ग्रामीण अर्थव्यवस्था को मजबूत बनाने से थमेगा उत्तराखंड का पलायन

अल्मोड़ा में पलायन के कारण और रोकने के उपायों को लेकर उत्तराखंड पलायन आयोग ने एक रिपोर्ट तैयार की है। यह रिपोर्ट राज्य सरकार को सौंप दी है। 

By Varsha Singh

On: Monday 17 June 2019
 
उत्तराखंड पलायन आयोग ने अल्मोड़ा जिले पर तैयार की गई रिपोर्ट मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत को सौंपी। फोटो: वर्षा सिंह

ग्रामीण अर्थव्यवस्था को मजबूत बनाना ही उत्तराखंड के सबसे बड़े मर्ज पलायन का इलाज है। पौड़ी के बाद अल्मोड़ा को लेकर किए गए पलायन विभाग के अध्ययन में यही बात सामने आई है। रिपोर्ट में ये आशंका भी जतायी गई है कि जलवायु परिवर्तन आने वाले समय में पर्वतीय क्षेत्रों में कृषि और बागवानी को प्रभावित करेगा। इसलिए ग्रामीण अर्थव्यवस्था को कृषि-बागवानी के अलावा अन्य आर्थिक संसाधन भी तलाशने होंगे। पर्यटन यहां अहम भूमिका निभा सकता है।

पलायन आयोग और ग्राम्य विकास की रिपोर्ट के मुताबिक 90 फीसदी ग्रामीण क्षेत्र वाले अल्मोड़ा में ग्रामीण क्षेत्र की जनसंख्या वृद्धि दर -4.20 प्रतिशत है। जबकि जनपद की जनसंख्या दर –1.64 प्रतिशत है। अल्मोड़ा की आबादी में इस गिरावट की वजह पलायन है। 20 से 49 वर्ष की आयु के बीच के कामकाजी लोग रोजगार, शिक्षा, स्वास्थ्य की वजह से राज्य, देश, विदेश में पलायन कर रहे हैं। 80.47 प्रतिशत साक्षरता दर वाले पहाड़ी जिले में 748 पॉलिटेक्निक सीटों में से केवल 441 सीटों पर ही छात्रों ने प्रवेश लिए। आईटीआई में भी 1764 सीटों में से केवल 856 सीटों पर प्रवेश हुए। खाली सीटों की वजह से ये संस्थान भी अपनी दक्षता के लिहाज से कार्य करने में असमर्थ हो रहे हैं।

पलायन आयोग ने अपनी रिपोर्ट में कहा है कि पलायन की समस्या से निपटने के लिए ग्रामीण अर्थव्यवस्था में सुधार किए जाने की जरूरत है। यहां ऐसी कई जगहें हैं जिससे पर्यटन को बढ़ावा दिया जा सकता है। साथ ही लोगों को रोजगार मुहैया कराना होगा जिससे ग्रामीण क्षेत्रों से पलायन रोका जा सके। जनपद के आर्थिक आंकड़ों से पता चलता है कि अल्मोड़ा के किसान पारंपरिक खेती से दूर हो रहे हैं। इसलिए सिर्फ कृषि और बागवानी पर ध्यान देने की जगह अन्य माध्यमों से ग्रामीण आय को बढ़ावा देने की जरूरत है। यहां अब भी ऐसे कई गांव हैं जहां सड़कें नहीं पहुंचीं हैं, पीने के पानी की समस्या है, सिंचाई के पानी की समस्या है, अच्छे स्कूल नहीं हैं। ऐसे गांवों से सबसे अधिक पलायन हुआ है।

पलायन आयोग का मानना है कि जलवायु परिवर्तन से ग्रामीण अर्थव्यवस्था के बड़े पैमाने पर प्रभावित होने की आशंका है। खासतौर से जनपद के उप-उष्णकटिबंधीय हिस्सों में। इसलिए यहां फसल उत्पादन के तरीकों में बदलाव करना होगा। साथ ही यहां कोई भी नीति बनाने से पहले ग्रामीण सामाजिक अर्थव्यवस्था के विकास पर जलवायु परिवर्तन के प्रभावों को ध्यान में रखना होगा। हालांकि रिपोर्ट में जलवायु परिवर्तन के चलते अधिक पर्यटकों के आने की उम्मीद भी जतायी गई है। जैसा कि इस समय भी राज्य में हो रहा है। मैदानी हिस्सों में पड़ रही भारी गर्मी से लोग छुट्टियां बिताने पहाड़ी जगहों की ओर पहुंच रहे हैं।

