लॉकडाउन ग्रामीण अर्थव्यवस्था : हिमाचल में सेब के कारोबार पर संकट के बादल, खतरे में 4500 करोड़ की बागवानी

 लॉकडाउन की स्थिति में अभी तक बाहरी राज्यों से मधुमक्खियों के बॉक्स हिमाचल के बागवानों तक नहीं पहुंच पाए हैं

By Rohit Prashar

On: Tuesday 07 April 2020
 
पाॅलिनेशन के लिए बेहद जरूरी खेतों में रखे मधुमक्खियों के बाॅक्स। फोटो: रोहित पराशर

सेब बागवानी के लिए देश-दुनिया में पहचान पा चुके हिमाचल प्रदेश के बागवानों को करोड़ों रुपए का नुकसान उठाना पड़ सकता है। वैश्विक महामारी कोरोनावायरस के कारण समय पर पॉलिनेशन के लिए मधुमक्खियां, सेब की पैकेजिंग के लिए सामान और लेबर सही समय पर न मिल पाने की वजह से इस बार प्रदेश की 4,500 करोड़ रुपए की सेब बागवानी पर खतरे के बादल गहरा गए हैं। हिमाचल प्रदेश की जीडीपी में सेब बागवानी का अहम योगदान है। अकेली सेब बागवानी का प्रदेश की जीडीपी में 3.5 फीसदी शेयर है और इससे हिमाचल के लाखों लोग केवल सेब बागवानी के चलते रोजी रोटी पा रहे हैं। ऐसे में सेब बागवानी के लिए बेहद जरूरी माने जाने वाली मधुमक्खियों की उपलब्धता न होने के चलते इस क्षेत्र में भारी नुकसान के आसार जताए जा रहे हैं। सेब बागवानी 95 फीसदी मधुमक्खियों की वजह से होने वाली पॉलिनेशन के सहारे टिकी हुई है। हिमाचल की 80 फीसदी बागवानी के लिए मधुमक्खियां बाहरी राज्यों पंजाब, हरियाणा, राजस्थान और बिहार से लाई जाती हैं। लॉकडाउन की स्थिति में अभी तक बाहरी राज्यों से मधुमक्खियों के बॉक्स बागवानों तक नहीं पहुंच पाए हैं।

विशेषज्ञों की मानें तो वर्तमान में 6000 फीट तक की ऊंचाई वाले क्षेत्रों में सेब की पींक बड स्टेज शुरू हो गई है और इस समय फ्रूट सेटिंग की सबसे अहम कड़ी मधुमक्खियों का होना बहुत जरूरी है। इसके अलावा एक सप्ताह के भीतर 7500 फीट से ऊपर की उंचाई वाले क्षेत्रों में फ्रूट सैटिंग का काम शुरू हो जाएगा ऐसे में उन क्षेत्रों की जरूरत को ध्यान में रखते हुए सरकार को पहले से ही तैयारियां पूरी करने की जरूरत है।

सर्दियां अधिक होने के चलते दूसरे राज्यों में चले जाते हैं मधुमक्खी पालक

पहाड़ी राज्य होने के चलते हिमाचल में अधिक सर्दियां होती हैं और अधिक सर्दियों में मधुमक्खियों को जिंदा रखने में मधुमक्खी पालकों को अधिक मशक्कत का सामना करना पड़ता है। ऐसे में हिमाचल के मधुमक्खी पालक भी अपनी मधुमक्खियों को निचले मैदानी राज्यों में ले जाते हैं और मार्च माह के दूसरे दशक के बाद इन्हें प्रदेश में लाना शुरू कर देते थे, लेकिन इस बार न ही तो हिमाचल के मधुमक्खी पालक हिमाचल की वापसी कर पाए और न ही बाहरी राज्यों के पालकों को हिमाचल आने का मौका मिल पाया है। इस वजह से हिमाचल समेत बाहरी राज्यों के मधुमक्खी पालकों से बॉक्स किराये पर लेने वाले बागवानों को समय पर बॉक्स न मिलने के कारण नुकसान उठाना पड़ेगा।

सरकार की ओर से कोई पहल नहीं 

हिमाचल के मधुमक्खी पालक इकबाल सिंह ठाकुर ने डाउन टू अर्थ को बताया कि हर साल सेब सीजन के दौरान मधुमक्खियों की डिमांड ऊपरी शिमला, किन्नौर, कुल्लू और लाहौल क्षेत्र में बढ़ जाती है। लेकिन अबकी बार लॉकडाउन की वजह से उनकी मधुमक्खियां राजस्थान में हैं और उन्हें हिमाचल लाने के लिए न ही तो किसी प्रकार की सुविधा है और न ही सरकार ने अभी तक मधुमक्खी पालकों से इस बारे में किसी प्रकार की चर्चा कर बागवानों को राहत पहुंचाने के लिए किसी प्रकार की पहल की है। उन्होंने कहा कि सरकार को मधुमक्खी पालकों को सुविधाएं मुहैया करवानी चाहिए ताकि उन्हें बाहरी राज्यों की ओर रूख न करना पड़े। यदि वर्तमान परिस्थिति की तरह कुछ ऐसी आपदा आती है तो उसके लिए भी जल्द जरूरी कदम उठाने चाहिए।   

