पर्यावरण मुकदमों की डायरी: 15 दिन के अंदर प्रवासी मजदूरों को उनके घर भेजने का इंतजाम करें: सुप्रीम कोर्ट
यहां पढ़िए पर्यावरण सम्बन्धी मामलों के विषय में अदालती आदेशों का सार
On: Tuesday 09 June 2020

सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र और राज्य सरकारों को आदेश दिया है कि वो 15 दिनों के अंदर सभी प्रवासी मजदूरों को उनके घर भेजने का इंतजाम करें| इसके साथ ही 9 जून को जारी इस आदेश में सुप्रीम कोर्ट ने राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों को निर्देश दिया है कि वो प्रवासी मजदूरों पर दर्ज मामलों और शिकायतों को वापस लेने पर विचार करें| इस आदेश में आपदा प्रबंधन अधिनियम की धारा 51 के तहत दर्ज मामलों और शिकायतों को वापस लेने की बात कही गई है|
गौरतलब है कि लॉकडाउन के चलते जब प्रवासी मजदूरों के पास कोई काम और आय का स्रोत नहीं बचा तो ऐसे में वो अपने घरों/ गावों को लौटने को मजबूर हो गए थे| जब ये मजदूरों अपने गांवों को लौटने के लिए सड़कों पर उतरे, तो उनपर लॉकडाउन का उल्लंघन करने के आरोप में आपदा प्रबंधन अधिनियम, 2005 के तहत मामले और शिकायतें दर्ज की गई थी|
इसके साथ ही सुप्रीम कोर्ट ने सभी राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों को उनके अधिकार क्षेत्र में फंसे उन सभी प्रवासी मजदूरों की पहचान करने के लिए आवश्यक कदम उठाने को कहा है जो अपने गांव लौटना चाहते हैं| इसके साथ ही निर्देश दिया है कि उन्हें 15 दिनों के अंदर उनके घरों को भेजने का इंतजाम किया जाये|
इसके अलावा रेलवे को भी 24 घंटों के अंदर प्रवासी मजदूरों के लिए श्रमिक ट्रेनों की व्यवस्था करने को कहा है, जिससे उन्हें असुविधा न हो| इसके साथ ही केंद्र सरकार को उन सभी योजनाओं का विवरण देने के लिए कहा गया है, जो प्रवासी मजदूरों को उनके मूल स्थानों को लौटने में मददगार हो सकती हैं। यह कुछ निर्देश दिए हैं जो सुप्रीम कोर्ट ने लॉकडाउन की वजह से फंसे मजदूरों की पीड़ा को कम करने के लिए जारी किये हैं|
इस बाबत सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने सुप्रीम कोर्ट को जानकारी दी है कि अब तक विशेष श्रमिक ट्रेनों के माध्यम से लगभग 57.22 लाख प्रवासी मजदूरों को उत्तर प्रदेश, बिहार, झारखंड, ओडिशा, मध्य प्रदेश आदि राज्यों में उनके गंतव्यों तक पहुंचाया गया है| साथ ही लगभग 41 लाख प्रवासी श्रमिकों को सड़क के माध्यम से उनके इच्छित स्थान पर भेजा गया है|
गुजरात प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड ने भूजल प्रदूषण पर एनजीटी के सामने प्रस्तुत की अपनी रिपोर्ट
गुजरात प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (जीपीसीबी) ने कच्छ में प्रदूषित हो चुके भूजल को साफ करने और वहां से जिप्सम को हटाने के लिए क्या कार्रवाही की गई है उसपर एक रिपोर्ट नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल के सामने प्रस्तुत की है| यह मामला ग्राम लेर की भुज तालुका, जिला कच्छ, गुजरात से जुड़ा हुआ है| जहां आशापुरा पर्फोक्ले लिमिटेड की एक यूनिट ने जिप्सम को इस तरीके से डंप किया था कि उससे ग्राउंडवाटर प्रदूषित हो रहा था|
गौरतलब है कि यह रिपोर्ट एनजीटी द्वारा 20 नवंबर, 2019 को दिए आदेश पर प्रस्तुत की गई है| जिसमें एनजीटी ने सार्वजनिक स्वास्थ्य को ध्यान में रखते हुए भूजल की समय समय पर जांच करने के आदेश दिए थे| जिससे पानी की गुणवत्ता का पता लग सके| इसके साथ ही यदि भूजल पीने और अन्य उपयोग के काबिल नहीं है तो उसके बारे में भी सार्वजनिक नोटिस जारी करने का आदेश दिया गया था|
जीपीसीबी की रिपोर्ट में बताया गया है कि आशापुरा पर्फोक्ले लिमिटेड की यह इकाई गुजरात के कच्छ क्षेत्र में स्थित है| जहां बारिश कम होती है| रिपोर्ट के अनुसार इस यूनिट ने जनवरी 2019 से फरवरी 2020 के बीच 108185.48 मीट्रिक टन जिप्सम का निपटान कर दिया है| साथी ही यह भी पता चला है कि इस यूनिट ने 39 में से 26 साइट्स पर से जिप्सम को हटा दिया है, जबकि 13 पर अभी भी जिप्सम बाकी है| जिन दोनों जगह पर जहां भूजल को ठीक करने के लिए काम किया जा रहा है वहां से लिए पानी के नमूनों के विश्लेषण से पता चला है कि दोनों प्रदूषित बोरवेल में मौजूद अमोनिकल नाइट्रोजन में कमी आई है| हालांकि इसके बावजूद उसका स्तर सामान्य से काफी ज्यादा है|
इसके साथ ही यूनिट ग्राउंडवाटर को रिचार्ज करने के लिए प्रयासरत है जिससे भी प्रदूषण को कम करने में मदद मिलेगी| इसके साथ ही इस यूनिट को निर्देश दिया गया है कि वो उपयुक्त स्थानों पर और अधिक रेनवाटर हार्वेस्टिंग वेल्स का निर्माण करे| जिससे प्रदूषण को जल्द से जल्द कम किया जा सके और ग्राउंडवाटर को बहाल किया जा सके|