Environment

पद्मावत

इस बार पद्मावती को बचाने कोई नहीं निकला। सब के सब अपने एचडी टीवी-मोबाइल–लैपटाप की चिलम में तरक्की और विकास के नशे का दम लेकर बेसुध पड़े थे। पद्मावती मर गई। 

 
By Sorit Gupto
Published: Friday 15 December 2017
सोरित/सीएसई

हरियाली से ढंकी सुरम्य पहाड़ियों के बीच बसा था एक छोटा सा राज्य, जिससे होकर गुजरती थी पहाड़ी नदी। नाम था उसका पद्मा। इसी से इस राज्य का नाम पड़ा था पद्मावती। पद्मावती की खूबसूरती की चर्चा दूर-दूर तक थी। छुट्टियों में दूर–दूर से सैलानी यहां पर घूमने आते और यहां की साफ हवा, शीशे जैसे स्वच्छ पानी और प्राकृतिक  हरियाली के बीच कुछ दिन गुजार कर एकदम तरोताजा होकर लौटते।

अपने अनुपम प्राकृतिक सौंदर्य और अकूत खनिज सम्पदा के लिए पद्मावती को न केवल वहां के लोग बल्कि  दूर–दूर तक “रानी पद्मावती” के नाम से जानते थे। परन्तु हाय! मानो रानी पद्मावती की खूबसूरती ही उसके लिए अभिशाप बन गई थी। एक दिन पद्मावती के लोगों ने अपने इस प्यारे राज्य को चारों ओर से सैनिक छावनियों से घिरा हुआ पाया। उनके राज्य पर दूर देश के किसी राजा ने हमला बोल दिया था। पर उस छोटे से राज्य के लोगों ने अपनी जान पर खेल कर उस दूर देश की विशाल सेना का न केवल सामना किया बल्कि उनको वहां से भागने पर भी मजबूर कर दिया। एक बार फिर पद्मावती अपने उस रूप में लौट आई थी जिसके लिए वह दूर-दूर तक मशहूर थी, पर यह शांति ज्यादा दिन तक नहीं टिक पाई।

लोगों ने पाया कि  सैलानियों के वेश में “इन्वेस्टर” आने लगे थे जो लोगों को सपने बेच रहे थे। सपने विकास के, सपने तरक्की के और सपने अच्छे दिनों के। मसलन, उनमें से किसी एक ने कहा, “पद्मावती खूबसूरत तो है पर उसकी जीडीपी बहुत कम है।” किसी दूसरे ने कहा,“पद्मावती में तरक्की नहीं हो रही है और उसके लिए यहां प्रत्यक्ष विदेशी निवेश यानी एफडीआई की जरूरत है।”

पद्मावती के लोगों को कुछ समझ में नहीं आ रहा था। यह शब्द उनकी समझ के बाहर थे। तब “इन्वेस्टरों” ने अपनी जांची-परखी चाल को चला जिसके तहत पद्मावती में सस्ते लोन और ईएमआई की बाढ़ आ गई। जल्द ही वहां निजी कारों की भीड़ लग गई थी। कल तक जहां चिड़ियों की चहचाहट सुनाई पड़ती थी अब वहीं ट्रैफिक जाम और हॉर्न  का शोर था। केवल यही नहीं जंगल के जंगल काट-काट कर वहां बहुमंजिली इमारतें बन गईं जिनमे ज्यादातर वहां के स्थानीय निवासियों ने नहीं बल्कि बाहर के लोगों ने खरीदा था जिनके लिए वह मकान नहीं बल्कि “इन्वेस्टमेंट” था।  एक ओर पद्मावती के लोगों की जरूरतें बढ़ती जा रही थीं और साथ ही  साथ बढ़ता चला जा रहा था उसका लालच और इसी के साथ बढ़ती जा रही थी पद्मावती की जीडीपी!

पद्मावती अब खनिज सम्पदा, अपने जंगलों की कीमती लकड़ी के लिए मशहूर थी। टाइम पत्रिका ने “पद्मावती निवेश विशेषांक” निकाले तो फोर्ब्स पत्रिका ने अपने सालाना धनी लोगों की सूचि में पद्मावती के कुछ लोगों के नामों को शामिल किया। कल तक वहां की पगडंडियों में किसी झरने सी छलांग लगाती-उछलती-कूदती बच्चियों ने अब कैटवाक करते हुए बेवकूफी भरे सवालों के, उससे भी अधिक बेवकूफी भरे जवाब देकर “विश्व-सुंदरी” बनने  के सपने देखना शुरू कर दिया था। जल्द ही एक बार फिर पद्मावती को किसी दूर देश की सेना ने घेर लिया। इस बार छावनियां नहीं पड़ी थीं बल्कि इस बार पद्मावती को डम्पर, बुलडोजर, सीमेंट मिक्सर और लैंड-मूवरों से घेरा गया।

इस बार पद्मावती को बचाने कोई नहीं निकला। सब के सब अपने एचडी टीवी-मोबाइल–लैपटाप की चिलम में तरक्की और विकास के नशे का दम लेकर बेसुध पड़े थे। पद्मावती मर गई। अपनी ही पहाड़ियों की लाल धूल और गर्द व फैक्टरी के काले धुएं में उसका दम घुट गया। कुछ लोग कहते हैं कि उसने जौहर व्रत लेकर अपनी जान दे दी, कुछ लोग कहते हैं कि उसका दम घोंट दिया गया। सच क्या है किसे पता?

कहते हैं कि पद्मावती की आत्मा आज भी वहां भटकती देखी जा सकती है जो कभी लाल गर्द की शक्ल में नंगी पहाड़ियों पर भटकती है तो कभी नदी में बहते काले पानी में झाग के रूप में दिखती है।

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