मधुमक्खियों के बाॅक्स को ढुलाई के लिए तैयार करते राजस्थान के मधुमक्खी पालकशिमला जिले के बागवान सुशांत कपरेट का कहना है कि इस बार फलावरिंग पिछले साल के मुकाबले कम है और लॉकडाउन की वजह से बागवानों को मधुमक्खियां नहीं मिल पा रही हैं। इससे बागवानों को भारी नुकसान उठाना पड़ सकता है। उन्होंने कहा कि करोड़ों रुपए के इस बागवानी क्षेत्र को बचाने के लिए सरकार को चाहिए कि समय रहते मधुमक्खियों का इंतजाम करे, साथ ही पैकेजिंग के लिए बंद पड़ी औद्योगिक इकाइयों को भी समय रहते खुलवाकर कार्टन और ट्रे के निर्माण में तेजी लाए। सुशांत कपरेट कहते हैं कि सेब बागवानी क्षेत्र में 60 से 70 फीसदी लेबर नेपाल, बिहार और यूपी से आती है, इसलिए सरकार को बागवानों के लिए लेबर मुहैया करवाने की दिशा में भी सोचना शुरू कर देना चाहिए। 

सेब बागवानों की नामी एसोसिएशन यंग एंड यूनाइटेड ग्रोवर एसोसिएशन हिमाचल प्रदेश के सचिव प्रशांत सेहटा का कहना है कि इस बार अधिक बारिश होने की वजह से नमी अधिक है, जिसकी वजह से इस बार काफी कम फ्लावरिंग हुई है। इससे इस बार कम फसल होने के आसार हैं। जितनी फ्लावरिंग हुई ,है उसे फ्रूट में कन्वर्ट करने के लिए सही पॉलिनेशन की बहुत जरूरत है। उन्होंने कहा कि हैंड पॉलिनेशन भी होती है लेकिन हिमाचल में ये संभव नहीं है, इसलिए मधुमक्खियों को होना बहुत जरूरी है।

इसलिए सरकार को चाहिए कि बागवानों को मधुमक्खियां समय पर उपलब्ध करवाने के साथ अन्य जरूरी उपकरण, दवाइयां और एंटी हेल नेट इत्यादि मुहैया करवाने के लिए एडवांस में तैयारियां करे ताकि बागवानों को होने वाले नुकसान से बचाया जा सके।

सेब पैकेजिंग के सामान को आवश्यक वस्तुओं की सूचि में ही नहीं

सेब पैकेजिंग के सामान को अभी तक सरकार ने आवश्यक वस्तुओं की सूची में शामिल नहीं किया है। इससे सेब पैकेजिंग का सामान तैयार करने वाली सभी फैक्ट्रियां बंद पड़ी हैं, जबकि पिछले वर्षां में फ्लावरिंग सीजन के दौरान ही पैकेजिंग के सामान के ऑर्डर जाने के साथ इसका निर्माण फैक्ट्री में शुरू हो जाया करता था।

पूर्व बागवानी मंत्री और वर्तमान में मुख्य सचेतक नरेन्द्र बरागटा ने मुख्यमंत्री से आग्रह किया कि कार्टन बक्सों तथा ट्रे के उत्पादन को आवश्यक वस्तुओं की सूची में शामिल किया जाए, ताकि इनके निर्माण में शामिल औद्योगिक इकाइयां शीघ्र उत्पादन कर सकें। इससे सीजन के दौरान सेबों तथा अन्य फलों की पैकिंग के लिए बक्सों तथा ट्रे की आवश्यक आपूर्ति सुनिश्चित होगी। 

सेब आढ़ती सुरेंद्र चौहान का कहना कि यदि लॉकडाउन के दौरान मधुमक्खियों का इंतजाम और पैकेजिंग इकाइयों के साथ लेबर की व्यवस्था नहीं हो पाती है तो इससे आधा सेब कारोबार चैपट हो जाएगा। उन्होंने कहा कि यदि लॉकडाउन लंबा चलता है तो सेब ढुलाई का काम करने वाली लेबर नेपाल और अन्य राज्यों से आती है तो उससे काफी नुकसान उठाना पड़ेगा। साथ ही सेब के परिवहन के लिए वाहनों की कम उपलब्धता से सेब दूसरे राज्यों और देशों तक नहीं पहुंच पाएगा। 

रासायनिक खाद से पहुंचा है नुकसान

रासायनिक खादों और कीटनाशकों के प्रयोग से प्राकृतिक मधुमक्खियों को बहुत अधिक नुकसान पहुंचा है। बागवान शिमला के बागवान रोहित शर्मा का कहना है कि दो दशक पहले तक मधुमक्खियां बाहरी राज्यों से लाने का कोई प्रावधान नहीं था, क्षेत्र में बहुत अधिक मात्रा में प्राकृतिक मधुमक्खियां होती थीं, लेकिन जैसे-जैसे रसायनों और कीटनाशकों का प्रयोग बढ़ा, वैसे-वैसे मधुमक्खियां और अन्य मित्र कीट जो पॉलिनेशन में अहम भूमिका निभाते हैं, उनकी संख्या अब न के बराबर रह गई है। इसलिए अब बागवानों को पाली हुई मधुमक्खियों के ऊपर निर्भर होना पड़ रहा है। 

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