ग्रामीण क्षेत्रों में आजीविका का मुख्य साधन खेती है। इसके बावजूद जीएसडीपी में इसका योगदान वर्ष 2011-12 में 31 प्रतिशत से घटकर 2016-17 में 21 प्रतिशत हो गया। यहां 75 प्रतिशत से अधिक किसान सीमांत हैं जिनके पास एक हेक्टेअर से कम कृषि भूमि है। जबकि 95 प्रतिशत से अधिक भूमि जोत दो हेक्टेअर से कम है। पलायन आयोग के मुताबिक बेमौसमी फसलें, खाद्य-फल प्रसंस्करण, डेयरी, दुग्ध उत्पादों के प्रसंस्करण और पर्यटन से ग्रामीण अर्थव्यवस्था को बेहतर बनाया जा सकता है। इसे कौशल विकास कार्यक्रमों से जोड़ा जा सकता है। साथ ही किसानों को ऐसी फसल उगानी चाहिए जिसकी बाजार में मांग हो और उनके उत्पादों को सीधे बाज़ार से जोड़ने की जरूरत है।

इसके साथ ही अल्मोड़ा के चाय बागानों को भी बढ़ाने की बात कही गई है। पलायन आयोग का मानना है कि चाय बागानों के लिए स्थानीय किसानों को लीज पर जमीन दी जा सकती है। चाय को प्रसंस्करण के लिए बागेश्वर के कौसानी में भेजा जाता है, जबकि यहां भी एक चाय फैक्ट्री का प्रस्ताव है। इस तरह टी टूरिज्म को भी बढ़ावा दिया जा सकता है।

राज्य में पहाड़ी जनपदों के सभी ग्रामीण क्षेत्रों में पुरुषों की तुलना में महिलाओं की आबादी अधिक है। इसीलिए ग्रामीण अर्थव्यवस्था में महिलाओं की भूमिका अहम है। यहां ज़मीनों के मालिक पुरुष हैं, जबकि किसान महिलाएं हैं। रोजगार की तलाश में पुरुष सदस्य शहरों की ओर चले गये हैं और महिलाएं खेतों में मजदूर के रूप में काम कर रही हैं। इसलिए रिपोर्ट में कहा गया है कि महिला किसानों को भी ज़मीन का हक देने वाली नीति होनी चाहिए। साथ ही महिलाओं को ध्यान में रखकर ही नीतियां तैयार करनी चाहिए। यही नहीं महिलाओं के कड़े श्रम को भी कम करने की जरूरत बतायी गई है।

मनरेगा ग्रामीण क्षेत्रों में आजीविका के बड़े साधन के रूप में उभरा है। वर्ष 2016-17 में 11.77 लाख लोगों के मुकाबले वर्ष 2017-18 में 14.14 लोगों ने मनरेगा के तहत श्रम किया है। इसमें 55 प्रतिशत महिलाओं की हिस्सेदारी है। अल्मोड़ा के सल्ट, स्याल्दे, भिकियासैंण और भैंसियाछाना विकासखंड सबसे पिछड़े पाए गए हैं। यहां सरकारी योजनाओं के ज़रिये लोगों को सशक्त करने की जरूरत बतायी गई है। साथ ही यहां स्वयं सहायता समूहों की संख्या बढ़ाई जा सकती है।

ग्रामीण पर्यटन को मजबूत करने के लिए इको टूरिज्म, होम स्टे योजना, स्थानीय त्योहारों जैसे रामलीला में पर्यटकों को बुलाने के प्रयास किये जा सकते हैं।

पलायन आयोग की रिपोर्ट पर मुख्यमंत्री त्रिवेन्द्र सिंह रावत का कहना है कि पलायन रोकने के लिए जनपदों का सर्वे हो चुका है, वहां आगे के लिए एक्शन प्लान तैयार किया जाए। पलायन को कैसे नियंत्रित किया जाए और किस प्रकार रिवर्स माईग्रेशन हो इसके लिए सुनियोजित तरीके से रोड मैप बनाया जाएगा। उन्होंने कहा कि होम स्टे, स्वयं सहायता समूहों को बढ़ावा देने, कृषि, बागवानी, स्थानीय उत्पादों को बढ़ावा देने के साथ ही उत्पादों की ब्रांडिंग और पैकेजिंग पर भी विशेष ध्यान दिया जाय। इसके लिए विभिन्न क्षेत्रों में उल्लेखनीय कार्य करने वाले लोगों से सुझाव भी मांगे गए हैं।

ग्राम्य विकास और पलायन आयोग के उपाध्यक्ष एस.एस. नेगी ने कहा कि सामाजिक-आर्थिक विकास को मजबूत बनाने और पलायन कम करने के लिए ग्रामीण क्षेत्र के लोगों और विभिन्न विश्वविद्यालयों, संस्थानों के विशेषज्ञों और छात्रों से सुझाव लिये गये हैं। उन्होंने बताया कि अल्मोड़ा के बाद पिथौरागढ़ और टिहरी के ग्रामीण क्षेत्रों में पलायन की वजहों को जानने और उसे दूर करने के उपायों को लेकर रिपोर्ट तैयार की जाएगी। 

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