उज्जवला योजना के लिए पीएम ने की थी इस गांव की तारीफ, 50 फीसदी परिवार तंगहाल, न गैस, न गोबर

गोबर के बदले गैस योजना की वाहवाही भले ही हुई लेकिन सच्चाई यह है कि अब तक सात महीने में गांव के महज 50 फीसदी परिवार ही इसका लाभ ले पाए हैं।

By Rahul Kumar Gaurav

On: Friday 24 September 2021
 
Photo : बिहार के सुखैत गांव में चूल्हे पर खाना पकाती महिला, द्वारा : Tarun jha
Photo : बिहार के सुखैत गांव में चूल्हे पर खाना पकाती महिला, द्वारा : Tarun jha Photo : बिहार के सुखैत गांव में चूल्हे पर खाना पकाती महिला, द्वारा : Tarun jha

 
बिहार की राजधानी पटना से 200 किलोमीटर दूर मधुबनी जिला के झंझारपुर अनुमंडल में स्थित सुखैत गांव में कुल 104 परिवार हैं। इस गांव में दो परिवारों को छोड़कर सभी गरीबी रेखा के नीचे जीवन यापन करने वाले हैं। आजीविका के लिए महानगरों में अनौपचारिक श्रम पर मजबूर इस गांव के घरों में प्रधानमंत्री उज्जवला योजना के तहत मिलने वाले गैस सिलेंडर खाली रखे हैं और घरों से चूल्हे का धुंआ एक बार फिर उठने लगा है।  
 
 
अगस्त, 2021 में यह गांव तब अचानक से चर्चा में आया था जब इस गांव में कुल 1200 किलो गोबर व कचरा (60 फीसदी गोबर और 40 फीसदीे घरेलू कचरा) के बदले निशुल्क गैस सिलेंडर दिए जाने वाले मॉडल की प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के द्वारा 'मन की बात' कार्यक्रम में तारीफ की गई थी। डाउन टू अर्थ ने करीब एक महीने बाद सुखैत गांव के इस कचरा प्रबंधन मॉडल की पड़ताल की है। 
 
गांव के मुखिया विनोद शर्मा डाउन टू अर्थ से बताते हैं कि गांव में ज्यादातर उज्जवला योजना का लाभ लेने वाले परिवार भी गरीबी और सिलेंडर के ऊंचे दाम के चलते खाना फिर से धुएं वाले चूल्हे पर पकाने लगे हैं। वहीं, 104 परिवार के गांव में सिर्प 56 परिवारों को ही गोबर के बदले में दो महीने में गैस सिलेंडर मिल रहा है। जबकि लाभ पाने वाले इन 56 परिवारों में 35 परिवार ऐसे भी हैं जिन्हें उज्जवला योजना का लाभ भी अब तक नहीं मिला है। बीपीएल श्रेणी के तहत इस गांव में पीएम उज्जवला योजना के तहत 102 परिवार निशुल्क गैस सिलेंडर पाने के हकदार हैं।  
 
गांव में धुएं का प्रदूषण कम करने के लिए 4 फरवरी, 2021 को सुखैत गांव में  डॉ राजेंद्र प्रसाद केंद्रीय कृषि विश्वविद्यालय, पूसा व कृषि विज्ञान केंद्र की ओर से उन अति-गरीब परिवारों को मदद देने के लिए यह योजना शुरू की गई थी जो खाना पकाने के लिए पारंपरिक चूल्हे पर निर्भर थे। 
 
इस योजना की वाहवाही भले ही हुई लेकिन सच्चाई यह है कि अब तक सात महीने में गांव के महज 50 फीसदी परिवार ही इसका लाभ ले पाए हैं।
 
इस मॉडल के तहत प्रतिदिन 20 से 25 किलो गोबर और घर से निकलने वाले कचड़े का हिस्सा मिलाकर एक सेंटर पर देना होता है। 60 फीसदी गोबर और 40 फीसदी घर का कचरा। इस कचरे से खाद तैयार की जाएगी और उसे 6 रुपए प्रति किलो पर बेचा जाना है। 
 
वरिष्ठ भूमि वैज्ञानिक डॉक्टर शंकर झा ने डाउन टू अर्थ से बताया " सुखैत गांव के गोबर से 500 टन जैविक खाद बनाने की योजना है, लेकिन पहले चरण में सिर्फ 250 टन बनाने की योजना पर काम चल रहा है।"
 
 
क्यों सात महीने में सिर्फ 54 परिवार जुड़े ?
 
