आहार संस्कृति: पश्चिम बंगाल के मसाले राधुनी के बारे में जानते हैं आप?

राधुनी के छोटे-छोटे फल कुछ पीले, मटमैले से होते हैं और इन्हें अचार और चटनियों में भी डाला जाता है

By Vibha Varshney

On: Thursday 16 March 2023
 
फोटो: विभा वार्ष्णेय

जब भी मेरे घर की रसोई में खाना तैयार होता है तो बर्तनों के खटर-पटर के बीच एक चटकने की सी आवाज आती है। इसके साथ ही सारा वातावरण घी और मसालों की खुशबू से भर जाता है। इससे पता चल जाता है कि तड़का लग चुका है और बस कुछ ही देर में हम खाना खाने बैठ सकते हैं।

तड़का लगाने का तरीका बहुत ही आसान है। आप खड़े मसाले लीजिए और गर्म घी में डाल दीजिए। जैसे-जैसे ये मसाले चटकते हैं, इनके अंदर का तेल बाहर आ जाता है और जब इस घी को खाने में डालते हैं तो वो तेल खाने में रच-बस जाता है। तड़का लगाने की क्रिया दक्षिण पूर्वी एशियाई देशों में ही प्रचलित है। पर यह हर जगह एक सा नहीं होता। कभी मसाले बदल जाते हैं और कभी उसे बनाने का तेल।

कभी दिल करे तो खड़े मसालों के साथ पिसे मसाले भी डाल लिए जाते हैं। और तो और, घी-तेल में मसाले तड़काने का समय भी रेसिपी के अनुसार बदल सकता है। कभी ये एकदम शुरू में लगाया जाता है, कभी एकदम अंत में। किस मसाले की कितनी मात्रा डाली गई है, उससे भी खाने के स्वाद में फर्क पड़ता है।

हर जगह के खाने के स्वाद अलग होने के रहस्य में तड़के की अहम भूमिका है। अब पश्चिम बंगाल में इस्तेमाल होने वाले पंच फोरन को ही लीजिए। पंच फोरन पांच मसालों का मिश्रण है और यहां ये मसाले हैं- जीरा, मेथी, कलौंजी, सौंफ और राधुनी। पंच फोरन पश्चिम बंगाल के पड़ोसी राज्यों असम, ओडिशा और बिहार में भी प्रयोग किए जाते हैं। पर यहां राधुनी की जगह सरसों के दाने डाले जाते हैं। जिन लोगों को खाने की समझ है, वो कहते हैं कि बस इस एक बदलाव से ही सब कुछ बदल जाता है। तभी शायद बावर्ची का बंगाली शब्द राधुनी ही है।

परंपरागत भोजन को लोकप्रिय बनाने में जुटी शेफ अनुमित्रा घोष दस्तीदार कहती हैं कि चाहे आधुनिक बंगाली राधुनी को भूल गए हों पर वह ज्यादातर रेसिपी में इसका प्रयोग करती हैं। ये मसाला शाकाहारी दाल से लेकर किसी भी प्रकार की मछली के व्यंजन में चार चांद लगा देता है।

वह बताती हैं कि उनकी परदादी की रसोई में राधुनी का खूब इस्तेमाल होता था। उन्होंने बचपन के पहले तीन साल परदादी के पास ही बिताए थे तो राधुनी उनके अंतर्मन में ही बस गया है। हालांकि उनकी दादी और मां के खाने में राधुनी गायब हो गया।

ये मसाला ट्रेकीस्पर्मम रॉक्सबर्गियानम का फल है और काफी कुछ अजवाइन जैसा होता है। इसको हिंदी में अजमोद, तमिल में असमतवोमम और मलयालम में आयमोदकम के नाम से जाना जाता है। अंग्रेजी में इसे जंगली सेलेरी कहते हैं और ये सेलेरी सहित कई खुशबूदार मसालों के परिवार एपिएसी का हिस्सा है। अजवाइन, हींग, धनिया, जीरा, सौंफ और यहां तक की गाजर भी इसी परिवार से आते हैं।

इस पौधे का मूल स्थान दक्षिण पूर्व एशिया माना जाता है। पर भारत के सभी हिस्सों में उगने के बावजूद यह केवल बंगाली भोजन में अपनी पहचान बना पाया है। दस्तीदार का कहना है कि इस मसाले का इस्तेमाल पेचीदा है क्योंकि जब तक इसको घी में भूना या गर्म न किया जाए, तब तब इसकी खुशबू कुछ खास नहीं होती। दस्तीदार राधुनी को पश्चिम बंगाल के रानाघाट, नादिया और बर्धमान इलाके से खरीदती हैं।

इसकी खेती कुछ हद तक जलवायु परिवर्तन के बुरे प्रभावों से बचा सकती है। उत्तर पूर्वी राज्यों की जलवायु हरी पत्तेदार सब्जियों को उगाने के अनुकूल है और इस वजह से आईसीएआर रिसर्च कॉम्प्लेक्स, मेघालय के वैज्ञानिकों का कहना है कि इन हरी सब्जियों को उगाने को प्रोत्साहन देना चाहिए।

इन वैज्ञानिकों ने 2015 में “टेक्नोलॉजिकल ऑप्शंस फॉर क्लाइमेट रेजिलिएंट हिल एग्रीकल्चर” किताब में इंगित किया कि जंगली सेलेरी पत्तेदार सब्जियों में शामिल है। इन पत्तियों को खाने में खुशबू के लिए इस्तेमाल करते हैं। कभी इन्हें चावल के साथ उबाला जाता है तो कभी इनकी चाय बनाई जाती है और कभी कच्चा ही खा लिया जाता है।

