गरीबों से ज्यादा बहुराष्ट्रीय कंपनियों को पोषित करेगा केंद्र का यह फैसला!

सरकारी योजनाओं के तहत अब केवल पोषण से भरपूर खाद्य पदार्थ उपलब्ध कराए जाएंगे। केंद्र के इस फैसले से 3,000 करोड़ रुपए का वार्षिक बाजार निर्मित होगा, जिससे सिर्फ पांच बहुराष्ट्रीय कंपनियों को फायदा होगा

By Jitendra

On: Friday 20 December 2019
 
तारिक अजीज

सार्वजनिक वितरण प्रणाली और मध्यान्ह भोजन योजना सहित भारत की पांच सरकारी योजनाओं के तहत, गरीबों को दिए जाने वाले चावल को सूक्ष्म पोषक तत्वों (माइक्रो न्यूट्रिएंट्स) से भरपूर बनाया जाएगा। केंद्र सरकार ने 15 राज्यों में इस योजना की शुरुआत कर दी है। योजना के मुताबिक, चावल में विटामिन बी 12, आयरन और फोलिक एसिड जैसे पोषक तत्व शामिल किए जाएंगे, जो कुपोषण से लड़ने में मदद करते हैं। सूक्ष्म पोषक तत्व शरीर के विकास के लिए आवश्यक एंजाइम और हार्मोन उत्पादन करने में शरीर को सक्षम बनाते हैं।

सरकार का मानना है कि ये सूक्ष्म पोषक तत्व एक ऐसे राष्ट्र के विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकते हैं, जहां राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण 2015-16 के अनुसार, पांच साल से कम उम्र के 38 फीसदी बच्चे अविकसित (नाटे कद के) हैं और 36 फीसदी बच्चे कम वजन के हैं। इस खरीफ सीजन से 15 जिलों में, चावल में सूक्ष्म पोषक तत्व मिलाने (राइस फोर्टिफिकेशन) का काम पायलट प्रोजेक्ट के तौर पर शुरू किया जाएगा। इस घोषणा ने एक बहस को जन्म दिया है कि क्या फोर्टिफिकेशन से कुपोषण से निपटने में मदद मिलती है और वास्तव में इस निर्णय से किसे फायदा होगा।

अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान, दिल्ली के गैस्ट्रोएंटेरोलॉजी और मानव पोषण इकाई विभाग के उमेश कपिल कहते हैं, “दुनिया के किसी भी हिस्से में अब तक यह साबित नहीं हुआ है कि फोर्टिफिकेशन से कुपोषण कम हुआ है।” दिल्ली स्थित बाल रोग विशेषज्ञ अरुण गुप्ता कहते हैं, “कभी-कभी इसका उल्टा असर हो सकता है। प्राकृतिक खाद्य पदार्थों में फाइटोकेमिकल्स और पॉलीअनसेचुरेटेड वसा जैसे सुरक्षात्मक पदार्थ होते हैं। अलग से सूक्ष्म पोषक तत्वों को मिलाने के कारण ये नकारात्मक तरीके से प्रभावित होते हैं।”

खाद्य पदार्थ में अलग से सूक्ष्म पोषक तत्व मिलाना एक लाभकारी व्यवसाय है और अगर इसे सरकारी समर्थन मिल जाए तो फिर ये करोड़ों रुपए के बाजार में तब्दील हो जाता है। विश्व स्तर पर, सिर्फ पांच बहुराष्ट्रीय कंपनियां- जर्मनी की बीएएसएफ (बेडन एनीलाइन एंड सोडा फैक्टरी) , स्विट्जरलैंड की लोन्जा, फ्रांस की एडिस्सेओ और नीदरलैंड्स की रॉयल डीएसएम एंड एडीएम ही माइक्रोन्यूट्रिएंट्स बनाती हैं और सभी भारतीय कंपनियां इन्हीं से खरीद कर भारत में इसे बेचती हैं। दिल्ली स्थित कृषि व्यवसाय और व्यापार विश्लेषक विजय सरदाना कहते हैं, “ये बहुराष्ट्रीय कंपनियां उत्पादक संघ (कार्टेल) के माध्यम से विश्व बाजार पर शासन करती हैं।”

चावल पांचवा खाद्य पदार्थ है, जिसके फोर्टिफिकेशन की बात सरकार ने की है। इससे पहले नमक, खाद्य तेल, दूध और गेहूं का फोर्टिफिकेशन होता रहा है। केंद्रीय उपभोक्ता मामले, खाद्य एवं सार्वजनिक वितरण मंत्रालय द्वारा दिए गए 2018-19 की मांग और खाद्य सुरक्षा और मानक प्राधिकरण (एफएसएसएआई) के आकड़ों के अनुसार चावल, गेहूं और दूध के फोर्टिफिकेशन का कुल वार्षिक बाजार 3,000 करोड़ रुपए से अधिक का है (देखें, कुपोषण के नाम पर,)। अकेले फोर्टिफाइड चावल 1,700 करोड़ रुपए का बाजार बनाएगा, क्योंकि इसे बनाने की प्रक्रिया अन्य खाद्य पदार्थों की तुलना में महंगी है (देखें, महंगा मिश्रण)। 1980 के बाद, पहली बार जब सरकार ने नमक में आयोडीन मिलाना अनिवार्य बनाया, तब से खाद्य पदार्थों के फोर्टिफिकेशन पर नए सिरे से ध्यान केंद्रित हुआ।

