जानें, मोरिंगा के पेड़ की खासियत और बनाएं फूलों की सब्जी

मोरिंगा की फसल को बहुत कम पानी लगता है, इसलिए यह सूखा प्रभावित क्षेत्रों में अच्छा विकल्प है

By Karnika Bahuguna

On: Thursday 12 March 2020
 

फोटो: विकास चौधरी


हैदराबाद के किसान बाजार में मोरिंगा की मुलायम फलियों की ओर इशारा करते हुए महेंदर रेड्डी कहते हैं, “यह बिना बारिश के भी उग आता है।” तेलंगाना के दमस्तापुर गांव में रहने वाले रेड्डी ने 2015 में अपनी टमाटर की फसल को छोड़कर मोरिंगा ओलिफर उगाने का फैसला किया था। रेड्डी ने इस पेड़ को अपने 2.43 हेक्टेयर के खेत में लगाने के लिए तीन लाख रुपए का निवेश किया। कुछ ही समय में उन्होंने चार लाख रुपए कमा लिए। रेड्डी बताते हैं, “उस साल क्षेत्र सूखे से प्रभावित था और उस हालात में एक लाख की आमदनी भी मुश्किल लग रही थी। मोरिंगा को टमाटर की तुलना में बहुत कम पानी लगता है।”

मोरिंगा की खेती करने वाले रेड्डी अकेले किसान नहीं हैं। आंध्र प्रदेश, कर्नाटक, तेलंगाना, तमिलनाडु और गुजरात के किसान इसकी ओर आकर्षित हो रहे हैं। वर्ष 2015 में प्रकाशित रिपोर्ट “प्रेजेंट एंड फ्यूचर डायनामिक्स ऑफ द ग्लोबल मोरिंगा मार्केट” के अनुसार, भारत में हर साल 12-20 लाख टन मोरिंगा का उत्पादन किया जाता है। सितंबर 2018 में हॉर्टिकल्चर इंटरनेशनल जर्नल में प्रकाशित शेखर, वेंकटेशन, विद्यावती और मुरुगनंथी का अध्ययन बताता है कि भारत में हर साल 22 से 24 लाख टन मोरिंगा का उत्पादन होता है। भारत इस फसल का सबसे बड़ा उत्पादक देश है। रिपोर्ट के अनुसार, भारत मोरिंगा का सबसे बड़ा निर्यातक भी है और विश्व की 80 प्रतिशत मोरिंगा की मांग भारत से पूरी होती है। जयपुर स्थित कृषि बायो टेक्नोलॉजी संस्थान एडवांस्ड बायोफ्यूल सेंटर के सीईओ डीपी महर्षि बताते हैं कि मोरिंगा का वैश्विक बाजार इस साल तक 7 बिलियन अमेरिका डॉलर हो जाएगा।

मार्केट रिसर्च फ्यूचर के मुताबिक, मोरिंगा का व्यापार अगर 9.3 प्रतिशत की वार्षिक दर से बढ़ता है कि तब 2025 तक इसका वैश्विक बाजार 7.9 बिलियन डॉलर हो जाएगा। गौर करने वाली बात यह है कि भारत में यह 30 प्रतिशत की दर से बढ़ रहा है। महर्षि बताते हैं कि मोरिंगा की मांग बढ़ने की बड़ी वजह यह है कि भारत, चीन और ब्राजील जैसे विकासशील देशों में मोरिंगा की मांग लगातार बढ़ रही है। आईआईटी प्रोफेशनल अनिल अयंगर ने दमयन रेड्डी के सहयोग से “डॉ़ मोरिंगाज” नामक स्टार्टअप शुरू किया है। उनका कहना है, “2015 में चीन ने बड़े पैमाने पर भारत से मोरिंगा बीज 3,000 रुपए प्रति किलो के भाव से मंगाए जबकि बाजार में इसका भाव 800-1000 रुपए प्रति किलो ही रहता है। इससे पता चलता है कि वैश्विक बाजार में मोरिंगा की कितनी मांग है।”

