उत्तराखंड: व्यासी परियोजना से क्षमता के मुताबिक क्यों नहीं बन रही बिजली

व्यासी परियोजना की दोनों टरबाइन को चलाने के लिए यमुना में 60 क्यूमेक्स पानी की जरूरत है। जबकि अभी नदी में 25-30 क्यूमेक्स पानी का प्रवाह है।

By Varsha Singh

On: Saturday 14 May 2022
 
व्यासी हाइड्रो प्रोजेक्ट अभी तक अपनी पूरी क्षमता से बिजली का उत्पादन नहीं कर पा रहा है। फोटो: वर्षा सिंह

उत्तराखंड की राजधानी देहरादून के विकासनगर में यमुना नदी पर बनी व्यासी बांध परियोजना से अप्रैल के आखिरी हफ्ते से बिजली उत्पादन शुरू हो गया है। फिलहाल 60-60 मेगावाट की दो टर्बाइन अपनी पूरी क्षमता से बिजली उत्पादन नहीं कर रही हैं। यमुना में कम पानी के चलते एक टरबाइन तकरीबन 6 घंटे ही चल रही है। ऐसे समय में जब प्रचंड गर्मी में राज्य में बिजली की भारी किल्लत हो रही है। यमुना की जैव-विविधता को खतरे में डालकर, कई परिवारों को उनके पुरखों की ज़मीन से दर-बदर कर शुरू की गई इस परियोजना के औचित्य पर विशेषज्ञ सवाल उठा रहे हैं।

व्यासी की दोनों टरबाइन को चलाने के लिए यमुना में 60 क्यूमेक्स पानी की जरूरत है। जबकि अभी नदी में 25-30 क्यूमेक्स पानी का प्रवाह है। व्यासी परियोजना के अधिशासी निदेशक हिमांशु अवस्थी डाउन टु अर्थ को बताते हैं यमुना नदी में अभी पीछे से ही पानी कम आ रहा है। बरसात में जब नदी में पानी बढ़ेगा तो बिजली उत्पादन भी बढ़ जाएगा। बरसात में ही हमारी दोनों टरबाइन पूरी क्षमता से चल सकेंगी। बाकी समय पानी की उपलब्धता के आधार पर टर्बाइन चलाई जाएंगी

वह बताते हैं कि व्यासी परियोजना से फिलहाल तकरीबन 4 लाख यूनिट प्रतिदिन बिजली उत्पादन हो रहा है। यूपीसीएल से बिजली की मांग के आधार पर हम टर्बाइन चला रहे हैं। जब नदी में भरपूर पानी होगा तो हम यूपीसीएल को अपनी क्षमता बता देंगे। हिमांशु अवस्थी उम्मीद जताते हैं कि बरसात के मौसम में यमुना में पानी उपलब्ध होने पर व्यासी की दोनों टरबाइन एक साथ चलायी जा सकेंगी। साथ ही लखवाड़ परियोजना (300 मेगावाट)  की झील तैयार होने पर भी व्यासी में पानी की कमी पूरी की जा सकेगी। लेकिन लखवाड़ परियोजना केंद्र सरकार की है। जो दिल्ली समेत 6 राज्यों की पानी की जरूरत पूरी करने के उद्देश्य से बनाई जा रही है। जबकि व्यासी उत्तराखंड सरकार की परियोजना है।

रन ऑफ द रिवर योजना के तहत व्यासी जलविद्युत परियोजना की 60-60 मेगावाट की दो टर्बाइन को चलाने के लिए 59.89 क्यूमेक्स प्रति टर्बाइन जल प्रवाह चाहिए। जिससे कुल 375.24 मिलियन यूनिट ऊर्जा उत्पादन का आकलन किया गया था। जबकि लखवाड़ परियोजना शुरू होने पर सिर्फ व्यासी से 439.80 मिलियन यूनिट बिजली बनती। इस परियोजना की अनुमानित लागत में भी दस वर्षों में इजाफा हुआ है।

फरवरी 2010 में परियोजना की अनुमानित लागत 936.23 करोड़ आंकी गई थी। जो दिसंबर 2019 में बढ़कर 1575 करोड़ पहुंच गई। फरवरी 2022 में उत्तराखंड विद्युत नियामक आयोग के मुताबिक परियोजना की पूंजीगत लागत (कैपिटल कॉस्ट) 1777.30 करोड़ हो गई। जिसके लिहाज से अस्थायी टैरिफ लगभग रु.9.18/ किलोवाट ex-bus (Energy Charges X Scheduled Generationतय किया गया।