सुखैत गांव की सुनीता देवी (33वर्ष) जो तीन बच्चों की मां हैं बताती हैं कि, "उन्हें प्रधानमंत्री की उज्ज्वला योजना के तहत गैस सिलिंडर मिला था। लेकिन पति के दिल्ली में मजदूरी करने के वजह से परिवार हर महीने सिलिंडर भराने का ख़र्च नहीं उठा सकता इसलिए चूल्हा का उपयोग करती हैं क्योंकि चूल्हा जलाना सस्ता पड़ता हैं।"
 
जब हमने पूछा आप इस योजना से क्यों नहीं जुड़ी? तो वो बताती हैं कि, "खुद रहने के लिए जमीन नहीं है, मवेशी कहां रखें ?"
 
वहीं, गांव के ही मोहम्मद जैबार बताते हैं कि,"गांव के 104 घर में लगभग 40 फीसदी लोगों के पास मवेशी नहीं हैं। वो मुख्य रूप से दिल्ली और पंजाब की कमाई पर आश्रित हैं। ऐसे लोग गोबर कहां से लाएंगे। इसलिए यह सब इस योजना से वंचित हैं"
 
सुखैत गांव के स्थानीय निवासी और इस वर्ष मुखिया उम्मीदवार नीरज बताते हैं कि, "गांव के कुछ लोगों के पास इतनी जमीन नहीं है कि वह मवेशी का पालन कर सकें। मवेशी के लिए चारा उपलब्ध करा सकें। ये तो एक वजह है ही साथ ही जैविक खाद की बिक्री उतनी नहीं होती है जितनी रसायन खाद की। इसलिए भी ने किसानों को इस योजना से बहुत दिनों से नहीं जोड़ा गया है"
 
जब हमने कृषि विश्वविद्यालय के वैज्ञानिक व प्रोजेक्ट डायरेक्टर डॉ रत्नेश कुमार झा से पूछा कि, योजना से इतने कम लोग क्यों जुड़े है? तो वो बताते हैं कि, "हमारे योजना का मुख्य लक्ष्य उन गरीब किसानों को जोड़ना है जिन्हें उज्जवला योजना का लाभ अभी तक मिला ही नहीं है। जो आज भी गोयठा (गोबर को सुखा कर) और लकड़ी पर खाना बनाती हैं। हमारा लक्ष्य उन पर ज्यादा नहीं है जिन्हें एलपीजी मिल चुका है। साथ ही हम उन किसानों तक जल्द ही पहुंचेंगे जिन्हें एलपीजी मिला तो है लेकिन वह गैस भरा नहीं पा रहे हैं "
 
जैविक खाद की बिक्री पर झा जी बताते हैं कि, "किसानों का रसायन खाद के तरफ से ज्यादा झुकाव है। इसलिए थोड़ी दिक्कत आ रही है। लेकिन वक्त के साथ किसान जैविक खाद का महत्व समझेंगे।"
 
 
 
बिहार में गरीबी रेखा से नीचे के परिवारों की संख्या 2 करोड़ 74 लाख के लगभग हैं। मतलब बिहार में लगभग 35 प्रतिशत परिवार गरीबी रेखा से नीचे हैं। जबकि उज्ज्वला योजना 1.0 तहत बिहार में सिर्फ 87 लाख कनेक्शन उज्ज्वला योजना के लाभार्थियों को दिया जा चुका हैं। 

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