महामारी के काल में प्रतिरक्षा के लिए हथियार हैं प्रोटीन और पोषण युक्त दालें

शाकाहारी के लिए दालें प्रोटीन का एकमात्र स्रोत हैं, क्योंकि वे दूध और अन्य दुग्ध उत्पादों का सेवन नहीं करते। ऐसे में प्रोटीन और सूक्ष्म पोषक के लिए दाल अहम है।  

On: Monday 13 September 2021
 

भारत विश्व में दालों के सबसे बड़े उत्पादक देशों में से एक है । दलहन, खासकर चना और मसूर की खेती में अन्य फसलों की तुलना में कम पानी की आवश्यकता होती है। अतः इन किस्मों की खेती सूखे के दौरान भी की जा सकती है । भारतीयों के लिए अनाज महत्वपूर्ण आहार है लेकिन दाल करी, सांभर , अंकुरित अनाज, चना ग्रेवी जैसे सभी  व्यंजनों के लिए दालें एक प्रमुख सहायक  भूमिका निभाती हैं। प्रोटीन की आवश्यकता को पूरा करने के लिए, दालें अन्य प्रोटीन समृद्ध स्रोतों की तुलना में बहुत अधिक सस्ती  होने के साथ साथ आसानी से उपलब्ध भी  होती हैं । 

इसके अलावा इनका भंडारण सामान्य तापमान पर भी किया जा सकता है । दालें अत्यधिक पौष्टिक होने के साथ साथ  प्रोटीन और  बी कॉम्प्लेक्स विटामिन जैसे फोलिक एसिड, फाइबर, पोटेशियम, आयरन, कैल्शियम, जिंक इत्यादि जैसे सूक्ष्म पोषक तत्वों से भरपूर होती हैं । दालों में लगभग 20 से 25 फीसदी प्रोटीन होता है।  25 ग्राम दाल में  लगभग 6 ग्राम प्रोटीन मिलता है जबकि अनाजों में इसका आधा प्रोटीन ही मिलता है । दालों में लाइसिन अमीनो एसिड होता है लेकिन सल्फर युक्त अमीनो एसिड की कमी होती है, जबकि अनाज में  सल्फर युक्त अमीनो एसिड तो मिलता  है लेकिन लाइसिन नहीं ।

इस तरह दाल  एवं अनाज का संयोजन एक सम्पूर्ण भोजन के रूप में उभरकर सामने आता है । दाल के बिना भोजन या आहार निश्चित रूप से अधूरा है क्योंकि इससे कई पोषक तत्वों की कमी हो जाती है। शाकाहारी लोगों के बीच दालें प्रोटीन का एकमात्र स्रोत हैं, क्योंकि वे दूध और अन्य दुग्ध  उत्पादों का सेवन नहीं करते हैं और ऐसे  में प्रोटीन और अन्य महत्वपूर्ण सूक्ष्म पोषक तत्वों को पूरा करने में दालों की  भूमिका बहुत महत्वपूर्ण  होती है। दालों के बीज आवरण में अघुलनशील फाइबर और पॉलीफेनोल्स  और उनके  बीजपत्रों में घुलनशील फाइबर, ओलिगोसेकेराइड और प्रतिरोधी स्टार्च होते हैं। कम वसा, कम ग्लाइसेमिक इंडेक्स और दालों की  कोलेस्ट्रॉल रहित  प्रकृति इसे मधुमेह और हृदय संबंधी जटिलताओं वाले व्यक्तियों के लिए एक अच्छा विकल्प बनाती है।

दालों में ग्लूटेन नहीं होता जिसके कारण वे सीलिएक रोग के रोगियों के लिए आहार का अच्छा स्रोत होती हैं । इसके अलावा ग्लूटेन मुक्त भोजन करने की इच्छा रखने वाले लोग भी इसे अपने आहार में शामिल कर सकते हैं । भारत में आमतौर पर इस्तेमाल की जाने वाली कुछ दालें हैं - काबुली चने  , लाल चने की दाल, काले चने की दाल, मटर, बीन्स इत्यादि । आम तौर पर सभी दालें  कम वसा, कम ग्लाइसेमिक प्रभाव और सूक्ष्म पोषक तत्वों से भरपूर  प्रकृति के कारण मोटापे के जोखिम को कम करती हैं। सूखे बीन्स में रक्त में कम घनत्व वाले लिपोप्रोटीन के स्तर को कम करने की क्षमता होती है। बीन्स का यह हाइपोलिपिडेमिक गुण इस्केमिक हृदय रोग एवं मधुमेह के जोखिम को कम करता है और स्तन कैंसर एवं  पेट के कैंसर से भी बचाता है ।

काबुली चना वजन प्रबंधन में मदद करता है और रक्त शर्करा के स्तर को कम करता है। राजमा मधुमेह के लिए  अनुकूल होने के साथ साथ  वजन पर नजर रखने वालों के लिए उपयुक्त है क्योंकि राजमा अधिक वजन और मोटापे से ग्रस्त व्यक्तियों में वसा के उत्सर्जन को बढ़ाता है। बच्चों और वयस्कों को हर भोजन में  दाल का सेवन करने के लिए प्रोत्साहित किया जाना चाहिए क्योंकि यह प्रोटीन, विटामिन, कैल्शियम, जिंक इत्यादि जैसे प्रतिरक्षक  पोषक तत्वों से भरपूर  होता है।  महामारी के इस समय में  दाल का नियमित  सेवन आवश्यक है ताकि हमारी प्रतिरक्षा को कम खर्च में  बेहतर बनाया जा सके। प्रोटीन और अन्य महत्वपूर्ण पोषक तत्वों के अलावा  घाव भरने एवं ऊतकों की मरम्मत में भी दालों का सेवन लाभदायक है ।

सोयाबीन एक अद्भुत दाल है जो कई महत्वपूर्ण पोषक तत्वों से भरी हुई है। कई मामलों में सोया दूध और सोया उत्पाद दूध और दूध उत्पादों का अच्छा  विकल्प बन सकते  हैं, जैसे कि शाकाहारी लोगों के मामले में या लैक्टोज असहिष्णुता की स्थिति के दौरान। कई बच्चे जो लैक्टोज असहिष्णुता या लैक्टोज एलर्जी से ग्रस्त हैं, वे सोया और अन्य दालों के माध्यम से  अपनी प्रोटीन की जरूरत को पूरा करते हैं।

(लेखक डॉ वी भवानी एक आहार विशेषज्ञ हैं और चेन्नई स्थित ईएसआईसी मेडिकल कॉलेज और अस्पताल से जुड़े हैं। ) 

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