व्यासी परियोजना के अधिशासी निदेशक हिमांशु अवस्थी के मुताबिक परियोजना से जितना विद्युत उत्पादन होता है, उसी आधार पर यूपीसीएल से भुगतान किया जाता है। बिजली खरीद की दर हर साल रिव्यू की जाती है और हर तीन साल पर रिवाइज़ होती है। ऐसा नहीं है कि बिजली उत्पादन हो या नहीं, कंपनी को न्यूनतम राशि का भुगतान किया जाएगा।

यमुना में पानी कम है

गंगा नदी की तुलना में यमुना का जलग्रहण क्षेत्र बहुत कम है। ग्लेशियर से भी यमुना में कम पानी आता है। यमुना की प्रमुख सहायक नदी टोंस है जो व्यासी परियोजना से नीचे के क्षेत्र में यमुना से मिलती है। इसलिए व्यासी परियोजना को टोंस का पानी भी नहीं मिलता। 

ग्लेशियोलॉजिस्ट डॉ डीपी डोभाल बताते हैं उत्तराखंड में तकरीबन 968 छोटे-बड़े ग्लेशियर हैं। गढ़वाल में भागीरथी नदी के 250, अलकनंदा के 400 और कुमाऊं में कालीगंगा में 250 से अधिक ग्लेशियर हैं। जबकि यमुना नदी के मात्र 51 ग्लेशियर हैं और ये सभी छोटे आकार के हैं। ग्लेशियर से यमुना में एक-तिहाई पानी ही आता है। बाकी बारिश का पानी होता है

डॉ डोभाल कहते हैं हिमालयी क्षेत्र में हाइड्रो पावर प्रोजेक्ट लगने से पहले पानी के स्रोत यानी ग्लेशियर का गहन अध्ययन बहुत जरूरी है। पिछले 10-15 वर्षों में जलवायु परिवर्तन का असर बढ़ा है। तापमान बढ़ा है। बर्फ़बारी का समय और क्षेत्र दोनों सिकुड़ा है। 10-12 वर्ष पहले 4000 मीटर ऊंचाई तक बर्फ़बारी ही होती थी। अब 4300 मीटर तक बारिश हो रही है। जिससे ग्लेशियर सिकुड़ रहे हैं। इसका सीधा असर नदियों में पानी की मात्रा पर पड़ता है

उत्तराखंड जलविद्युत निगम को उम्मीद है कि मानसून के समय यमुना का बढ़ा पानी बिजली उत्पादन के काम आएगा। लेकिन मानसून में बारिश के पानी के साथ नदी में बहुत सारा खनिज, मलबा, पत्थर भी बहकर आते हैं। डॉ डोभाल कहते हैं बरसात में टरबाइन बंद करनी पड़ती है ताकि पानी के साथ बहकर आए मलबे से उन्हें नुकसान न पहुंचे

यमुना पर असर!

विकासनगर में लखवाड़ व्यासी यमुना स्वच्छता समिति के सदस्य यशपाल ठाकुर बताते हैं झील में पानी भरने के लिए रात होते ही यमुना नदी का प्रवाह बेहद कम कर दिया जाता है। हम पिछले 15 दिनों से ऐसा देख रहे हैं।नदी की मछलियों की स्थिति बेहद दयनीय हो जाती है। बड़ी मात्रा में इन मछलियों का शिकार किया जा रहा है। लोगों ने लाठी-डंडों से मछलियां मारी

इनमें आईयूसीएन की रेड लिस्ट में खतरे की जद में शामिल महाशीर मछली भी है। वह बताते हैं कि झील का पानी बढ़ने-घटने पर भी सैंकड़ों मछलियां मरी हुई मिलीं। हालांकि यूजेवीएन के हिमांशु अवस्थी नदी का पानी घटने से इंकार करते हैं। उनके मुताबिक नदी के पर्यावरणीय प्रवाह को सुनिश्चित किया जा रहा है।

अप्रैल के दूसरे हफ्ते में व्यासी परियोजना की झील में 630 आरएल मीटर पानी पर लोहारी गांव पूरी तरह समा गया था। अब लोहारी गांव के खेत और घर दोबारा दिखाई दे रहे हैं। यशपाल कहते हैं ऐसा लगता है कि गांव खाली कराने के लिए ही झील में पानी भरा गया था

Subscribe to our daily hindi newsletter