पलायन की पीड़ा-4: पलायन के कारण एशिया के 20 देशों की बढ़ी आबादी

पलायन ऐसी समस्या है, जो केवल भारत ही नहीं, बल्कि सभी देशों में बढ़ रही है। इसकी वजह भी अलग-अलग है

By Anil Ashwani Sharma

On: Tuesday 07 April 2020
 
Migrant workers head back homes from Delhi on foot. Credit: Vikas Choudhary

कोरोनावायरस संक्रमण को फैलने से रोकने के लिए देश भर में लॉकडाउन की घोषणा होते ही बड़े शहरों में रह रहे प्रवासी मजदूर अपने घर लौटने लगे। चिंता थी कि 21 दिन के लॉकडाउन के दौरान काम नहीं मिला तो क्या करेंगे, कहां रहेंगे? रेल-बस सेवा बंद होने के बावजूद ये लोग पैदल ही अपने-अपने गांव की ओर लौट पड़े। कोई सैकड़ों किलोमीटर पैदल चलते हुए अपने-अपने घर पहुंच चुका है तो लाखों मजदूरों को जहां-तहां रोक दिया गया है। लेकिन इस आपाधापी में एक सवाल पर बात नहीं हो रही है कि आखिर हर साल लाखों लोग पलायन क्यों करते हैं? डाउन टू अर्थ ने इन कारणों की व्यापक पड़ताल की है। इसे एक सीरीज में वेब में प्रकाशित किया जा रहा है। पहली कड़ी में उत्तर प्रदेश के फतेहपुर जिले के एक गांव के लोग, जो सदियों से पलायन का दंश झेल रहे हैं। दूसरी कड़ी में आपने पढ़ा, खेतों में नहीं होती गुजर बसर लायक पैदावार । तीसरी कड़ी में आपने पढ़ा- क्यों इन राज्यों से होता है सबसे ज्यादा पलायन । अगली कड़ी में पढ़ें, दुनिया के दूसरे देशों की स्थिति -

 

अफ्रीका के 10 देशों से सबसे अधिक शरणार्थी पैदा होते हैं। उदाहरण के लिए 2018 में दक्षिण सूडान में शरणार्थियों की संख्या 23 लाख थी। यह संख्या अफ्रीका में पहले नंबर पर और दुनिया में तीसरे नंबर थी। पलायन करने वाले अधिकांश शराणार्थी पड़ोसी देश युगांडा में ही शरण लेते हैं। इसके बाद दशकों के संघर्ष के बाद सोमालिया दूसरा सबसे अधिक शरणार्थी पैदा करने वाला देश है। सूडान, लोकतांत्रिक गणराज्य कांगो, मध्य अफ्रीकी गणराज्य और इरिट्रिया से निकले शरणार्थियों की संख्या 12 लाख है। इन शरणार्थियों का सबसे बड़ा मेजबान युगांडा देश है। अफ्रीका में 2018 में बड़ी संख्या में आपसी संघर्ष के कारण सब सहारा अफ्रीका में विस्थापन हुआ। 2018 के आखिरी तक आपसी संघर्षों के कारण होने वाले विस्थापन में इथियोपिया और डेमोक्रेटिक रिपब्लिक कांगो अव्वल हैं। 

इथोपिया में संघर्षों के कारण हुआ विस्थापन 29 लाख था, यह विस्थापन विश्व स्तर पर पहले स्थान पर था और 2017 के मुकाबले बहुत अधिक था, जब 7 लाख लोग विस्थापित हुए थे। इसके अलावा 2018 में इथियोपिया में 2 लाख 90 हजार लोग प्राकृतिक आपदा के कारण विस्थापित हुए। यहां एक बात ध्यान में रखने की है कि मोजाम्बीक में इडाई व केनेथ चक्रवात के कारण बड़ी संख्या में लोग विस्थापित हुए। रिपोर्ट में कहा गया है कि दक्षिणी अफ्रीकी देशों में विस्थापन का एक बड़ा कारण तूफान व चक्रवात था। 

पूर्वी व दक्षिणी अफ्रीकी देशों में विस्थापन के बड़े कारणों में प्रमुख रूप से राजनीतिक अस्थिरता, सांप्रदायिक संघर्ष और शांति के लिए किए जा रहे प्रयासों का सफल न होना है। रिपोर्ट में स्पष्ट रूप से इस बात की ओर इंगित किया गया है कि पूर्वी और दक्षिणी अफ्रीकी देशों में जलवायु परिवर्तन के कारण लोगों का पलायन और विस्थापन हो रहा है। यही नहीं जलवायु परिवर्तन के कारण मध्य व पश्चिमी अफ्रीका में मानव की आजीविका पर प्रभाव पड़ा है। 2018 में नाइजीरिया में आई बाढ़ के कारण 6 लाख से अधिक लोग विस्थापित हुए।