पोषण से भरपूर

मोरिंगा की फलियां जब तक शहरों में पहुंचती हैं, तब तक उनका भाव दोगुना हो जाता है। इस पेड़ के लगभग सभी हिस्से बाजार में बेचे जाते हैं। इसके फल, पत्तियां और फूल का उपयोग फूड इंडस्ट्री करती है तो मोरिंगा बीज का प्रयोग बायो फ्यूल के उत्पादन में किया जाता है। उदाहरण के लिए “डॉ़ मोरिंगाज” पत्तियों का इस्तेमाल बिस्कुट, चाय और रेडी टु कुक अनाज में करता है। मोरिंगा की पत्तियां, फूल और फल पोषक तत्वों से भरपूर होते हैं।

पोषण विशेषज्ञ सलोम येसुदास बताते हैं, “बहुत से लोग केवल फलियां ही खाते हैं लेकिन इसकी पत्तियों और फूलों में भी विटामिन, मिनरल और आयरन होता है और इनसे कुपोषण का इलाज किया जा सकता है।” मोरिंगा दुनियाभर में इसलिए भी लोकप्रिय हो रहा है क्योंकि अध्ययनों से साबित हो चुका है कि यह स्वास्थ्य के लिए बेहद लाभदायक है। हजारों वैज्ञानिक लेख इसे प्रमाणित करते हैं। आज भारत में जिस मोरिंगा प्रजाति का सबसे ज्यादा इस्तेमाल किया जा रहा है वह हाइब्रिड है जिसने पेड़ के पुष्पित होने के समय को चार साल से छह महीने कर दिया है। पीकेएम-1 मोरिंगा प्रजाति 1989 में पेरियाकुलम स्थित तमिलनाडु कृषि विश्वविद्यालय के हॉर्टिकल्चर कॉलेज एवं रिसर्च इंस्टीट्यूट ने विकसित की थी। यह प्रजाति न केवल जल्दी उगती है बल्कि प्रति हेक्टेयर 50-55 टन की पैदावार करती है। तेलंगाना के सिकंदराबाद स्थित सेंटर फॉर सस्टेनेबल एग्रीकल्चर से जुड़े जी राजशेखर बताते हैं कि किसान मोरिंगा से इसलिए भी खुश रहते हैं क्योंकि इसमें बहुत कम उर्वरक और रासायनिक कीटनाशकों का इस्तेमाल किया जाता है। वह बताते हैं “इसकी फसल केवल बालों वाले कैटरपिलर से प्रभावित होती है, जिसे गैर रासायनिक तरीकों से नियंत्रित किया जा सकता है।”

मोरिंगा की खेती करने वाले 47 प्रतिशत किसान सीमांत (एक हेक्टेयर से कम जमीन का स्वामित्व), 20 प्रतिशत छोटे (एक से दो हेक्टेयर जमीन का स्वामित्व वाले), 12.4 प्रतिशत मध्यम (4 से 10 हेक्टेयर के मालिक) और केवल 2.9 प्रतिशत बड़े किसान हैं। अधिकांश किसान मोरिंगा पेड़ की क्षमता से अनभिज्ञ हैं। महेंदर रेड्डी कहते हैं कि वह मोरिंगा में निवेश की लागत निकालकर संतुष्ट हैं क्योंकि टमाटर में यह भी संभव नहीं था। उनकी तरह रायलसीमा के पी श्रीनिवासुलु सूखे के सालों में भी में मामूली लाभ अर्जित करके खुश हैं। दोनों किसान स्थानीय बाजार में प्रति किलो मोरिंगा की फलियां बेचकर 20-25 रुपए कमा रहे हैं। हालांकि शहर में पहुंचते ही यह फलियां 50 रुपए प्रति किलो पहुंच जाती हैं। तमिलनाडु कृषि विश्वविद्यालय के एग्रीकल्चर कॉलेज एंड रिसर्च इंस्टीट्यूट में सहायक प्रोफेसर टी राजेंद्रन बताते हैं, “स्थानीय बाजार में दलाल ही कीमत निर्धारित करते हैं और छोटे किसानों को वह स्वीकार करनी पड़ती है। ऐसा इसलिए होता है कि मोरिंगा जल्दी नष्ट होने वाली फसल है और किसान इसका भंडारण करने की स्थिति में नहीं हैं।”

