घर में भी बना सकते हैं बांस के व्यजंन, ये है रेसिपी

भारत के जनजातीय क्षेत्रों में बांस के कोंपल से बने खाद्य पदार्थ लंबे समय से प्रचलन में हैं। इनमें प्रोटीन और फाइबर भरपूर मात्रा में होते हैं

By Chaitanya Chandan

On: Saturday 20 July 2019
 
अपर्णा पल्लवी / सीएसई

बांस का इस्तेमाल आमतौर पर निर्माण संबंधी कामों में और दैनिक उपयोग की वस्तुओं (टोकरी, डगरा, सूप, हाथ पंखा आदि) के निर्माण के लिए किया जाता है। लेकिन क्या आपको पता है कि दुनियाभर में बांस का इस्तेमाल एक खाद्य पदार्थ के तौर पर भी किया जाता है?

जी हां, बांस के कोंपलों का इस्तेमाल खाद्य पदार्थ के तौर पर भारत सहित दुनियाभर के जनजातीय क्षेत्रों में बेहद आम है। बांस में प्रोटीन और फाइबर जैसे पोषक तत्व प्रचुर मात्रा में पाए जाते हैं, जो कुपोषण से लड़ने में काफी हद तक सफल साबित हो सकते हैं।

बांस एक प्रकार की घास है जो बेहद कम मेहनत से किसी भी खराब या बंजर भूमि पर उगाया जा सकता है। इसका वनस्पतिक नाम बैम्बूसोईडी है और दुनियाभर में इसकी 1250 प्रजातियां पाई जाती हैं। इनमें से बांस की 125 प्रजातियां भारत में हैं। बांस का कोंपल हल्का पीले रंग का होता है और इसकी महक बेहद तेज होती है। इसका स्वाद कड़वा होता है। दुनियाभर में पाई जाने वाली बांस की सभी प्रजातियों में से केवल 110 प्रजातियों के बांस के कोंपल ही खाने योग्य होते हैं। बांस की अन्य प्रजातियों में जहरीले तत्व पाए जाते हैं, इसलिए उनका उपयोग खाद्य पदार्थ के तौर पर नहीं किया जाता है। मनुष्य के जीवन में अनेक महत्वपूर्ण भूमिका अदा करने वाला बांस मिट्टी के क्षरण को रोकने के साथ ही मिट्टी की नमी बनाए रखने में भी मदद करता है। चीन के बाद भारत दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा बांस उत्पादक देश है।

प्राचीन काल से ही बांस के कोंपलों का इस्तेमाल खाद्य पदार्थ के तौर पर होता आया है। बांस के कोंपल बांस के युवा पौधे होते हैं, जिसे बढ़ने से पहले ही काट लिया जाता है और इसका इस्तेमाल सब्जी, अचार, सलाद सहित अनेक प्रकार के व्यंजन बनाने में किया जाता है। जनजातीय क्षेत्रों में बांस के कोंपलों से बने व्यंजन बेहद लोकप्रिय हैं।

हडुक का प्रमुख भोजन

बस्तर की जनजातियों के बीच मॉनसून का महीना हडुक के रूप में जाना जाता है। यह आराम का दौर होता है। इस समय तक फसलों के बीज बो दिए जाते हैं और नई फसल आने में समय होता है। ऐसे में खाने में नई चीजें आजमाई जाती हैं। जुलाई की शुरुआत में लोग बांस की एक फुट ऊंची कोंपलों को तोड़ लेते हैं। कुछ लोग इन्हें बेचते भी हैं। अगले कुछ महीनों के दौरान बांस की ये कोंपलें इन लोगों का प्रमुख आहार होती हैं। बांस की कोंपलों के अनपके हिस्से को सुखाकर बाद में खाने के लिए रखा जा सकता है।

बांस की कोंपलों को गोंडी में बास्ता और छत्तीसगढ़ में करील के नाम से जाना जाता है। इस जनजातीय क्षेत्र में “आमत” (देखें: व्यंजन) नामक खट्टा सूप बनाया जाता है। स्थानीय भाषा में आमत का मतलब खट्टा होता है। इस सूप में कैलोरी कम होती है तथा यह पोषक तत्वों से भरपूर होता है। डाउन टू अर्थ को इस व्यंजन की विधि बताने वाली लेदा गांव की वृद्धा लाचनदाई नेताम बताती हैं कि आमत को गर्म-गर्म खाने से सर्दी, खांसी, जुकाम, छाती में संक्रमण और अन्य मौसमी बीमारियां दूर रहती हैं। नेताम कहती हैं कि बुखार में यह मुंह की कड़वाहट को दूर करने में मदद करता है।

भारत के अन्य जनजातीय राज्यों में भी बांस के कोंपलों का इस्तेमाल खाद्य पदार्थ के तौर पर किया जाता है। पूर्वोत्तर राज्यों मणिपुर, मिजोरम, सिक्किम, मेघालय आदि में बांस के कोंपलों से सिरका बनाने का काम सदियों से होता आया है। मणिपुर में बांस के ताजे कोंपलों को सूखी मछली के साथ पकाकर खाया जाता है। सिक्किम में बांस के कोंपलों से करी बनाई जाती है, जिसे टामा के नाम से जाना जाता है।

दुनियाभर में लोकप्रिय

बांस के कोंपलों से दुनियाभर में अलग-अलग व्यंजन बनाए जाते हैं, जो काफी लोकप्रिय भी हैं। पूर्वी चीन और जापान में वर्ष 1951 से ही बांस के कोंपलों का उत्पादन व्यंजन बनाने के लिए लिए व्यावसायिक तौर पर किया जा रहा है। जापान में बांस को कृत्रिम वातावरण तैयार कर उगाया जाता है, जिसमें जमीन के 6-8 सेमी नीचे तारों के माध्यम से ताप उत्पन्न किया जाता है। यह ताप बांस को प्राकृतिक वातावरण के मुकाबले तेजी से बढ़ने में मदद करता है जिससे बांस के कोंपलों को जल्दी से जल्दी व्यंजन बनाने के लिए प्राप्त किया जा सके। चीन और ताइवान बांस की कोंपलों का प्रमुख निर्यातक देश हैं।

