एक सोलर पैनल करेगा दो काम, बिजली के अलावा मिलेगी अच्छी फसल

'एग्रीवोल्टिक्स' नामक यह तकनीक ने केवल किसानों के लिए फायदेमंद है साथ ही इसकी मदद से सोलर एनर्जी में भी वृद्धि की जा सकती है

By Lalit Maurya

On: Wednesday 05 August 2020
 

क्या टिंटेड (रंगीन) सोलर पैनल्स की मदद से ग्रीन एनर्जी और बेहतर फसलें दोनों को साथ-साथ प्राप्त किया जा सकता है? इसी को जानने के लिए यूनिवर्सिटी ऑफ कैंब्रिज द्वारा एक शोध किया गया। जिसके नतीजे हैरान कर देने वाले हैं। शोधकर्ताओं के अनुसार इन रंगीन और आधे पारदर्शी सोलर पैनल्स की मदद से न केवल सौर ऊर्जा प्राप्त की जा सकती है बल्कि पोषक फसलें भी उगाई जा सकती है। इस तरह उपजाऊ जमीन केवल सोलर पैनल्स को लगाने से ख़राब नहीं होती। उनसे फैसले भी प्राप्त की जा सकती हैं।

इस तरह यह किसानों के लिए दोहरे फायदे का सौदा हो सकता है। एक तरह इसकी मदद से ऊर्जा संकट से निपटने में मदद मिलेगी, वहीं साथ ही दुनिया में खाद्य समस्या से भी निपटा जा सकेगा। इससे किसानों को बाजार में आने वाले उतार-चढ़ाव से निपटने में भी मदद मिलेगी। साथ ही यह जलवायु परिवर्तन से जुड़े जोखिमों से निपटने में भी मददगार साबित होगी।

कैसे काम करती है 'एग्रीवोल्टिक्स' नामक यह तकनीक

हालांकि यह पहली बार नहीं है जब वैज्ञानिकों ने अर्ध-पारदर्शी सोलर पैनलों का उपयोग करके फसलों और बिजली का एक साथ उत्पादन किया है। लेकिन इस 'एग्रीवोल्टिक्स' नामक तकनीक में शोधकर्ताओं ने पहली बार नारंगी-रंग वाले पैनलों का उपयोग किया है जिससे प्रकाश की वेवलेंथ्स का पूरी तरह से इस्तेमाल किया जा सके। यह टिंटेड सोलर पैनल बिजली उत्पन्न करने के लिए नीले और हरे रंग की वेवलेंथ्स को अवशोषित कर लेते हैं। जबकि नारंगी और लाल वेवलेंथ्स को अपने में से गुजरने देते हैं जिससे पौधों के विकास में मदद मिलती है।

सभी हरे पौधे प्रकाश संश्लेषण की मदद से सूर्य के प्रकाश को रासायनिक ऊर्जा में परिवर्तित कर देते हैं जो उनकी वृद्धि को बढ़ाता है। इटली में किए अध्ययन में दो फसलों पालक और तुलसी पर इस तकनीक का अध्ययन किया था। इसमें पालक सर्दियों की और तुलसी गर्मियों की फसल है जिसके लिए बहुत सारे प्रकाश और उच्च तापमान की आवश्यकता होती है।

विश्लेषण से पता चला है कि पैनल्स की नीचे उगाए पालक और तुलसी के पौधों में प्रोटीन की अधिक मात्रा थी। शोधकर्ताओं का मानना है कि कम रोशनी की स्थिति में प्रकाश संश्लेषण की क्षमता बढ़ाने के लिए पौधे अतिरिक्त प्रोटीन का उत्पादन कर सकते हैं। इसके कारण पालक की पत्तियां लम्बी हो जाती हैं जो किसानों के दृष्टिकोण से फायदेमंद हैं। साथ ही वैज्ञानिकों का मानना है कि जैसे-जैसे दुनिया में प्रोटीन की मांग बढ़ रही है। यह तकनीक पौधों से अतिरिक्त प्रोटीन प्राप्त करने में मददगार हो सकती है।

क्या भारत में भी किसानों के लिए फायदेमंद हो सकती है यह तकनीक

भारत में एक बड़ी आबादी आज भी खेती से जुड़ी है, जिसके जीवन का आधार किसानी ही है। उसे अपनी फसलों से न केवल खाना मिलता है बल्कि वो इसकी आय का भी मुख्य स्रोत है। पर जिस तरह से देश में आज भी खेती से होने वाली आय में अनिश्चितता बनी रहती है वो किसानों के लिए परेशानी का एक बड़ा सबब है।

ऊपर से बाढ़, सूखा, ओले और तूफान का खतरा अलग से बना रहता है। यदि फसल तैयार हो भी जाए तो ऐसे में वो बिकेगी या नहीं उसकी कीमत क्या होगी इसका भी खतरा बना रहता है। जिस तरह से क्लाइमेट चेंज का खतरा बढ़ रहा है उसमें और भी अनिश्चितता आ रही है। ऐसे में यदि उनको अपनी जमीन से आय का एक और स्रोत मिल जाये तो यह उनके लिए दोहरे फायदे की बात हो सकती है। यह तकनीक उनके लिए वरदान साबित हो सकती है।

भारत सरकार ने भी किसानों की आय को बढ़ाने के लिए उनकी खाली और बेकार पड़ी जमीन पर सोलर पेनल्स लगाने की योजना बनाई थी जिससे प्राप्त होने वाली बिजली को सरकारों को बेचा जा सकता था। सोलर पैनल से किसान बिजली उत्पादन का कारोबार कर सकते हैं। इससे किसानों को हर साल 1 लाख रुपए तक कमाने का मौका मिलेगा। हालांकि सरकार की योजना खाली पड़ी जमीन पर सोलर पेनल्स लगाने की थी पर इस तकनीक की मदद से किसान अपनी उपजाऊ जमीन पर भी सोलर पैनल्स लगा सकते हैं और फसलों के साथ-साथ बिजली को बेच कर भी आय कमा सकते हैं ऐसे में यह उनके लिए दोहरे फायदे का सौदा होगा।

गौरतलब है कि भारत ने 2022 तक अक्षय ऊर्जा की मदद से 175,000 मेगावाट बिजली के उत्पादन का लक्ष्य रखा था। यदि यह योजना सफल रहती है तो न केवल किसानों की आय में वृद्धि होगी साथ ही भारत भी अक्षय ऊर्जा के अपने लक्ष्यों को प्राप्त कर सकेगा। साथ ही इससे कोयले पर निर्भरता घटेगी और ग्रीन हाउस गैसों के उत्सर्जन में भी कमी आएगी।

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