Food

आहार संस्कृति: भारत के 10 राज्यों में चाव से खाए जाते हैं कीड़े, होते हैं पौष्टिक

भारत के दस राज्यों में कीड़े खाने का चलन है, जलवायु परिवर्तन के दौर में कीड़े मांस का बेहतर विकल्प हो सकते हैं

 
By Meenakshi Sushma, Bhagirath Srivas
Published: Wednesday 13 November 2019

“हर साल मार्च में हम खजूरी पोका लार्वा इकट्ठा करते हैं। इस कीड़े को देखकर ही मुंह में पानी आ जाता है।” ओडिशा में रायगढ़ के बेहरापदमाघी गांव में रहने वाले संतोष कुमार नेगी उन लोगों में शामिल हैं जिनके लिए खजूरी पोका (डेट पॉम वर्म) स्वाष्दिष्ट आहार होने के साथ पोषक भी है। कीड़ों का यह आहार उन्हें अपने पूर्वजों से विरासत में मिला है। खजूरी पोका लार्वा चरण में थुलथुला होता है और पेड़ की जड़ में मिलता है। रायगढ़ जिले में रहने वाले कोंध और सोरा जनजाति इसे तलकर चावल के साथ बड़े चाव से खाती है। इस समुदाय के लोगों की आहार संस्कृति में लाल चींटियों के अंडे भी शामिल हैं जिसे स्थानीय भाषा में कइओंडा कहा जाता है। इसे रागी के आटे में मिलाकर चावल के साथ खाते हैं। ओडिशा की तरह ही नागालैंड में भी लीपा के नाम मशहूर घुन (वुडवर्म) को ओक के पेड़ों से निकाला जाता है। नागालैंड के फेक जिले में चिजामी गांव के सेनो सुशाह बताती हैं कि हम झूम खेती के दौरान लीपा को इकट्ठा करती हैं। वह बताती हैं, “मुझे कीड़े खाना पसंद है। जब मैं जवान थी, तब मेरे माता-पिता और दादा-दादी ने कीड़ों से परिचय करवाया था।”

भारत में कीड़ों को खाना नई बात नहीं है। मध्य प्रदेश, ओडिशा, कर्नाटक, तमिलनाडु, केरल, मेघालय, नागालैंड, असम, मणिपुर और अरुणाचल प्रदेश में कीड़ों को खाने का चलन है। मध्य प्रदेश की मुरिया जनजाति चिनकारा के नाम से चर्चित चीटियों की प्रजातियों का लार्वा खाती है। कर्नाटक के कुछ गांवों में रानी दीमक शारीरिक रूप से कमजोर बच्चों को जिंदा खिलाई जाती है। भारत के उत्तर पूर्वी राज्यों में कीड़ों को सबसे अधिक खाया जाता है। अकेले अरुणाचल प्रदेश में 158 प्रजातियां खाई जाती हैं। प्रदेश की निशी और गालो जनजातियां कीड़ों की लगभग 102 प्रजातियां का सेवन करती हैं।

संयुक्त राष्ट्र के फूड एंड एग्रीकल्चर ऑर्गनाइजेशन (एफओए) द्वारा 2013 में प्रकाशित “ईडेबल इंसेक्ट्स: फ्यूचर प्रोस्पेक्ट्स फॉर फूड एंड फीड सिक्योरिटी” रिपोर्ट के लेखक पॉल वान्टोम के अनुसार, दुनियाभर में करीब 200 करोड़ लोग कीड़े खाते हैं। ये कीड़े मुर्गों, मछलियों और सूअरों का प्राकृतिक आहार भी हैं। वैश्विक स्तर पर कीड़ों की 1,900 से अधिक प्रजातियां खाई जाती हैं। भारत में आदिवासी समुदाय 303 कीड़ों की प्रजातियों को खाते हैं (देखें, खाद्य श्रृंखला में कीड़े)।

स्रोत: डायवर्सिटी ऑफ ईडिबल इनसेक्ट्स एंड प्रैक्टिसेस ऑफ एंटोमोफेजी इन इंडिया, 2014 रिपोर्ट

