दो लाख मछुआरों के सामने रोजी-रोटी का संकट

लॉकडाउन के बाद से लेकर अब तक ये मछुआरे मछली नहीं मार पाए हैं, लेकिन 15 जून से 15 अगस्त तक मछली मारने पर पाबंदी लग जाएगी

By Anil Ashwani Sharma

On: Thursday 04 June 2020
 
मध्यप्रदेश के जिला मंडला के विकास खंड में गांव पिपरिया में कई दिन से नावें किनारे ही खड़ी हैं। फोटो: राजकुमार सिन्हा

मध्यप्रदेश सरकार के आदेश के बाद भी पिछले दो माह से राज्य के दो लाख से अधिक मछुआरे मछली नहीं मार पा रहे हैं, क्योंकि मध्यप्रदेश मत्स्य महासंघ द्वारा नीलामी के माध्यम से ठेकेदारों को दिए गए जलाशयों में सरकारी आदेश के बाद भी अब तक मछली मारने का काम शुरू नहीं किया गया है। यही नहीं, आगामी 15 जून से 15 अगस्त तक फिर सरकारी आदेश के बाद वे मछली नहीं मार पाएंगे। ध्यान रहे कि इस दौरान मछली के प्रजनन का समय होने के कारण जलाशयों से मछली मारना प्रतिबंधित हो जाता है।

कोविड-19 महामारी के कारण गत 24 मार्च, 2020 की मध्य रात्रि से घोषित लॉकडाउन के कारण मध्यप्रदेश के पूर्णकलिक लगभग 2 लाख 2 हजार मछुआरा सदस्यों के सामने आजीविका का संकट पैदा हो गया। मछुआरों की इस कमजोर आर्थिक स्थिति को देखते हुए केंद्रीय गृह मंत्रालय की सहमति के बाद राज्य के मछुआ कल्याण एवं मत्स्य विभाग ने लॉकडाउन होने के बावजूद 31 मार्च, 2020 को राज्य के मत्स्याखेट, मत्स्य परिवहन और मत्स्य विक्रय केद्रों को चालू करने की अनुमति दे दी थी।

इन आदेशों  के बाद बरगी जलाशय के मछुआरों ने तो मंडला और सिवनी जिले के कलेक्टर को भी अलग से पत्र लिख कर मत्स्याखेट कार्य शुरू करने का आग्रह किया था। परन्तु राज्य मत्स्य महासंघ और उनके द्वारा नीलाम किए गए जलाशयों के ठेकेदारों ने आज तक मत्स्याखेट कार्य शुरू नहीं किया।

अब मुश्किल से 11 दिन बचे हैं और यदि इन दिनों में भी मछुआरों को मछली मारने नहीं दिया जाता तो सरकारी आदेश के बाद भी मछुआरे लगभग साढ़े चार महीने तक मत्स्याखेट कार्य से वंचित हो जाएंगे।

मध्य प्रदेश मत्समहासंघ के अनुसार राज्य के 18 में से 2 जलाशयों (ओंकारेश्वर और इंदिरा सागर जलाशय) में मछली मारने का काम शुरू किया गया है। हालांकि जब इस संबंध में विस्तृत जानकारी के लिए जब जबलपुर स्थित मध्य प्रदेश मत्स्य महासंघ के क्षेत्रीय प्रबंधक सीएस मोहने से संपर्क करने  की कोशिश की गई तो बात नहीं हो सकी। वहीं, इस संबंध में ईमेल से भी सवाल पूछे गए।

दूसरी ओर बरगी मछुआओं के संगठन बरगी बांध विस्थापित मत्स्य उत्पादन एवं विपणन सहकारी संघ के अध्यक्ष मुन्ना बर्मन का कहना है कि यह सब महासंघ और उनके द्वारा नीलाम किए गए जलाशयों को लेने वाले ठेकेदारों की मनमानी है, क्योंकि अब ठेकेदार जो कि सरकार को अपने ठेके के लिए दी जाने वाली प्रतिवर्ष 70 से 80 लाख रुपए की रायल्टी को कम करवाना चाहते हैं, यह कह कर कि लॉकडाउन के कारण हमारे जलाशयों में मछली मारने का काम नहीं हो सका, जबकि वास्तविकता इसके विपरीत है।  