एशिया के 20 देश ऐसे हैं जिनकी जनसंख्या 2009 से 2019 के बीच पलायन के कारण बढ़ी है। पलायन के कारण संयुक्त अरब अमीरात की जनसंख्या में 80 प्रतिशत, कुवैत व कतर की 79 प्रतिशत और बहरीन की 45 प्रतिशत बढ़ी है। 2018 में एशिया के दो देश सीरिया और अफगानिस्तान से सबसे अधिक शरणार्थी पड़ोसी देश तुर्की, लेबनान और जार्डन में गए। 2017 में अफगानिस्तान से 26 लाख और 2018 में 27 लाख शरणार्थी पड़ोसी देश पाकिस्तान और ईरान गए। 2018 के दौरान बड़ी संख्या में म्यांमार के रोहिंग्या शरणार्थियों ने बांग्लादेश में शरण ली। एशिया में प्राकृतिक आपदा के कारण फिलिपींस से 38 लाख लोग विस्थापित हुए। यह संख्या वैश्विक स्तर पर सबसे अधिक थी। बांग्लादेश, दुनिया का सबसे घनी आबादी वाला देश है। 

स्रोत : कॉनफ्रेंस पेपर (एसएसआरएन इलेक्ट्रॉनिक जर्नल, 2010 )  ·
पर्यावरणीय और भौगालिक रूप से यह कमजोर देश है। इस देश की आबादी कितनी घनी है इसका अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि एक छोटे से क्षेत्र में 13.3 करोड़ से अधिक लोग रहते हैं यानी प्रति किमी 21,209 से अधिक व्यक्तियों का घनत्व और यहां की 75 प्रतिशत आबादी ग्रामीण क्षेत्रों में रहती है। यहां ध्यान देने की जरूरत है कि उच्च जनसंख्या घनत्व जलवायु परिवर्तन के प्रति विभीषिका बढ़ जाती है क्योंकि अधिक लोग जोखिम की स्थिति में रहते हैं। यहां की लगभग 80 प्रतिशत भूमि बाढ़ग्रस्त है। यहां अक्सर चरम जलवायु घटनाओं का दौर आते रहते है, जिससे यहां के लागों के जीवन, संपत्ति और अर्थव्यवस्था को भारी नुकसान होता है। भविष्य में जलवायु परिवर्तन के कारण हिमालय के हिमनदों के पिघलने समुद्री स्तर को और बढ़ाएगा। बांग्लादेश में सामाजिक व आर्थिक जीवन जलवायु परिवर्तन से और अधिक प्रभावित होने की आशंका है।

बांग्लादेश में जलवायु परिवर्तन अधिकांशत: बंगाल की खाड़ी के उथलपुथल से होता है। विश्व बैंक की रिपोर्ट (2000) में यह कहा गया था कि बांग्लादेश में जलवायु परिवर्तन के कारण वैश्विक तापमान भविष्य के जल संसाधन प्रबंधन को जटिल बना देगा। यहां समुद्र स्तर लगभग 3 मिमी बढ़ रहा है। बांग्लादेश में विशेष रूप इसके तटीय क्षेत्र जलवायु परिवर्तन की चपेट में है। देश का तटीय क्षेत्र लगभग 30 प्रतिशत है और 2050 तक इसके 40 से 50 प्रतिशत तक और बढ़ने की संभावना है। इन तटीय क्षेत्रों में देश की 3.5 करोड़ लोगों का घर है। यानी जनसंख्या का एक चौथाई से अधिक। बांग्लादेश के सेंटर फॉर एडवांस स्टडीज का अनुमान है कि कुल भूमि क्षेत्र का लगभग 17.5 प्रतिशत हिस्सा जलमग्न होगा और इससे 11 प्रतिशत जनसंख्या विस्थापित हो जाएगी। देश में नदियों के कटाव में तेजी आई है। यह बांग्लादेश की प्रमुख और कुछ छोटी नदियों के साथ एक नियमित प्राकृतिक घटना बन गई है। रिवरबैंक कटाव प्रभाव के अध्ययन से पता चलता है कि यह कटाव देश के 50 जिलों में हो रहा है। नदी कटाव गंभीर है। कई लेखकों के अनुसार, नदी के किनारे कटने से हर साल 10 लाख बांग्लादेशी बेघर हो जाते हैं। 

पर्यावरणीय बदलाव के परिणामस्वरूप भारत में बांग्लादेशी शरणार्थियों की संख्या में तेजी से बढ़ोतरी हो रही है। अब कई शोधकर्ताओं ने तर्क दिया है कि जलवायु परिवर्तन इस घटना को और गंभीर बनाएगा। शाेधकर्ताओं का कहना है कि भविय में बांग्लादेश से भारत आने वाले शरणार्थियों की संख्या के मामले में दुनिया में पहले नंबर पर हो सकता है। अनुमान है कि 2.6 करोड़ शरणार्थी बांग्लदेश से भारत आएंगे। बीसवीं सदी में लगभग दो करोड़ शरणार्थी अवैध रूप से भारत के विभिन्न हिस्सों में जैसे पश्चिम बंगाल, असम और त्रिपुरा में रह रहे हैं। 

आगे पढ़ें: जलवायु परिवर्तन कितना दोषी

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