जलवायु परिवर्तन के दौर में कीड़े

जलवायु परिवर्तन के इस दौर में आहार के रूप में कीड़ों पर विशेष ध्यान दिया जा रहा है। दरअसल इस आहार में ग्रीन हाउस गैसों के उत्सर्जन को कम करने की क्षमता है। इसी साल अगस्त में जारी हुई संयुक्त राष्ट्र की स्पेशल रिपोर्ट ऑन क्लाइमेट चेंज एंड लैंड में बताया गया है कि जलवायु परिवर्तन के लिए जिम्मेदार कार्बन डाईऑक्साइड को कम करने के लिए मांसाहार से शाकाहार की ओर जाना होगा। इसमें यह भी कहा गया है कि कीड़े, मांस का अच्छा विकल्प हैं और ये पर्यावरण अनुकूल भी हैं। एफएओ की रिपोर्ट कहती है कि अगले तीन दशकों में 900 करोड़ होने वाली आबादी को खाद्य सुरक्षा मुहैया कराने में कीड़े महत्वपूर्ण भूमिका निभाएंगे।

यह भी पढ़ें - क्या आप जानते हैं कि बीयर, चिकन, आइसक्रीम भी खाते हैं भगवान

आहार के रूप में कीड़ों को प्रोत्साहित करने के तीन प्रमुख कारण हैं। पहला ये पर्यावरण के अनुकूल होते हैं, दूसरा पोषण गुण और तीसरा जीवनयापन के अवसर उपलब्ध कराने के कारण। संयुक्त राष्ट्र की रिपोर्ट के अनुसार, कीड़ों की तुलना में बीफ के एक ग्राम प्रोटीन के लिए 14 गुणा अधिक भूमि और 5 गुणा अधिक पानी की जरूरत होती है। इतना ही नहीं, परंपरागत मवेशियों की तुलना में कीड़ों से ग्रीन हाउस गैसों का उत्सर्जन भी कम होता है। उदाहरण के लिए प्रति किलो मीलवर्म कीड़े के मुकाबले सूअर 10 से 100 गुणा अधिक ग्रीन हाउस गैस उत्सर्जित करते हैं। कीड़ों और बीफ से प्राप्त होने वाले प्रोटीन का तुलनात्मक अध्ययन किया जाए तो हम पाएंगे कि एक किलो झींगुर (क्रिकेट) में 205 ग्राम प्रोटीन और 68 ग्राम वसा होता है, जबकि बीफ में 256 ग्राम प्रोटीन और 187 ग्राम वसा मिलता है। झींगुर कैल्शियम, दीमक (टरमाइट) आयरन और रेशम कीट (सिल्कवर्म मोठ लार्वा) कॉपर और राइबोफ्लेविन की जरूरतों को पूरा करते हैं (देेखें, पोषण का खजाना)।

स्रोत: एंटोमोफेजी: अ स्टेज टुवार्ड्स फूड सिक्योरिटी 2017, ए रिव्यू ऑन द  फैसिनेटिंग वर्ल्ड ऑफ इनसेक्ट्स रिसोर्सेज : रीजन फॉर थोट्स 2010 और लिविंग फार्म्स डॉट ओआरजी

व्यवसायिक महत्व

अमेरिका स्थित स्मॉल स्टॉक फूड स्ट्रेटजीज के अध्यक्ष डेविड ग्रेसर कहते हैं, “कीड़ों को पालना गरीबों के जीवनयापन का अच्छा जरिया हो सकता है।” अपनी बात को आगे बढ़ाते हुए ग्रेसर कहते हैं कि शहरी कृषि कीड़ों से प्राप्त होने वाले प्रोटीन के उत्पादन का प्रभावी तरीका हो सकता है। औद्योगिक स्तर पर कीड़ों की खेती भी संभाव्य है, खासकर उन शहरों में जहां परंपरागत खेती मुश्किल है (देखें, कीड़ों में हैं व्यवसायिक संभावनाएं)।

