दुनिया की 5.6 करोड़ हेक्टेयर खाली पड़ी कृषि भूमि पर लगाए जा सकते हैं सोलर प्लांट

दुनिया भर में 8.3 करोड़ हेक्टेयर से ज्यादा कृषि भूमि खाली पड़ी है इस जमीन के करीब 68 फीसदी हिस्से पर सोलर प्लांट लगाए जा सकते हैं

By Lalit Maurya

On: Monday 28 December 2020
 

दुनिया की बेकार पड़ी 5.6 करोड़ हेक्टेयर कृषि भूमि पर सोलर प्लांट लगाए जा सकते हैं। यह जानकारी जर्नल रिन्यूएबल एनर्जी में प्रकाशित एक शोध में सामने आई है। पता चला है कि दुनिया भर में 8 करोड़ हेक्टेयर से ज्यादा कृषि भूमि खाली पड़ी है, जिस पर खेती नहीं की जा रही। इस जमीन के करीब 68 फीसदी हिस्से पर सोलर प्लांट लगाए जा सकते हैं, जबकि बाकी 2.4 करोड़ हेक्टेयर (32 फीसदी) बायोएनर्जी के लिए उपयुक्त है। 

यह शोध 1992 से 2015 के आंकड़ों पर आधारित है। इस 8.3 करोड़ हेक्टेयर जमीन में से 30 फीसदी एशिया में, 28 फीसदी अमेरिका में, 22 फीसदी अफ्रीका में, 20 फीसदी यूरोप में और 5 फीसदी ओशिनिया में स्थित है। 

सही भूमि उपयोग से हर वर्ष किया जा सकता है 214 एक्साजूल्स ऊर्जा का उत्पादन 

यदि इस जमीन का सही उपयोग किया जाए तो इससे कुल मिलकर हर वर्ष करीब 214 एक्साजूल्स ऊर्जा का उत्पादन किया जा सकता है। इसमें से 179 एक्साजूल्स सौर ऊर्जा के जरिए और बाकी 35 एक्साजूल्स बायोएनर्जी से प्राप्त की जा सकती है। 

गौरतलब है कि इसी को ध्यान में रखकर भारत में भी जुलाई 2019 में प्रधानमंत्री कुसुम योजना शुरू की गई थी। इस योजना के तहत किसान अपनी खाली पड़ी जमीन पर सोलर प्लांट लगाकर ऊर्जा का उत्पादन कर सकते हैं। इस ऊर्जा की मदद से वो अपनी जमीन में सौर ऊर्जा उपकरण और पंप लगाकर अपने खेतों की सिंचाई कर सकते हैं। साथ ही अगर किसी किसान के पास बंजर भूमि है तो वह उसका इस्तेमाल सौर ऊर्जा उत्पादन के लिए कर सकता है। वो इस बिजली को ग्रिड को दे सकता है, इससे उसे बंजर जमीन से भी आमदनी होने लगेगी।

इसकी मदद से 2050 तक उतनी ऊर्जा उत्पन्न की जा सकती है जो विश्व में रिन्यूएबल एनर्जी की 33 से 50 फीसदी मांग को पूरा कर सकती है। यह जलवायु परिवर्तन को रोकने में भी मददगार हो सकता है। हमारे पास भूमि सीमित है, जिसपर पहले ही खाद्य उत्पादन और जंगल एवं जैविविधता को बचाए रखने का दबाव बढ़ता जा रहा है। ऐसे में इस जमीन का ऊर्जा उत्पादन के लिए उपयोग संघर्ष का कारण बन सकता है। 

यही वजह है कि खाली पड़ी कृषि भूमि पर रिन्यूएबल एनर्जी का उत्पादन, जलवायु के दृष्टिकोण से तो बेहतर है ही साथ ही इसकी मदद से सोलर और बायोएनर्जी के लिए जमीन को लेकर होने वाले संघर्षों को भी सीमित किया जा सकता है। भूमि के सही प्रबंधन से न केवल कृषि और जैवविविधता को मदद मिलेगी साथ ही इससे रिन्यूएबल एनर्जी के उत्पादन में भी वृद्धि होगी।

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