नेपाल के पश्चिमी पहाड़ी क्षेत्रों में टूसा (बांस की ताजी कोंपलें) और टुमा (बांस के उबले हुए कोंपल) प्रमुख खाद्य पदार्थों में शुमार हैं। यह इथियोपिया के बांस के जंगलों के निकट के ग्रामीण इलाकों में रहने वाले लोगों का भी लोकप्रिय भोजन है। वहीं इंडोनेशिया में बांस के कोंपलों को नारियल के गाढ़े दूध के साथ मिलाकर खाया जाता है। इस व्यंजन को “गुले रिबंग” कहा जाता है। यहां बांस के कोंपलों को अन्य सब्जियों के साथ मिलाकर पकाए जाने वाले व्यंजन को “सयूर लाडे” के नाम से परोसा जाता है।

औषधीय गुण

बांस में सैचुरेटिड फैट, कोलेस्ट्रोल और सोडियम कम होता है तथा रेशों (फाइबर), विटामिन-सी, थायामिन, विटामिन बी6, फास्फोरस, पोटेशियम, जिंक, कॉपर, मैगनीज, प्रोटीन, विटामिन ई, रिबोफ्लेविन, नियासिन और आयरन प्रचुर मात्रा में पाए जाते हैं। इसलिए इसका इस्तेमाल औषधि के तौर पर भी किया जाता है।

बांस के औषधीय गुणों की पुष्टि वैज्ञानिक अध्ययनों से भी होती है। वर्ष 2009 में न्यूट्रिशन नमक जर्नल में प्रकाशित एक अध्ययन के अनुसार बांस के कोंपलों में बड़ी मात्रा में फाइबर पाए जाते हैं जो खून में कोलेस्ट्रोल की मात्रा को कम करने में मदद करते हैं। कोलेस्ट्रोल नियंत्रित होने से हृदय रोग का खतरा कम हो जाता है। वर्ष 2016 में जर्नल ऑफ कैन्सर साइंस एंड थेरेपी में प्रकाशित एक शोध के अनुसार बांस में कुछ मात्रा में क्लोरोफिल पाए जाते हैं, जो कोशिकाओं में कैंसर पैदा करने वाले कारकों को रोकने में सक्षम हैं। इसके कारण बांस के कोंपलों का नियमित सेवन महिलाओं को स्तन कैंसर से बचा सकता है। वर्ष 2011 में प्लांटा मेडिका नामक जर्नल में प्रकाशित एक अध्ययन बताता है कि बांस के कोंपलों में गर्भाशय को शक्ति प्रदान करने वाले तत्व पाए जाते हैं, जो गर्भवती महिलाओं को प्रसव में होने वाली देरी से बचाता है।

(अपर्णा पल्लवी के इनपुट सहित)

आमत

सामग्री

बांस के अंकुर
  • काले चने
  • सब्जियां (सहजन, आलू, बैंगन, प्याज, बीन्स आदि)
  • इमली का गूदा
  • चावल का आटा
  • अदरक-लहसुन-हरी मिर्च का पेस्ट
  • हल्दी (वैकल्पिक)
  • नमक
विधि: काले चनों को रातभर भिगोकर रखें। बांस के अंकुरों को अच्छी तरह छीलकर बारीक काट लें तथा चार गुना पानी में तब तक उबालें जब तक यह पक न जाए। अब बचा हुआ पानी निकाल दें। उबालने से बांस की कड़वाहट के साथ ही जहरीले तत्व भी निकल जाते हैं। उबालते समय ध्यान रखें कि इसका कुरकुरापन बरकरार रहे।

अब इन्हें साफ पानी से धोकर अलग रख लें। सब्जियों को छोटे-छोटे टुकड़ों में काट लें। अब एक बड़े बर्तन में पानी लें। इसमें काले चने, बांस के बारीक कटे टुकड़े, हल्दी, नमक डालें और पानी को उबालें। जब काले चने आधे पक जाएं तो इसमें कटी हुई सब्जियां मिलाएं और अदरक-लहसुन-मिर्च का पेस्ट और इमली का गूदा मिलाकर तब तक हिलाते रहें जब तक सब्जियां पूरी तरह से पक नहीं जातीं।

अब आंच को तेज कर इसमें चावल के आटे को डालकर हिलाते रहें, ताकि गुठली न बने। जब सूप जरूरत के मुताबित गाढ़ा हो जाए, तो इसे चूल्हे से उतार लें। लीजिए तैयार है आमत। इसे चावल या परांठे के साथ परोसें।

पुस्तक

बैम्बू: अ जर्नी विद चायनीज फूड 
लेखक: सैली हेमंड, 
गॉर्डन हेमंड
प्रकाशक: न्यू हॉलैंड पब्लिशर्स   
पृष्ठ: 176 | मूल्य: R529

इस किताब में चीन में बांस से बनने वाले व्यंजनों के बारे में रोचक तरीके से बताया गया है। किताब आपको व्यंजनों के साथ ही पूर्व से पश्चिम तक के क्षेत्रीय व्यंजनों से रूबरू करवाती है। इस किताब में लेखक सैली हेमंड अपने यात्रा अनुभवों की कहानियों को रोचक तरीके से बताती हैं। साथ ही गॉर्डन हेमंड के व्यंजनों के खूबसूरत चित्र मुंह में पानी लाने के लिए काफी हैं। 

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