कीड़ों से मिलने वाले पोषक तत्वों को देखते हुए इनका व्यवसायिक महत्व बढ़ रहा है। नीदरलैंड्स की वागनिगन यूनिवर्सिटी में ट्रॉपिकल एंटोमोलॉजी के प्रोफेसर ए वैन ह्यूस बताते हैं, “इस उद्योग में लगातार नए-नए स्टार्टअप सामने आ रहे हैं। इनमें से कुछ मोटा मुनाफा भी कमा रहे हैं, जिससे साबित होता है कि निवेशकों को इसमें व्यापार की संभावनाएं नजर आ रही हैं।” ह्यूज ने इसी साल “इनसेक्ट्स एज फूड एंड फीड, ए न्यू एमर्जिंग एग्रीकल्चरल सेक्टर : ए रिव्यू” नामक शोध पत्र भी लिखा है।

वित्तीय कंसलटेंसी कंपनी ग्लोबल मार्केट इनसाइट्स कहती है कि 2015 में खा सकने वाले कीड़ों का बाजार 33 मिलियन डॉलर था जो 40 प्रतिशत की वार्षिक दर से बढ़ रहा है। परसिस्टेंस मार्केट रिसर्च के अनुसार, 2024 तक यह बाजार 700 मिलियन अमेरिकी डॉलर हो जाएगा। भारत जैसे देशों में खा सकने वाले कीड़ों के व्यवसाय की बहुत संभावनाएं हैं क्योंकि यहां मधुमक्खी और रेशम कीट काफी समय से पाले जा रहे हैं। हालांकि भारत में अभी कीड़ों का व्यवस्थित बाजार विकसित नहीं हुआ है। लेकिन स्थानीय स्तर पर कहीं-कहीं इनकी बिक्री होती है। उदाहरण के लिए नागालैंड के चिजामी गांव में दीमक का एक लार्वा 10-15 रुपए में बेचा जाता है। कोहिमा के बाजार में यह 40-50 रुपए में मिलता है।

इसी तरह असम में रेशम का कीट 600-700 रुपए और लाल चींटियां 1000-1,500 रुपए प्रति किलो की दर से बिकती हैं। यह भी सच है कि भारत में कीड़ों के प्रति लोगों का रूढ़िवादी नजरिया इसके व्यापार में बड़ी बाधा है। लोगों के इस नजरिए को बदलना एक बड़ी चुनौती है। ब्रिटेन में इसकी शुरुआत हो चुकी है। औद्योगिक समूह एग्रीकल्चर बायोटेक काउंसिल ने अपने हालिया अध्ययन में पाया है कि एक तिहाई अंग्रेज मानते हैं कि वे 2029 तक कीड़े खाने लगेंगे। पॉल वान्टोम कहते हैं, “30 साल पहले तक यूरोपीय देशों में कच्छी मछली (जैसे सुशी) खाना घृणास्पद समझा जाता था। लेकिन समय के साथ लोगों में खाने की आदतें विकसित हो गईं। हालांकि लोगों को यह बताना भी जरूरी है कि कीड़ों को खाना व्यक्ति और धरती की सेहत के लिए क्यों अच्छा है। इससे लोगों में जागरुकता आएगी और कीड़ों के प्रति उनका दृष्णिकोण बदलेगा।”

जर्नल ऑफ बायोडायवर्सिटी, बायो प्रोस्पेक्टिंग एंड डेवलपमेंट में 2014 में प्रकाशित झरना चक्रवर्ती का अध्ययन बताता है कि कीटों का संग्रहण करके न केवल फसलों को नुकसान से बचाया जा सकता है बल्कि कीटनाशकों का इस्तेमाल भी सीमित किया जा सकता है। फसलों पर हमला करने वाले कीटों को भले ही भोजन के रूप में उपयोग न किया जाए लेकिन ये पशुओं का पूरक आहार हो सकते हैं। अध्ययन में सुझाव दिया गया है कि पोषण तत्वों से भरपूर कीड़ों को आधुनिक उपकरणों और तकनीक की मदद से घर के बगीचे में पाला जा सकता है। इसके बाद ये कीड़े जरूरतमंदों को बेचे जा सकते हैं। इससे दो मकसद पूरे होंगे। पहला ये लोगों के भोजन में शामिल होंगे और दूसरा इनके संरक्षण को भी बल मिलेगा।

