देश के 21 राज्यों में नहीं है सामुदायिक रसोई योजना, सुप्रीम कोर्ट ने राज्यों से मांगा भुखमरी के आंकड़ों का हलफनामा
उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड और छत्तीसगढ़ में सामुदायिक रसोई योजना को शुरू करके बंद किया जा चुका है।
On: Wednesday 19 January 2022
देश भर में कुपोषण और भूख से होने वाली मौतों के आंकड़े न होने और सभी राज्यों में व्यस्कों के लिए समुचित सामुदायिक रसोई की व्यवस्था उपलब्ध न होने को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने गहरी चिंता जाहिर की है। केंद्र सरकार की ओर से 31 दिसंबर, 2021 को दाखिल किए गए एक हलफनामे में कहा गया था कि देश के 21 राज्यों में सामुदायिक रसोई योजना नहीं है। इनमें से उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड और छत्तीसगढ़ में सामुदायिक रसोई की योजना को बंद कर दिया गया है। इसके अलावा केरल में सेल्फ हेल्प ग्रुप के जरिए शुरू की गई सामुदायिक रसोई योजना को काफी काबिले-गौर बताया था।
सुप्रीम कोर्ट ने सभी राज्य सरकारों और संघ शासित प्रदेशों को आदेश दिया है कि वह दो हफ्तों के भीतर भूख (स्टार्वेशन ) और कुपोषण (मालन्यूट्रिशन) से होने वाली मौतों के लिए हलफनामा दाखिल करें। पीठ ने यह भी कहा है कि राज्य चाहे तो अपने हलफनामे में इस त्रासदी को कम करने वाले सुझावों को भी शामिल कर सकती हैं।
सुप्रीम कोर्ट में मुख्यन्यायाधीश जस्टिस एनवी रमन्ना वाली तीन सदस्यीय पीठ ने 18 जनवरी, 2022 को अनून धवन व अन्य बनाम भारत सरकार मामले में सुनवाई करते हुए यह आदेश दिया है।
केंद्र सरकार ने 31 दिसंबर को अपने हलफनामे में कहा था कि सामुदायिक रसोई और भुखमरी आंकड़ों की मांग करने वाली याचिका में पांच साल से कम आयु वाले बच्चों में उम्र के हिसाब से कम लंबाई (स्टनिंग) और लंबाई के हिसाब से कम वजन (वेस्टिंग) की समस्या का हवाला देते हुए व्यस्कों के लिए सामुदायिक रसोई की बात कह रही हैं जो कि तार्किक नहीं है क्योंकि स्टनिंग और वेस्टिंग का संबंध पर्यावरण, जेनेटिक्स और अन्य कारकों से भी हो सकता है। वहीं, आईसीडीएस और एमडीएम (पीएम पोषण) जैसी योजनाएं पहले से ही बच्चों के लिए चलाई जा रही हैं।
पीठ ने 18 जनवरी, 2022 को सुनवाई के दौरान 31 दिसंबर, 2021 को दाखिल किए गए केंद्र के हलफनामे पर गौर करने के बाद कहा कि केंद्र सरकार को भी राज्यों को आदर्श सामुदायिक रसोई योजना प्रारूप को विकसित करने में मदद करनी चाहिए। साथ ही कुछ राज्यों के जरिए सुझाए गए सामुदायिक रसोई योजना के क्रियान्वयन के लिए अतिरिक्त अनाज और संसाधन भी देने की संभावना पर विचार करना चाहिए।
सुनवाई में मौजूद अटॉर्नी जनरल केके वेणुगोपाल ने कहा कि यह संभव नहीं है कि किसी अन्य योजना के वित्त को इस योजना के लिए डायवर्ट किया जाए हालांकि वह केंद्र सरकार से राज्यों को अतिरिक्त अनाज देने के मामले में सलाह और सुझाव लेकर कोर्ट को बताएंगे।
अटॉर्नी जनरल वेणुगोपाल ने 31 दिसंबर, 2021 को हलफनामे में जानकारी दी थी कि सभी को भोजन मुहैया कराने के लिए समय-समय पर कई योजनाएं चलाई गई हैं। हालांकि कुछ राज्यों में सामुदायिक रसोई की कोई योजना नहीं है। सरकार ने हलफनामें में यह भी कहा था कि भुखमरी को रोकने के लिए भोजन की व्यवस्था स्थानीय सरकारों के जरिए सुनिश्चित की जानी चाहिए।
सरकार ने याचिका में हंगरी और जर्मनी की एक चैरिटी के जरिए प्रकाशित किए जाने वाले ग्लोबल हंगर इंडेक्स को तथाकथिकत बताते हुए उसे खारिज किया था कि इसे किसी भी देश या यूएन के जरिए मान्यता नहीं दी गई है। साथ ही यह हंगर इंडेक्स बच्चों से जुड़ा हुआ है।
पीठ ने कहा कि राज्यों की ओर से हलफनामा दाखिल करने के बाद केंद्र को जवाब दाखिल करने के लिए एक हफ्ते का समय और दिया जाता है। मामले की सुनवाई तीन हफ्तों बाद (फरवरी) में होगी।