मध्यप्रदेश राज्य मत्स्य महासंघ 2 हजार हेक्टेयर से बड़े 18 जलाशयों में मत्सय पालन एवं प्रबंधन का कार्य करता है, जिसका कुल क्षेत्रफल 2 लाख 8 हजार हैक्टर है। इसका मुख्य उद्देश्य मत्स्य विकास तथा संबद्ध मछुआरों एवं उनके परिवारों की समाजिक आर्थिक उन्नति करना है। महासंघ के अनुसार इन 18 जलाशयों में 201 पंजीकृत प्राथमिक मछुआ सहकारी समितियां महासंघ की सदस्य हैं।  

ध्यान रहे कि राज्य में सर्व प्रथम बरगी जलाशय में ठेकेदारी प्रथा के खिलाफ 1992 में मछुआरों द्वारा विरोध किया गया था। तब 1993 में राष्ट्रपति शासन के दौरान तत्कालीन राज्यपाल कुंवर महमूदअली खान ने आखेटीत मछली के 20 प्रतिशत हिस्से पर मछुआरा का मालिकाना हक घोषित किया था। साथ ही मछुआरों की प्राथमिक समिति गठित करने का आदेश सहकारिता विभाग को दिया था। जिसके कारण बरगी जलाशय में 54 प्राथमिक समितियों का गठन हो पाया। 

1994 मे दिग्विजय सिंह के नेतृत्व में गठित सरकार ने बरगी जलाशय में मत्स्याखेट एवं विपणन का अधिकार 54 प्राथमिक सहकारी समितियों के फेडरेशन को 5 सितंबर,1994 को सोंप दिया। पूर्व प्रशासनिक अधिकारी एवं भारत जनआंदोलन के राष्ट्रीय अध्यक्ष स्वर्गीय ब्रम्हदेव शर्मा ने इसे मजदूर से मालिक बनने की यात्रा कहा था। लेकिन यह व्यवस्था 2006 तक ही चली और इसके बाद फडरेशन को भंग कर महासंघ बना दिया गया और इसके जलाशयों को नीलामी के माध्यम से दिया जाने लगा।

इसके बावजूद 2007 में मुख्य सचिव मध्यप्रदेश शासन की अध्यक्षता में हुई बैठक में यह निर्णय लिया गया कि मत्स्याखेट एवं विपणन कार्य मछुआरों की प्राथमिक समितियां करेंगी और इन समितियों का जलाशय स्तर पर यूनियन का गठन किया जाएगा। मत्स्याखेट में संलग्न मछुआरों को पारिश्रमिक के अतिरिक्त मत्सय विपणन से प्राप्त लाभ का लाभांश भी दिया जाएगा। लेकिन इन निर्णयों को आज तक अमल में नहीं लाया गया।

बर्मन कहते हैं कि मछुआरों का शोषण यही नहीं रूका बल्कि राज्य महासंघ और बरगी जलाशय के ठेकेदार के बीच 2018 में हुए अनुबंध के अनुसार कतला (मछली) चार किलो से बड़ी मछली पकड़ने पर पारिश्रमिक 28 रुपए प्रति किलो की दर से भुगतान निर्धारित किया गया है, जबकि राजस्थान सरकार द्वारा जारी 2019 के आदेशानुसार मेजर कार्प कतला 5 किलो की दर 148 रुपए प्रति किलो निर्धारित  की गई है। 

इसी तरह अन्य प्रजाति की मछली पकड़ने की पारिश्रमिक दर 28 रुपए प्रति किलो से भी कम है। वह कहते हैं कि कम दर देकर राज्य मत्स्य महासंघ मछुआरों की आर्थिक हालात दिन प्रति दिन और  कमजोर कर रहा है।

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