कुपोषण के नाम पर - चावल के फोर्टिफिकेशन से बहुराष्ट्रीय कंपनियों की चांदी होगी 
(स्रोत: केंद्रीय उपभोक्ता मामले, खाद्य एवं सार्वजनिक वितरण मंत्रालय, खाद्य सुरक्षा और मानक प्राधिकरण और राष्ट्रीय डेयरी विकास बोर्ड (एनडीडीबी) *सरकारी योजनाओं में कुल मांग #एनडीडीबी द्वारा उपभोग का अनुमान)

गेहूं के फोर्टिफिकेशन के फैसले की घोषणा पिछले साल की गई थी और इसे भारत के प्रमुख पोषण अभियान के तहत 12 राज्यों में लागू किया जा रहा है। इसका मकसद बच्चों, किशोरों, गर्भवती महिलाओं और स्तनपान कराने वाली माताओं के पोषण में सुधार लाना है। 2018 में, एफएसएसएआई ने देश भर में खाद्य तेल का फोर्टिफिकेशन भी अनिवार्य कर दिया था। 2017 में दूध का फोर्टिफिकेशन शुरू किया गया था। इसके तहत, भारतीय राष्ट्रीय डेयरी विकास बोर्ड (एनडीडीबी) ने कंपनियों को दूध में विटामिन डी मिलाने को कहा।

एनडीडीबी के अनुमान के मुताबिक, 20 राज्यों के 25 दुग्ध संघों ने प्रतिदिन विटामिन डी मिला 55 लाख लीटर दूध की आपूर्ति की है। आश्चर्यजनक रूप से, गुजरात की डेयरी सहकारी संस्था अमूल ने फोर्टिफिकेशन से मना कर दिया। अमूल के प्रबंध निदेशक आरएस सोढ़ी कहते हैं, “हम विटामिन की कमी को दूर करने के लिए प्राकृतिक फोर्टिफिकेशन के पक्ष में हैं। मौजूदा फोर्टिफिकेशन सिंथेटिक या कृत्रिम तरीके पर आधारित है, जो स्वास्थ्य के लिए खतरनाक होगा।”

केंद्रीय उपभोक्ता मामले, खाद्य और सार्वजनिक वितरण मंत्रालय चावल फोर्टिफिकेशन के लिए नोडल एजेंसी है और इसने तीन साल के लिए 150 करोड़ (प्रत्येक 15 जिलों को 10 करोड़) रुपए आवंटित किए हैं। इस राशि में चावल, मिश्रण, प्रयोगशाला और परिवहन आपूर्ति लागत शामिल है। मंत्रालय का अनुमान है कि फोर्टिफाइंग चावल की लागत 0.60 रुपए/ किग्रा है, जिसे केंद्र और राज्यों के बीच 75:25 के अनुपात में साझा किया जाएगा। अब तक, 15 राज्यों में से केवल नौ ने इस पहल में हिस्सा लेने के लिए सहमति दी है। जून 2019 में, मंत्रालय ने देश के सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों को नोटिस भेजा और उनसे पायलट योजना के लिए एक-एक जिले को नामित करने के लिए कहा। लेकिन अब तक केवल आंध्र प्रदेश (पश्चिम गोदावरी), असम (बोंगईगांव), गुजरात (नर्मदा), केरल (एर्नाकुलम), कर्नाटक (रायचूर), महाराष्ट्र (गढ़चिरौली), तमिलनाडु (तिरुचिरापल्ली), ओडिशा (मलकानगिरी) और उत्तर प्रदेश (चंदौली) ने ही सहमति दी है। मंत्रालय के एक अधिकारी ने नाम न छापने की शर्त पर कहा, “अधिकांश राज्यों ने लागत में वृद्धि के डर से जवाब नहीं दिया है, जो उन्हें वहन करना होगा।” उन्होंने कहा, “0.60 रु/ किग्रा बहुत कम लगता है, लेकिन लाखों टन अनाज खरीदने के लिए आवश्यक राशि सैकड़ों करोड़ में होगी।” इससे भी अधिक दिक्कत की बात यह है कि केंद्र सरकार ने लागत की गणना करते हुए माल एवं सेवा कर (जीएसटी) को ध्यान में नहीं रखा है।

नीति आयोग के एक अधिकारी कहते हैं, “18 प्रतिशत जीएसटी के साथ ये लागत बढ़कर 0.71 रुपए प्रति किलोग्राम हो जाती है। मेरे आकलन के अनुसार, केवल उत्तर प्रदेश, गुजरात, ओडिशा और केरल ही दिसंबर तक इस योजना को लागू करेंगे।” उन्होंने कहा कि नीति आयोग प्रधानमंत्री के आर्थिक सलाहकार परिषद को सूक्ष्म पोषक तत्वों पर जीएसटी हटाने का सुझाव देने की योजना बना रहा है।

