Environment

कानून और पर्यावरण की उपेक्षा

रैट-होल कोयला खदानों से कोयले के सुरक्षित खनन जैसी कोई चीज नहीं है और इसलिए इस पुराने तरीके को तत्काल बंद करना होगा

 
By Chandra Bhushan
Published: Wednesday 17 April 2019

तारिक अजीज/सीएसई

जिन लोगों ने रैट होल कोयला खदानों को नजदीक से देखा है, वे जानते हैं कि मेघालय के पूर्वी जयंतिया हिल्स के कसान में स्थित इन खदानों में पानी भरने के बाद इनमें फंसे 15 खनिकों के बच निकलने की संभावना बहुत कम थी। मैं एक बार इस तरह की खदान में जा चुका हूं। आपको बता सकता हूं कि यह हमारी सोच से भी परे है कि कोई भी व्यक्ति इतनी छोटी जगह में कैसे जा सकता है और हाथों से मामूली औजारों के साथ कोयले की खुदाई कैसे कर सकता है।

वर्ष 2011 में मेघालय के स्थानीय कार्यकर्ताओं के अनुरोध पर सेंटर फॉर साइंस एंड एनवायरमेंट की ओर से मैं और मेरे एक साथी रैट-होल खनन से पर्यावरण पर पड़ने वाले प्रभावों का अध्ययन करने के लिए मेघालय गए। हमने राज्य की प्रमुख खदान क्षेत्रों का दौरा किया, आंकड़े एकत्र किए तथा पानी के नमूनों की जांच की। हमने पाया कि वहां काम की परिस्थितियां अमानवीय हैं, बड़े पैमाने पर पर्यावरण को नुकसान हो रहा है तथा राज्य और स्थानीय सरकार की अनदेखी के कारण खदानों में काम करने वाले कानूनी की अनदेखी कर रहे हैं। रैट-होल खदान में एक गहरा लंबा शाफ्ट होता है जिसमें दो से चार फुट की संकरी सुरंग होती है। खदान में काम करने वाले मजदूर कोयला लाने के लिए इन संकरी सुरंगों में कई सौ फुट नीचे जाते हैं। इन खदानों को बनाने और चलाने के लिए पुराने जमाने के औजारों का इस्तेमाल किया जाता है जिसके कारण आए दिन दुर्घटनाएं होती रहती हैं लेकिन इनमें से अधिकांश दुर्घटनाएं सामने नहीं आ पातीं।

वर्ष 2011-12 में रैट-होल खदानों से लगभग एक लाख टन कोयले का उत्पादन हुआ। लेकिन यह उत्पादन पर्यावरण पर हुए व्यापक दुष्प्रभावों के आगे बहुत कम है। मेघालय के कोयले में सल्फर की मात्रा अधिक है जिस कारण इन खदानों से सल्फ्यूरिक एसिड निकलता है। कुछ जगहों पर सल्फ्यूरिक एसिड की मात्रा इतनी ज्यादा है कि पानी में भी एसिड पहुंच गया है जिससे जलीय जीवन को तो नुकसान पहुंचा ही है, साथ ही जलविद्युत परियोजनाओं और बांधों पर भी इसका विपरीत असर हुआ है।

खदानों में जिस तरह कानून तोड़ा जा रहा है, वह सबसे दुखद था। इनमें से किसी भी रैट-होल खदान के पास लीज नहीं है। दूसरे शब्दों में कहें तो कागजों पर इनका अस्तित्व ही नहीं है। ये सभी खदानें पर्यावरण मंत्रालय या प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड से पर्यावरण मंजूरी लिए बिना चल रही हैं। ये अवैध गतिविधियां संविधान की छठीं अनुसूची में शामिल क्षेत्रों में खनन संबंधी कानूनों की कथित अस्पष्टता के कारण चल रही हैं। हमें बताया गया कि चूंकि मेघालय छठी अनुसूची में शामिल राज्य है और यहां भूमि के संबंध में कोई भी कानून बनाने का अधिकार स्वायत्त जिला परिषदों के पास है, इसलिए भूमि मालिक राज्य अमइथवा केंद्र सरकार से कोई भी अनुमति लिए बिना खनन कर सकते हैं। इन खदानों को सही ठहराने के लिए यह तर्क भी दिया गया था कि मेघालय की कोयला खदानों का कभी भी राष्ट्रीयकरण नहीं किया गया था।

हालांकि हमने यह पाया कि कोयला खदान (राष्ट्रीयकरण) अधिनियम, 1973 के तहत खासी और जयंतिया की कोयला खदानों का राष्ट्रीयकरण किया गया था। हमें यह भी पता चला कि छठीं अनुसूची के अनुच्छेद 9 में स्पष्ट रूप से उल्लेख किया गया है कि “खनिजों की खोज करने अथवा निकालने के लिए लाइसेंस या लीज” की जरूरत है। इसके अलावा, हम कानूनी रूप से कह सकते हैं कि सभी केंद्रीय खनन और पर्यावरणीय कानून मेघालय की कोयला खदानों पर भी लागू हैं। हमने विस्तृत रिपोर्ट तैयार की तथा खनन और पर्यावरणीय मानदंडों को लागू करने की जरूरत के बारे में शिलांग एवं तुरा में बैठकें आयोजित कीं। लेकिन कुछ नहीं हुआ। तथापि, हम जानते हैं कि इन अवैध गतिविधियों को भंडाफोड़ होने में केवल कुछ समय और लगेगा।

ऑल दिमासा स्टूडेंट्स यूनियन ने जयंतिया हिल्स में अनियंत्रित खनन को उजागर करते हुए एक मामला दायर किया था जिसके बाद नेशनल ग्रीन ट्राइब्यूनल (एनजीटी) ने अप्रैल 2014 में इन पर प्रतिबंध लगा दिया था। लेकिन रिपोर्टें अब बताती हैं कि खनन किए जा चुके कोयले को लाने- ले जाने के नाम पर अवैध खनन जारी है जिसमें स्थानीय और राज्य सरकार की भी मिलीभगत है। राजनीतिक वर्ग इन खदानों का समर्थन करता है। राज्य सरकार ने वर्ष 2015 में इस प्रतिबंध को उच्चतम न्यायालय में चुनौती दी। 2015 में राज्य विधानसभा ने एक संकल्प प्रस्ताव पारित किया जिसमें केंद्र सरकार से अनुरोध किया गया था कि मेघालय को केंद्रीय कानूनों से छूट दी जाए ताकि रैट-होल खनन को जारी रखा जा सके। लेकिन ऐसी खदानें पर्यावरण को नुकसान पहुंचाने वाली व असुरक्षित हैं और इन पर प्रतिबंध लगाया जाए। निष्कर्ष यह है कि स्व-शासन का मतलब यह नहीं है कि आपको पर्यावरण को नष्ट करने का अधिकार है, चाहे फिर वह छठीं अनुसूची में शामिल क्षेत्र ही क्यों न हों।

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