दलाल गुणवत्ता के अनुसार उपज को अलग करने और उसे पैक करने की प्रक्रिया में मजदूरों को लगा देते हैं। इस प्रक्रिया से मोरिंगा की लागत बढ़ जाती है। राजेंद्रन कहते हैं कि छोटे किसान एकजुट होकर इस चक्र को तोड़ सकते हैं। उनका कहना है, “सरकार को मोरिंगा के मूल्य संवर्द्धित उत्पादों के प्रति जागरूक करने के साथ सप्लाई चेन मैनेजमेंट को प्रभावी बनाना चाहिए जिससे किसानों को अपने हिस्से का लाभ मिल सके।” यह जागरुकता जयराम रेड्डी जैसे किसानों की भी मदद करेगी जो अपने 8.1 हेक्टेयर के खेत में मोरिंगा की खेती कर रहे हैं और अपने उत्पाद को निर्यात करना चाहते हैं। 32 साल के जयराम रेड्डी कहते हैं, “मुझे पता है कि एक फली 7 यूरो (520 रुपए) में बेची जाती है। मैं मोरिंगा के किसानों से जुड़ना चाहता हूं और उपज को निर्यात करने वालों का समूह बनाना चाहता हूं। छोटे किसानों में यह जानकारी नहीं है कि निर्यात का लाइसेंस कैसे लिया जाता है। किसानों को लाइसेंस देने में सरकार को तकनीकी मदद करनी चाहिए।”

विशेषज्ञ बताते हैं कि मोरिंगा के साथ एक समस्या यह है कि इसके दाम में भारी उतार-चढ़ाव आता है। सालभर के भीतर मोरिंगा के भाव में 20 से 100 रुपए का अंतर आ जाता है। अगर सरकार इसका न्यूनतम समर्थन मूल्य और सब्सिडी निर्धारित कर दे तो इसका समस्या का समाधान हो सकता है। सरकार को मोरिंगा की घरेलू मांग बढ़ाने के लिए लोगों को इसके गुणों से परिचित कराना चाहिए। उदाहरण के लिए आंध्र प्रदेश के आर कृष्णपुरम गांव में स्वास्थ्य कर्मचारी मोरिंगा की पत्तियों का चूर्ण मुफ्त में वितरित करते हैं ताकि लोगों में इसके प्रति जागरुकता फैलाई जा सके। इस पहल के पीछे श्रीशा नामक स्वयं सहायता समूह है। समूह में शामिल 10 महिलाएं मोरिंगा के खेतों से पत्तियां इकट्ठा करती हैं। यह समूह अब मोरिंगा की पत्तियों से बने उत्पाद बेचने की योजना बना रहा है। इस तरह की पहल कुछ क्षेत्रों में शुरू की गई है लेकिन मोरिंगा से अधिकतम लाभ लेने के लिए अब भी बहुत कुछ करने की जरूरत है।

व्यंजन

मटर के साथ मोरिंगा के फूलों की सब्जी

सामग्री (1 कप के लिए)
  • मोरिंगा के फूल : 250 ग्राम
  • हरे मटर: एक कप
  • हरी मिर्च : 1 से 2
  • प्याज : 2
  • टमाटर : 4
  • अदरक: 1 इंच
  • लहसुन : 3 से 4 फली
  • घी: 2 चम्मच
  • हल्दी पाउडर : 1 चम्मच
  • गरम मसाला: 1 चम्मच
  • लाल मिर्च पाउडर: स्वादानुसार
  • नमक: स्वादानुसार
विधि: फूलों को पानी से धो लें। एक बर्तन में पानी लेकर फूलों को उबाल लें ताकि उनकी कड़वाहट चली जाए। पानी निकालकर यह प्रक्रिया एक बार फिर दोहराएं। अब प्याज, अदरक और लहसुन का पेस्ट बना लें। इसी तरह टमाटर का पेस्ट भी बना लें। अब कड़ाही में घी गर्म करें और इसमें प्याज, अदरक और लहसुन का पेस्ट मिला दें और लाल होने तक पकाएं। अब इसमें नमक, लाल मिर्च पाउडर, हल्दी और हरी मिर्च डालें। इसे एक मिनट तक पकाएं। इसके बाद टमाटर और मटर डाल दें। इसे कुछ देर पकाने के बाद मोरिंगा के फूल डाल दें। अब इसे अच्छी तरह मिलाकर सब्जी के सूखने तक पकाते रहें। अंत में इसमें गरम मसाला डालें। लीजिए आपकी सब्जी तैयार है।

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