अनिल अग्रवाल डायलॉग: अक्षय ऊर्जा का लक्ष्य हासिल करने के लिए बढ़ानी होगी क्षमता

2030 तक भारत 455 गीगावॉट अक्षय ऊर्जा का दोहन करेगा। कोयले और गैस आधारित बिजली घरों पर निर्भरता को 78 फीसदी से कम करते हुए 55 फीसदी करने का लक्ष्य रखा है

By Rohit Prashar

On: Thursday 03 March 2022
 
सेंटर फॉर साइंस एंड एनवायरमेंट द्वारा आयोजित अनिल अग्रवाल डायलॉग में अक्षय ऊर्जा की भविष्य की संभावनाओं पर चर्चा की गई। फोटो: विकास चौधरी

कार्बन उत्सर्जन को कम करने को लेकर भारत की ओर से तय किए गए लक्ष्य की पूर्ति के लिए अक्षय ऊर्जा की ओर जाने की जरूरत है। वर्तमान में भारत में ऊर्जा की 80 फीसदी पूर्ति कोयला और गैस आधारित बिजली घरों से पूरी हो रही है। जबकि भारत की ऊर्जा की जरूरत को पूरा करने में अक्षय ऊर्जा का शेयर कुल 9.2 फीसदी है, जिसे वर्ष 2030 तक 32 फीसदी करने का लक्ष्य रखा गया है।

सेंटर फॉर साइंस एंड एनवायरमेंट (सीएसई) द्वारा आयोजित अनिल अग्रवाल डायलॉग के पांचवे सत्र में सीएसई की महा निदेशक सुनीता नारायण ने भविष्य में अक्षय ऊर्जा की जरूरत, संभावनाओं और चुनौतियों के बारे में जानकारी दी।

उन्होंने कहा कि भारत में अक्षय ऊर्जा की अपार संभावनाएं हैं और इनके सही दोहन से भारत की ऊर्जा की जरूरत को पूरा किया जा सकता है।

उन्होंने बताया कि भारत की ओर से वर्ष 2030 में कोयला और गैस आधारित थर्मल पावर प्रोजेक्ट से पैदा होने वाली बिजली की खपत को 78 से 55 फीसदी करने का लक्ष्य रखा गया है।

उन्होंने आंकडों सहित जानकारी दी कि वर्तमान में भारत में 2019 में अक्षय उर्जा की 22.7 फीसदी क्षमता है, जिसे 2030 तक 54.5 फीसदी तक बढ़ाकर 455 गीगावाट करने का लक्ष्य रखा गया है।

डॉयलॉग के दौरान सीएसई की औद्योगिक प्रदूषण यूनिट के कार्यक्रम निदेशक निवित कुमार यादव ने थर्मल पावर प्रोजेक्ट के सामने चुनौतियों के बारे में जानकारी दी।

उन्होंने बताया कि कोयला आधारित पावर प्रोजेक्ट बंद नहीं होंगे, बल्कि इनपर से निर्भरता को धीरे-धीरे कम किया जाएगा। थर्मल पावर प्रोजेक्ट भारत में कुल कार्बन एमिशन का एक तिहाई हिस्सा आता है, इसलिए इसमें सुधार की बहुत अधिक आवश्यकता है। भारत में केवल दो तिहाई पावर प्रोजेक्ट ही नियमों का सही से पालन कर रहे हैं।

सीएसई की जांच में भी पाया गया है कि जो नए पावर प्रोजेक्ट खुले हैं वो भी नियमों की सही से पालना नहीं कर रहे हैं। इसके पीछे सबसे बड़ा कारण पैनल्टी का बहुत कम होना है। यदि थर्मल पावर प्रोजेक्ट नियमों का पालन करते हैं तो वर्ष 2030 तक कार्बन एमिशन को 22 फीसदी तक कम किया जा सकता है।

सीएसई अक्षय ऊर्जा के वरिष्ठ निदेशक आदित्य बत्रा ने अक्षय ऊर्जा की चुनौतियों के बारे में बताया कि हमें अगर अपनी 2030 के अक्षय ऊर्जा के लक्ष्य को पूरा करना है तो वर्तमान की अक्षय ऊर्जा की क्षमता को कई गुना बढ़ाने की जरूरत है। हमें अक्षय ऊर्जा की क्षमता को बढ़ाने के साथ ग्रिड और वितरण की प्रणाली को भी बेहतर करना होगा, ताकि अक्षय ऊर्जा का सही से प्रयोग किया जा सके।

रिन्यू पावर, गुरूग्राम के सीईओ और चेयरपर्सन सुमंत सिंन्हा ने सोलर रेवल्यूशन के बारे में कहा कि कुछ समय पहले तक अक्षय ऊर्जा, कोयला और गैस बेस्ड पावर और जलविद्युत के मुकाबले में बहुत मंहगी थी, लेकिन तकनीक के विकास के साथ अब यह अब उनके बराबर होती जा रही है।

उन्होंने बताया कि हम दुनिया की तीसरी सबसे बड़ी मार्केट हैं और हमारी ऊर्जा की खपत दुनिया के मुकाबले तीन गुणा कम है।  इसलिए हमारे यहां इस क्षेत्र के लिए अपार संभावनाएं हैं और इससे आर्थिकी को बल मिलने के साथ रोजगार की अपार संभावनाएं हैं। भारत में जमीन की कमी नहीं है और ग्रिड व्यवस्था को सही करके लक्ष्यों को पाया जा सकता है।

मल्टीपल ऑर्बिट कन्सल्टिंग के फाउंडर सीईओ सुनील वाधवा ने ऊर्जा की पहुंच और ऊर्जा  क्रांति के बारे में जानकारी दी। उन्होंने पावर सेक्टर में ट्रांसमिशन सिस्टम को और बेहतर करने की जरूरत बताई।

केंद्रीय विद्युत प्राधिकरण के भूतपूर्व अध्यक्ष और योजना सदस्य पंकज बत्रा ने कहा कि हमें आज के समय में ऐसे सोचने और काम करने की जरूरत है जिससे भविष्य में कोयला आधारित पावर प्रोजेक्ट की जरूरत ही न पड़े। भारत में विंड और सोलर एनर्जी में इतनी क्षमता और संभावनाएं है कि वह न सिर्फ अपनी ऊर्जा की जरूरतों को पूरा कर सकता है, बल्कि सरप्लस उर्जा का निर्यात भी कर सकता है। उन्होंने कहा कि अक्षय ऊर्जा न सिर्फ आर्थिक रूप से बेहतर है बल्कि यह पर्यावरण के लिए भी लाभप्रद है।

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