विश्व दुग्ध दिवस: लॉकडाउन ने कम की ऊंटनी के दूध की खपत

दुनियाभर में एक जून विश्व दुग्ध दिवस के रूप में मनाया जाता है। यह पहली बार है कि जब ऊंटनी का दूध (कैमल मिल्क) विश्व दुग्ध दिवस का एजेंडा है

By Madhav Sharma

On: Monday 01 June 2020
 
Photo: Samrar Mukharjee

दुनियाभर में एक जून विश्व दुग्ध दिवस के रूप में मनाया जाता है। यह पहली बार है कि जब ऊंटनी का दूध (कैमल मिल्क) विश्व दूध दिवस का एजेंडा है। राजस्थान के कुछ इलाके ऊंटनी के दूध की वजह से जाने जाते हैं, लेकिन कोरोनावायरस की वजह से हुए लॉकडाउन ने ऊंटनी के दूध की खपत को प्रभावित किया है। इस दूध की सबसे ज्यादा जरूरत ऑटिज्म पीड़ित बच्चों को होती है, लेकिन लॉकडाउन की वजह से यह दूध इन बच्चों तक नहीं पहुंच पा रहा है।

ओडिशा के कटक में रहने वाले 11 साल के बेटे ज्योति स्वरूप महांती को बीते 15 दिन से दूध नहीं मिल पा रहा है। ज्योति के पिता जयदेव महांती ने डाउन टू अर्थ को बताया, ‘ऑटिज्म का अभी तक कोई इलाज नहीं है, लेकिन फूड एलर्जी में ऊंटनी का दूध काफी मददगार होता है। दूध से सेंशेसन, आई कॉन्टेक्ट और हाइपर टेंशन को काबू करने में मदद मिलती है। लेकिन लॉक डाउन की वजह से दूध की सप्लाई बाधित है। मैंने कई बार रेलवे में बात की है, लेकिन वहां से कोई जवाब नहीं मिल रहा है।’

वे आगे बताते हैं, ‘ऊंटनी का दूध हाइपर एक्टिविटी में काफी मददगार साबित होता है। 15-20 दिन से ज्योति को ये नहीं मिल पा रहा है तो उसमें चिड़चिड़ापन, गुस्सा बढ़ रहा है।’ ओडिशा में साइक्लोन के कारण कई दिन तक बिजली सप्लाई नहीं थी, इसीलिए दूध को स्टॉक करना भी संभव नहीं था। लॉकडाउन में सिर्फ एक बार ही हमें ये दूध मिल पाया है। इससे बच्चे की तबीयत पर काफी असर पड़ा है।

जयदेव की तरह ओडिशा के ब्रह्मपुर में रहने वाले चंदन कुमार आचार्य के 3 साल के भांजे को दूध की जरूरत है। अपने संपर्कों के चलते उन्होंने राजस्थान से लॉकडाउन के बीच में एक बार दूध मंगा लिया, लेकिन अब पाली जिले के फालना कस्बे में ट्रेन का ठहराव नहीं होने से दूध नहीं मिल पा रहा है। इनके पास सिर्फ 4 दिन का दूध ही बचा है।  वे कहते हैं, ‘बच्चे को रोजाना खाली पेट 100 एमएल दूध की जरूरत होती है, लेकिन अब रेलवे की तरफ से कोई मदद नहीं मिल रही। इसीलिए आगे दूध मिलने में संशय है।’

हालांकि राजस्थान में बच्चों के सबसे बड़े अस्पताल जेके लोन में अधीक्षक अशोक गुप्ता कहते हैं कि ऑटिज्म का कोई ड्रग नहीं है। ऊंटनी के दूध से कितना फायदा मिलता है इसका वैज्ञानिक शोध नहीं है, लेकिन लोगों में एक धारणा बन गई है कि इससे हाइपर टेंशन, फूड एलर्जी से फायदा मिलता है तो इसे उपयोग में लिया जा रहा है।

राजस्थान के पाली जिले से कैमल मिल्क की मार्केटिंग करने वाले कंपनी कैमल करिश्मा के सह संस्थापक हनुमंत सिंह राठौड़ ने डाउन टू अर्थ को बताया कि लॉकडाउन के बीच में रेलवे प्रशासन से बातचीत के बाद पाली जिले के फालना कस्बे में मालगाड़ी का ठहराव किया था, जिसमें देश के कई हिस्सों में ऊंटनी का दूध भेजा गया, लेकिन बीते कुछ दिनों से मालगाड़ी का ठहराव बंद कर दिया है। इसीलिए फिर से दूध की सप्लाई बंद हो गई। एक जून से पेसेंजर ट्रेन चलाई हैं। अब उम्मीद है कि सप्लाई वापस से शुरू हो जाएगी।’

वे आगे बताते हैं कि भारत में ऊंटनी दूध के सबसे ज्यादा ग्राहक ऑटिज्म पीड़ित बच्चों के अभिभावक ही हैं। मुंबई, हैदराबाद, भुवनेश्वर, कटक, बेंगलुरू जैसे शहरों में बड़ी मात्रा में हम दूध भेजते हैं। कोरोना के कारण लगे लॉक डाउन में इन शहरों में दूध का सप्लाई बंद हो गई है।

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