एफएसएसएआई ने सरकार को सूक्ष्म पोषक तत्वों की आपूर्ति के लिए 15 कंपनियों को अधिकृत किया है। ये भारतीय फर्म इसकी वेबसाइट पर सूचीबद्ध हैं। सरदाना कहते हैं, “इन सभी कंपनियों ने देश भर में अपना सब-कार्टल बनाया है।” एक तरफ, सरकार फोर्टिफिकेशन लागू कर रही है और दूसरी तरफ इसने इसकी कीमतों की जांच करने के लिए कोई तंत्र नहीं बनाया है। सरदाना कहते हैं, “पिछले तीन सालों में सूक्ष्म पोषक तत्वों की कीमतों में 40 फीसदी की बढ़ोतरी हुई है। अगर सूक्ष्म पोषक तत्व आवश्यक हैं, तो उनकी कीमतों को आवश्यक वस्तु अधिनियम, 1955 के तहत नियंत्रित किया जाना चाहिए।” यूरोपीय सूक्ष्म पोषक तत्व बाजार को कार्टेलाइज करने और कीमतों में बढ़ोतरी के लिए 2001 में यूरोपियन यूनियन ने कंपनियों पर 855.2 मिलियन यूरो (952 मिलियन अमेरिका डॉलर) का जुर्माना लगाया था। इन कंपनियों में स्विट्जरलैंड की हॉफमैन-ला रोचे और बीएएसएफ, जर्मनी की मर्क, फ्रांस की एवेंटिस एसए, नीदरलैंड की सोल्वे फार्मास्युटिकल्स और जापान की दाइची फार्मास्युटिकल, एसआई और टेकेडा केमिकल इंडस्ट्रीज शामिल हैं। इसके बाद इन कंपनियों ने विलय कर लिया, नए नाम अपना लिए, नई संस्थाएं बनाई और अपना संचालन कर रही हैं। दिल्ली स्थित ऑल इंडिया फूड प्रोसेसर्स एसोसिएशन के सुबोध जिंदल कहते हैं, “ये कंपनियां इस बहाने गैर-लाभकारी संस्थाएं बनाती हैं कि वे छोटे और मझोले उद्यमों को तकनीकी सहायता प्रदान करेंगी। लेकिन वे असल में इन छोटी कंपनियों को फोर्टिफाइंग फूड बनाने की ओर धकेलती हैं। वे सरकारों से फूड फोर्टिफिकेशन के लिए पैरवी भी करती हैं।” उन्होंने आरोप लगाया कि विदेशी गैर-लाभकारी कंपनियों ने चावल फोर्टिफिकेशन योजना तैयार की।

एफएसएसएआई ने नई दिल्ली में एक फूड फोर्टिफिकेशन रिसोर्स सेंटर बनाया है। इसके लिए एफएसएसएआई ने टाटा ट्रस्ट, पाथ, वर्ल्ड फूड प्रोग्राम और वर्ल्ड बैंक जैसी गैर लाभकारी संस्थाओं के साथ सहयोग किया है। ये सहयोग नियामक संस्था (एफएसएसएआई) को तकनीकी सहायता देने के लिए की गई है। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की सहयोगी संस्था स्वदेशी जागरण मंच के संयोजक अश्विनी महाजन का दावा है कि इन सभी संस्थाओं के अपने-अपने स्वार्थ हैं और बहुराष्ट्रीय कंपनियों द्वारा समर्थित हैं। महाजन कहते हैं, “हमने प्रधानमंत्री को पत्र लिखकर इसकी जांच कराने को कहा है।”

महंगा मिश्रण

चावल का फोर्टिफिकेशन एक जटिल और महंगी प्रक्रिया है

चावल के फोर्टिफिकेशन की तैयारी टूटे हुए चावल को इकट्ठा करने से शुरू होती है, जिसका कोई बाजार मूल्य नहीं होता है। इसका उपयोग चावल का आटा बनाने के लिए किया जाता है, जिसमें सूक्ष्म पोषक तत्वों का पूर्व मिश्रण मिलाया जाता है। इस मिश्रण से बने आटे को एक मशीन से गुजारा जाता है (जिसकी लागत लगभग 2 लाख रुपए होती है)। यह मशीन आटे को चावल की आकार के दाने में काटता है। फिर इन दानों को चावल के साथ मिलाया जाता है। फोर्टिफाइंग गेहूं के आटे को मिलाने के लिए भी एक ब्लेंडर की आवश्यकता होती है, जिसकी लागत लगभग 1.5 लाख रुपए है। फोर्टिफाइड चावल और गेहूं के पोषण को बरकरार रखने के लिए विशेष पैकेजिंग की आवश्यकता होती है। फोर्टिफाइंग दूध, तेल या नमक बनाना आसान होता है, क्योंकि इसमें सिर्फ खाद्य पदार्थ में प्री-मिक्स (सूक्ष्म पोषक तत्व) को मिलाने की जरूरत भर होती है।

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