एसओई इन फिगर्स 2022: 71 फीसदी भारतीयों की पहुंच से बाहर है सेहतमंद आहार

देश की एक बड़ी आबादी अभी भी पोषक आहार से दूर है। देखा जाए तो भारत में खान-पान से जुड़ी बीमारियां हर साल 17 लाख लोगों की जान ले रही है

By Lalit Maurya

On: Friday 03 June 2022
 

देश में जहां लोगों के स्वास्थ्य को लेकर इतनी जागरूकता पैदा की जा रही है वहां आपको यह जानकर हैरानी होगी कि सेहतमंद आहार देश में 71 फीसदी आबादी की पहुंच से बाहर है, जबकि वैश्विक स्तर पर यह आंकड़ा 42 फीसदी है। ऐसे में बड़ा सवाल यह है कि जब लोगों की जेब पोषक आहार का खर्च उठाने के काबिल ही नहीं है तो देश और आने वाली नस्लें कैसे स्वस्थ होंगी।

यह जानकारी कल सेंटर फॉर साइंस एंड एनवायरमेंट (सीएसई) और डाउन टू अर्थ जारी नई रिपोर्ट “स्टेट ऑफ इंडियाज एनवायरनमेंट 2022: इन फिगर्स” में सामने आई है। इस ई-रिपोर्ट को विश्व पर्यावरण दिवस (5 जून) के मौके पर जानी मानी पर्यावरणविद सुनीता नारायण ने ऑनलाइन जारी किया था।

रिपोर्ट में जो आंकड़े साझा किए हैं उनसे पता चला है कि देश में आहार संबंधी खतरों और वजन के कारण होने वाली बीमारियों के चलते हर साल 17 लाख लोगों की जान जा रही है। रिपोर्ट में जिन बीमारियों को इसके लिए जिम्मेवार माना है उनमें सांस सम्बन्धी बीमारियां, मधुमेह, कैंसर, स्ट्रोक और ह्रदय रोग आदि शामिल थी।

वहीं यदि पोषक आहार की कमी की बात करें तो उनमें फल, सब्जियों, साबुत अनाज आदि की कमी को शामिल किया गया है, जबकि प्रोसेस मीट, लाल मांस, और चीनी युक्त पेय पदार्थों के बढ़ते सेवन को इन बीमारियों की वजह बताया है। वहीं यदि वजन को देखें तो इसमें बढ़ते वजन, मोटापे और कुपोषण को शामिल किया है।

रिपोर्ट के अनुसार एक औसत भारतीय के आहार में पर्याप्त फल, सब्जी, नट, फलियों और साबुत अनाज की कमी है। यह भी सामने आया है कि इन खाद्य पदार्थों से जुड़ी प्रथाएं और प्रणालियों का असर पर्यावरण पर भी पड़ रहा है। पता चला है कि जहां कृषि से जुड़े उत्सर्जन और भूमि उपयोग के एक बड़े हिस्से के लिए दुग्ध उत्पादन जिम्मेवार है। वहीं अनाज उत्पादन के लिए बड़े पैमाने पर ताजे पानी का उपयोग की जा रहा है साथ ही इसकी वजह से नाइट्रोजन और फॉस्फोरस जैसे हानिकारक तत्व वातावरण में मुक्त हो रहे हैं।

सीएसई ने अपनी इस रिपोर्ट में उपभोक्ता खाद्य मूल्य सूचकांक (सीएफपीआई) में आती मुद्रास्फीति का भी जिक्र किया है। गौरतलब है कि पिछले एक साल में इसमें 327 फीसदी की वृद्धि दर्ज की गई है। वहीं उपभोक्ता मूल्य सूचकांक (सीपीआई), जिसमें सीएफपीआई भी शामिल है उसमें 84 फीसदी की वृद्धि देखी गई है।

इस बारे में डाउन टू अर्थ के प्रबंध संपादक रिचर्ड महापात्रा का कहना है कि “सीपीआई में आती मुद्रास्फीति में खाद्य पदार्थों का सबसे बड़ा हाथ है। देखा जाए तो खाद्य मुद्रास्फीति के वर्तमान में उच्च स्तर पर जाने के लिए उत्पादन की बढ़ती लागत, अंतरराष्ट्रीय स्तर पर फसलों की कीमतों में होती वृद्धि और मौसम की मार जिम्मेवार है।“ “वास्तव में, क्रिसिल से प्राप्त आंकड़ों के विश्लेषण से पता चला है कि मार्च से अप्रैल 2022 के बीच शहरी क्षेत्रों की तुलना में ग्रामीण क्षेत्रों में खाद्य कीमतों कहीं ज्यादा उछाल आया  है।“

रिपोर्ट के अनुसार थोड़ी बहुत प्रगति के बावजूद आज भी देश में ज्यादातर लोगों को मिलने वाला आहार पोषक नहीं है। इसके साथ ही वो पर्यावरण पर भी कहीं ज्यादा दबाव डाल रहा है। हालांकि पोषण की स्थिति देखें तो देश में कुपोषण का स्तर कहीं ज्यादा है।

देखा जाए तो यदि ऐसा ही चलता रहा तो स्वास्थ्य, पर्यावरण और अर्थव्यवस्था को इसकी भारी कीमत चुकानी पड़ सकती है। वहीं यदि वैश्विक खाद्य प्रणाली को देखें तो वो पर्यावरण और स्वास्थ्य दोनों के लिये तय वैश्विक लक्ष्यों को हासिल करने से काफी पीछे है।

स्टेट ऑफ इंडियाज एनवायरनमेंट 2022: इन फिगर्स की प्रति बुक कराने के लिए क्लिक करें 

Subscribe to our daily hindi newsletter