क्यों एनटीपीसी थर्मल प्लांट को बंद कराना चाहते हैं कहलगांव के लोग?

सरकार के नियम के मुताबिक, 25 साल में पावर प्लांट बंद हो जाने चाहिए, लेकिन कहलगांव का पावर प्लांट अब तक चलाया जा रहा है

By Pushya Mitra

On: Monday 15 February 2021
 
फोटो- एनटीपीसी कहलगांव के बाहर बिखरी प्रदूषणकारी राख। फोटो: पुष्यमित्र

इस साल 17 जनवरी को बिहार के कहलगांव में एक जनसभा हुई। उस सभा में पहुंचे लोगों ने कहा कि उनके शहर में पिछले 28-29 साल से चल रहे कोल पावर प्लांट से स्थानीय लोगों को फायदे के बदले नुकसान ही अधिक हुआ है और पिछले एक-दो साल से इसकी वजह से लोगों को नियमित तौर तबाही का सामना करना पड़ रहा है। इसलिए सरकार को अब इस थर्मल पावर प्लांट को बंद कर देना चाहिए।

इन जनसभा के तीन दिन बाद ही 20 जनवरी को पावर प्लांट का एश डाइक बांध टूट गया और आसपास के किसानों की 20 एकड़ जमीन में राख फैल गयी और उनकी फसल बरबाद हो गयी। इससे पहले नवंबर, 2020 में भी ऐसी घटना हो चुकी है, जब इन पावर प्लांट से निकलने वाली राख सैकड़ों एकड़ जमीन में फैल गयी थी। अब ऐसी घटनाएं कहलगांव में नियमित तौर पर होने लगी हैं।

कहलगांव के वरिष्ठ पत्रकार  प्रोफेसर पवन कुमार सिंह कहते हैं, अब सही समय आ गया है इस मांग को उठाने का कि जब तक एनटीपीसी राख का निपटान और प्रबंधन दुरुस्त न कर ले तब तक बिजलीघर को बंद कर दिया जाए। बिजली की अब कोई कमी नहीं है। एकाध बिजलीघर बन्द हो जाने से भी कोई फर्क नहीं पड़ने वाला। ऐसे भी पिछले दिनों लैगून थ्री डी के टूटने से तीन बार हफ्तों बिजलीघर बंद हो गया तो क्या पहाड़ टूट पड़ा? बिजलीघर तब तक बंद रखा जाए जब तक चुटकी-चुटकी राख कहलगांव की छाती से उठा न ली जाए और चिमनी सहित ऐश डाइक का प्रबंधन मानकों के अनुकूल न कर लिया जाए।

वे कहते हैं, अब पावर प्लांट काफी पुराना हो गया है। न सिर्फ इसकी राख बार-बार खेतों में फैल जा रही है। इसकी चिमनी से भी जहरीला धुआं निकल रहा है, जो लोगों को बीमार बना रहा है।

दरअसल भागलपुर जिले के कहलगांव स्थित एनटीपीसी के इस कोल पावर प्लांट का निर्माण 1985 में शुरू हुआ था और इससे विद्युत उत्पादन 1992 में शुरू हुआ। शुरुआत से ही स्थानीय पर्यावरणविदों ने इसके निर्माण पर आपत्ति जताई थी। उनका कहना था कि गंगा नदी के किनारे बसा यह इलाका खेती के लिहाज के काफी उर्वर है। यहां दाल और पान की अच्छी खेती होती है। गंगा नदी के इस इलाके में डॉल्फिन भी भरपूर संख्या में पाये जाते हैं। ऐसे में एनटीपीसी पावर प्लांट के खुलने से इस इलाके की इकॉलॉजी ध्वस्त हो जायेगी।

पर्यावरणविद एवं सामाजिक कार्यकर्ता अनिल प्रकाश ने तब कई अखबारों में इससे संबंधित आलेख लिखे थे। मगर उस वक्त वादा किया गया था कि इस इलाके में पावर प्लांट के छह किमी के दायरे में सभी को मुफ्त बिजली मिलेगी।

उस इलाके के रहने वाले रविशंकर सिंह कहते हैं, मेरा गांव एनटीपीसी से छह किलोमीटर के दायरे में पड़ता है। प्रदूषण के कारण यहां पेड़ों की हरियाली समाप्त हो गई है। पेड़ के पत्तों पर राख की मोटी परतें बिछी हुई हैं। और तो और प्रदूषण के कारण लोगों में सांस फूलने की समस्या और विकलांगता बढ़ी है। यह धना, आम और पान का इलाका रहा है। मगर एनटीपीसी की वजह से सब नष्ट हो गया।

2340 मेगावाट उत्पादन क्षमता वाले इस कोल पावर प्लांट से आजकल बिजली उत्पादन भी क्षमता के अनुरूप काफी कम हो रहा है। क्योंकि बिजली महंगी होने के कारण यहां की बिजली की अब उतनी अधिक मांग नहीं होती।

अनिल प्रकाश कहते हैं कि केंद्र सरकार ने भी तय किया है कि वह 25 साल पुराने कोल पावर प्लांट को बंद कर देगी। कहलगांव का पावर प्लांट वैसे भी स्थापना के अनुसार 35 साल का और विद्य़ुत उत्पादन के अनुसार 28 साल का हो चुका है। 28 साल तक इस इलाके के 30 गांवों को इस पावर प्लांट की वजह से बहुत दुख झेलने पड़े। यहां कोयला भी राजमहल की पहाड़ियों से आता है, जिसकी गुणवत्ता अच्छी नहीं है, जिस वजह से फ्लाई एश का उत्पादन काफी अधिक होता है। इसलिए अब इसे बंद कर देना चाहिए। वे कहते हैं कि एनटीपीसी के प्लांट में कोयले के बदले सोलर बिजली उत्पादन की योजना है। मगर हमारा मानना है कि सोलर वाला प्लांट भी कहीं और लगे और यह जमीन उन किसानों को वापस कर दी जाये, जिनसे यह अधिग्रहित की गयी है।

हालांकि एनटीपीसी, कहलगांव के जनसंपर्क अधिकारी सौरभ कुमार कहते हैं कि कहलगांव थर्मल पावर प्लांट का गौरवमय इतिहास रहा है, इसकी उत्पादन क्षमता काफी अच्छी है। इसलिए इसे बंद करने के बारे में सोचा भी नहीं जा सकता। फ्लाई एश के किसानों के खेत में बिखरने के सवाल पर वे कहते हैं, किसानों को उनकी क्षति का मुआवजा मिल ही जाता है।

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