मसाले की तरह इस्तेमाल होने वाले राधुनी के सूखे फलों के स्वाद में एक गहराई है, जिसके कारण इसको बहुत कम मात्रा में ही पंच फोरन में डाला जाता है। पंच फोरन के अन्य मसाले भी एपिएसी परिवार के ही हैं पर हर बीज और फल का स्वाद अलग है। शुरू में सब कड़वा सा ही लगता है पर बाद में राधुनी का स्वाद मीठा सा होता है तो मेथी का स्वाद कड़वाहट भरा, कलौंजी में प्याज जैसा स्वाद है, वहीं जीरा एक सौंधा सा स्वाद देता है। सौंफ की मिठास भी कुछ अलग ही है।

विविध उपयोग

राधुनी के छोटे-छोटे फल कुछ पीले, मटमैले से होते हैं और इन्हें अचार और चटनियों में भी डाला जाता है। इस मसाले का असली स्वाद जानना हो तो आपको बंगाल के मशहूर व्यंजन सुख्तो में ही इसे उपयोग करना चाहिए। हालांकि इसे बनाने में दर्जनों मसाले और सब्जियों की आवश्यकता होती है। वैसे आजकल की आधुनिक रसोई में इन सब सामग्रियों का एक साथ मिलना नामुमकिन सा ही है।

सुख्तो को पर्व-त्योहारों और जश्न में चाव से खाया जाता है। सबसे पहले इसको खाने से भोजन पचाना आसान हो जाता है। परंपरागत इलाजों जैसे आयुर्वेद में राधुनी को पाचन क्रिया को बेहतर करने और अस्थमा जैसी बीमारियों में फायदे के लिए दिया जाता है। पाकिस्तान के करांची स्थित आगा खान यूनिवर्सिटी मेडिकल कॉलेज के बायोलॉजिकल एवं बायोमेडिकल विभाग के वैज्ञानिकों ने पाया कि इसके बीजों से पाचन और श्वसन तंत्र को आराम मिलता है, जिससे डायरिया, पेट दर्द और अस्थमा में फायदा पहुंचता है। ये तथ्य उन्होंने 2012 में जर्नल ऑफ एथनोफार्माकॉलोजी में प्रकाशित किए।

भारत सरकार के आयुष मंत्रालय के नेशनल मेडिसिनल प्लांट्स बोर्ड और देहरादून के इंडियन काउंसिल ऑफ फॉरेस्ट्री रिसर्च एंड एजुकेशन ने 2017 की अपनी रिपोर्ट “मेडिसिनल प्लांट्स इन इंडिया : एन असेसमेंट ऑफ देयर डिमांड एंड सप्लाई” में बताया कि प्रतिवर्ष हर्बल मेडिसिन इंडस्ट्री करीब 112 मीट्रिक टन राधुनी का इस्तेमाल करती है और इसे जंगलों से इकट्ठा किया जाता है।

इतने फायदे होने के बावजूद इसके बारे में ज्यादा जानकारी उपलब्ध नहीं है। 2016 में अमेरिका की सुपर मॉडल पद्मा लक्ष्मी ने अपनी किताब “द एनसाइक्लोपीडिया ऑफ स्पाइसेस एंड हर्ब्स : एन असेंसियल गाइड टु द फ्लेवर्स ऑफ द वर्ल्ड” में इसके बारे में लिखा और हो सकता है कि जल्द ही इस मसाले के दिन फिर जाएं।

व्यंजन: सुक्तो

सहजन की फली : 1
शकरकंद : 1
बैंगन : 1
करेला : 1
आलू : 1
कच्चा केला : 1
कच्चा पपीता : 1
वड़ियां : 10-15
पंच फोरन (जिसमें राधुनी हो) : 1 चम्मच
तेज पत्ता : 3
अदरक का पेस्ट : 1 चम्मच
राधुनी का पेस्ट : 1 चम्मच
सरसों दाने का पेस्ट : 2 चम्मच
सूखी लाल मिर्च : 1 चम्मच
दूध : 1 कप
घी : 2 चम्मच
सरसों का तेल : 5-6 चम्मच
चीनी : 2 चम्मच
नमक : स्वादानुसार

विधि : आलू, शकरकंद, केले, पपीते को छीलकर 2 इंच लंबे टुकड़ों में काट लें। सहजन की फली, बैंगन और करेले को बिना छीले इसी आकार में काट लें। अब कड़ाही में तेल डालें और उसमें वड़ियों को तलकर अलग रखिए। बैंगन और करेले को भी तलकर अलग रखें। बच्चे हुए तेल में तेज पत्ते, साबूत लाल मिर्च और पंच फोरन डालकर तड़काएं और फिर आलू, केला, शकरकंद और सहजन की फली डालकर थोड़ा पकनें दें। नमक, अदरक, राधुनी और सरसों का पेस्ट डालकर मिलाएं। फिर उसमें दूध और चीनी डालकर पकाएं। इसके बाद तली हुई सब्जियां और वड़ियां डालें। अब सब कुछ पकनें दें। आखिर में घी को सब्जी में डाल दें और कड़ाही को ढंक दें। सुक्तो खाने को तैयार है। इसे आप चावल के साथ खा सकते हैं।

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