Environment

प्रदूषण से बढ़ रही हैं आकाशीय बिजली की घटनाएं

वैज्ञानिकों ने पाया है कि वायु प्रदूषकों में शामिल एरोसॉल आकाशीय बिजली गिरने के लिए एक मुख्‍य कारण हो सकता है

 
By Navneet Kumar Gupta
Published: Thursday 27 July 2017

Credit: Chaitanya Surya/Flickrआकाशीय बिजली गिरने के लिए प्रदूषण भी अब एक प्रमुख कारण बनकर उभर रहा है। भारतीय वैज्ञानिकों ने पाया है कि वायु प्रदूषकों की फेहरिस्‍त में शामिल एरोसॉल आकाशीय बिजली गिरने के लिए एक मुख्‍य कारण हो सकता है। एक ताजा अध्‍ययन के मुताबिक हवा में जहां पर एरोसॉल की मात्रा अधिक होती हैं, वहां ऐसी घटनाएं  होने की आशंका अधिक होती है।

अध्‍ययनकर्ताओं की टीम में शामिल शोधकर्ता डॉ. एसडी पवार ने इंडिया साइंस वायर को बताया कि विभिन्न वायु प्रदूषकों में से एक एरोसॉल हवा अथवा किसी अन्‍य गैस में सूक्ष्‍म ठोस कणों या तरल बूंदों के रासायनिक मिश्रण को कहते हैं। इसका निर्माण ठोस अथवा तरल पदार्थ के कणों के किसी गैस में निलंबन से होता है और ये अपनी विशेषताओं से वायुमंडल की विभिन्न प्रक्रियाओं को प्रभावित करते हैं।

पुणे स्थित भारतीय उष्‍णदेशीय मौसम विज्ञान संस्‍थान (आईआईटीएम) और रूस की ए.आई. वोयकोव मेन ऑब्‍जर्वेटरी के शोधकर्ताओं द्वारा किया गया यह अध्‍ययन हाल में एटमोस्‍फेरिक रिसर्च नामक शोध पत्रिका में प्रकाशित किया गया है। अध्‍ययन में शामिल वैज्ञानिकों के अनुसार एरोसॉल सौर विकिरणों के प्रकीर्णन और अवशोषण से पृथ्वी के ऊर्जा चक्र को सीधे तौर पर प्रभावित करते हैं।

वैज्ञानिकों ने यह भी पाया है कि एरोसॉल बादलों के गुणों को भी प्रभावित करते हैं। एरोसॉल की उपस्थिति और घनत्व क्षेत्र विशेष पर निर्भर करता है। अध्‍ययनकर्ताओं के मुताबिक जिस स्थान पर प्रदूषण अधिक होता है, वहां एरोसॉल की मात्रा अधिक हो सकती है। जलावन के लिए जीवाश्म ईंधन का बढ़ता प्रयोग, वाहनों से जहरीली गैसों के उत्सर्जन और सड़कों पर उड़ने वाले धूल कण वायुमंडलीय एरोसॉल की उपस्थिति को बढ़ा देते हैं।

हर साल धरती पर लगभग 2.5 करोड़ बिजली गिरने की घटनाएं होती हैं। आकाश में चमकने वाली बिजली को तड़ित या वज्रपात कहते हैं। वैज्ञानिकों के अनुसार इनका औसत तापमान सूर्य के सतही तापमान से लगभग पांच गुना अधिक हो सकता है।

पर्यावरणीय विज्ञान में एरोसॉल को मुख्यत: मास कन्‍सन्‍ट्रेशन’  यानी वायुमंडल के प्रति इकाई आयतन में मौजूद इनके भार के आधार पर प्रदर्शित किया जाता है। जलवायु परिवर्तन में एरोसॉल की महत्वपूर्ण भूमिका को देखते हुए वैज्ञानिक हाल के वर्षों में आकाशीय बिजली समेत बादलों से जुड़ी विभिन्न प्रक्रियाओं पर शोध कार्य करने में जुटे हैं, ताकि इसके लक्षणों के बारे में समझ विकसित की जा सके और इससे होने वाले जान-माल के नुकसान को कम किया जा सके। 

