामना करने के लिए सरकार द्वारा उठाए गए कदमों पर बात करते हुए, इसे ‘सक्रिय’ करार दिया गया। 

यदि सर्वेक्षण आर्थिक हालात का एक संकेत और भविष्य के लिए चेतावनी है तो बजट 2021-22 व्यापक रूप से सरकार आधारित खर्च का प्रयास होगा। पिछले 10 महीनों में सरकार पहले ही इन्फ्रास्ट्रक्चर को प्रोत्साहन देने के लिए कई पैकेज का ऐलान कर चुकी है। हम आने वाले साल में इस दिशा में काफी काम होने की उम्मीद कर सकते हैं।

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