“कीड़ों में हैं व्यवयासिक संभावनाएं”

कीड़ों का व्यापार करने वाली कंपनी स्मॉल स्टॉक फूड स्ट्रेटजीज के अध्यक्ष डेविड ग्रेसर से रजित सेनगुप्ता की बातचीत

मांसाहारी लोगों के लिए कीड़े क्यों बेहतर विकल्प हैं?

अधिकांश कीड़ों में भरपूर मात्रा में अनसैचुरेटेड फैट और ओमेगा 3 फैट पाया जाता है जो आमतौर परंपरागत कृषि उत्पादों में नहीं मिलता। शहरी कृषि से कीड़ों के प्रोटीन का अच्छा उत्पादन हो सकता है। साथ ही साथ औद्योगिक स्तर पर कीड़ों की खेती भी संभव है, खासकर उन शहरों में जहां बड़े पैमाने पर परंपरागत खेती कठिन है। इसके अलावा कीड़ों को पौधों की तुलना में बहुत कम पानी की जरूरत होती है और अजैविक उर्वरक भी अनावश्यक होते हैं। पौधों को जेनेटिक इंजीनियरिंग के तहत अधिक उत्पादन योग्य बनाया जाता है और इन्हें नुकसान और बीमारियों का डर भी होता है। लेकिन कीड़ों को ऐसी किसी स्थिति का सामना नहीं करना पड़ता।

विश्व में कीड़ों का बाजार कितना बड़ा है। ये कहां लोकप्रिय हैं?

मुझे कीड़ों के वर्तमान बाजार के बारे में अधिक जानकारी नहीं है। लेकिन ये कीड़े परंपरागत रूप से दक्षिण पूर्वी एशिया, कुछ अफ्रीकी देशों और दक्षिण व उत्तरी अमेरिका के कुछ हिस्सों में काफी लोकप्रिय हैं।

आप भोजन के रूप में कीड़ों में कितनी संभावनाएं देखते हैं?

संयुक्त राष्ट्र के सम्मेलनों ने कीड़ों को यूरोपीय देशों के बाजार में पहुंचा दिया है। कई व्यापार संघ बन चुके हैं और कीड़ों पर शोध करने के लिए सरकारी सब्सिडी दी जा रही है। कीड़ों के उत्पादकों की संख्या भी लगातार बढ़ रही है।

क्या “इन्सेक्ट्स टु फीड द वर्ल्ड” वैश्विक सम्मेलन अब भी काम कर रहा है। अब तक का अनुभव कैसा रहा? मैं कीटाहार पर हुए कुछ सम्मेलनों का गवाह रहा हूं। मैंने पाया है कि उत्पादकों का समूह एक-दूसरे को प्रोत्साहित करता है। इस मामले में साल दर साल प्रगति हो रही है।

भारत में व्यवसायिक संभावनाएं कितनी हैं?

मुझे कुछ व्यवसायिक संचालनों के बारे में पता चला है, खासकर ब्लैक सोल्जर फ्लाई के संदर्भ में। यह पशु आहार का मुख्य तत्व है। कीड़े बहुत अच्छे बायो कन्वर्टर हो सकते हैं। ये जैविक अपशिष्ट को पशुओं के लिए अच्छा प्रोटीन युक्त भोजन बना देते हैं। इनका मलमूत्र मिट्टी को भी उपजाऊ बनाता है।

Subscribe to Daily Newsletter :

India Environment Portal Resources :

Comments are moderated and will be published only after the site moderator’s approval. Please use a genuine email ID and provide your name. Selected comments may also be used in the ‘Letters’ section of the Down To Earth print edition.