भारतीय मौसम विभाग, भारतीय उष्णदेशीय मौसम विज्ञान संस्थान और देश के कुछेक विश्वविद्यालयों में आकाशीय बिजली पर शोध कार्य हो रहे हैं। भारतीय उष्णदेशीय मौसम विज्ञान संस्थान में वायुमंडलीय वैद्युत वेधशाला को स्थापित किया गया है, जहां देश में ही विकसित उपकरणों- जैसे फील्ड मिल, चालकता उपकरण, क्षेत्र परिवर्तन एंटीना आदि के द्वारा आकाशीय बिजली के गुणधर्मों का अध्ययन किया जाता है। 

डॉ. पवार ने बताया कि ''पुणे, खड़गपुर और गुवाहाटी के ऊपर तड़ित-झंझा या बिजलीयुक्त तूफानों की विद्युतीय विशेषताओं के अवलोकन के आधार पर हमने पाया है कि भारत में आकाशीय बिजली एवं उसे प्रभावित करने वाले कारकों के गुणधर्म विश्व के अन्य स्थानों से विशिष्‍ट हैं। इन क्षेत्रों में बने कुछ झंझावातों के निचले बादलों में धनात्मक आवेश काफी प्रबल और विस्तृत होता है और अधिकतर आकाशीय विद्युत वाली गतिविधियां निचले ऋणात्मक द्विध्रुवीय क्षेत्र में होती है।'' 

वैज्ञानिकों के अनुसार इसके अलावा आकाशीय बिजली को प्रभावित करने वाले कारकों में पर्वत भी शामिल हैं। भारत के उत्तर-पूर्वी क्षेत्र में आकाशीय बिजली पर पर्वतीय प्रभाव भी देखा गया है। इसके कारण पहाड़ी घाटियों की नमी को रात में मेघ गर्जन और बिजलीयुक्‍त तूफान की उत्पत्ति के लिए जिम्मेदार माना गया है। यही कारण है कि पहाड़ी क्षेत्रों में आकाशीय बिजली के कड़कने की दर बहुत अधिक होती है। 

अध्‍ययनकर्ताओं के अनुसार ''पुणे के साथ-साथ पूर्वी और पूर्वोत्तर भारत के ऊपर बिजलीयुक्‍त तूफान पैदा करने वाले बादलों के अध्ययन से यह भी पता चला है कि इस क्षेत्र में बर्फीली सांद्रता को बनाए रखने के लिए बादलों के निचले हिस्से में विशाल मात्रा में बर्फीले नाभिकों की सांद्रता धनात्मक आवेश निर्मित करती है।''

आधुनिक उपकरणों की मदद से वैज्ञानिक आकाशीय बिजली के लक्षणों को समझने की कोशिश में जुटे हैं। आईआईटीएम में बारिश की बूंदों के गुणधर्मों के निर्माण और विघटन पर विद्युतीय प्रभाव का अध्ययन करने के लिए प्रयोगशाला में ऊर्ध्वाधर पवन सुरंग का उपयोग करके सिमुलेशन प्रयोगों को किया गया है। इस प्रयोग से पता चला है कि प्रदूषित बूंदों में विकृति को बढ़ावा मिलता है, जिससे उनके गुणधर्म में परिवर्तन होता है और निचले विद्युतीय क्षेत्र में महत्वपूर्ण स्खलन होता है, जिसके कारण खासतौर पर शहरी क्षेत्रों के ऊपर बादलों में आकाशीय बिजली की गतिविधियों में वृद्धि देखी गई है। अध्ययनकर्ताओं की टीम में डॉ. एसडी पवार के अलावा वी गोपालकृष्णन, पी मुरुगवेल, एनई वेरमे, एए सिंकविच शामिल थे।

(इंडिया साइंस वायर)

 

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