जहर नहीं दवा का काम करता है यह पौधा, लेकिन ऐसे करें इस्तेमाल
प्रकृति से विषैला होने के कारण भगवान शिव को प्रिय है मदार। इसके पौधे का हर हिस्सा है मनुष्य के लिए बेहद उपयोगी
On: Sunday 22 September 2019
बचपन में जब मैं अपने दादाजी की दुकान पर जाता था, तो वे हमें पाचक की गोली देते थे। मुझे अभी भी याद है कि वे गोलियां स्वादिष्ट होने के साथ ही भूख बढ़ाने में भी कारगर होती थीं। वह गोलियां मेरे दादाजी खुद ही बनाते थे। उस गोली के लिए मोहल्ले के बच्चे-बूढ़े सभी मेरे दादाजी के पास आते थे। दादाजी सिर्फ प्यार की कीमत पर उन गोलियों को सब में बांट देते थे।
जब मैंने होश संभाला, तो मैंने उनसे उत्सुकतावश पूछ लिया कि ये गोलियां कैसे बनती हैं, तो उन्होंने मुझे अपने पास बिठाकर वो गोलियां बनानी शुरू की। मैंने सामग्री देखी तो हतप्रभ रह गया। सामग्री में एक तरह का फूल भी शामिल था, जिसे हमलोग अकवन के नाम से जानते हैं। दरअसल अकवन को तब हमलोग जहरीला पौधा मानते थे, इसलिए मैंने दादाजी से पूछ लिया कि जहर के फूल का इस्तेमाल इसमें क्यों करते हैं। उन्होंने बताया कि जब हम किसी भी चीज का सेवन जरूरत से अधिक मात्रा में करते हैं, तो वह जहर का ही काम करता है। अगर हम इसका उपयोग सही तरीके और सही मात्रा में करेंगे, तो यह जहर नहीं बल्कि दवा की तरह काम करेगा। मैं उनकी बात से सहमत हुआ और उन्होंने मेरे सामने पाचक की गोलियां बनाने की प्रक्रिया पूरी की।
अकवन को हिंदी में मदार कहते हैं और इसे एक जहरीले पौधे के रूप में जाना जाता है। मदार का पौधा किसी जगह पर उगाया नहीं जाता है। यह पौधा अपने आप ही कहीं पर भी उग जाता है हालांकि यह पौधा अपने आप में औषधीय गुणों से लबरेज है। मदार का वैज्ञानिक नाम कैलोत्रोपिस गिगंटी है। यह आमतौर पर पूरे भारत में पाया जाता है। भारत में इसकी दो प्रजातियां पाई जाती हैं-श्वेतार्क और रक्तार्क। श्वेतार्क के फूल सफेद होते हैं जबकि रक्तार्क के फूल गुलाबी आभा लिए होते हैं। इसे अंग्रेजी में क्राउन फ्लावर के नाम से जाना जाता है, क्योंकि इसके फूल में मुकुट/ताज के समान आकृति होती है। इसके पौधे लंबी झाड़ियों की श्रेणी में आते हैं और 4 मीटर तक लम्बे होते हैं। इसके पत्ते मांसल और मखमली होते हैं। मदार का फल देखने में आम के जैसे लगता है, लेकिन इसके अंदर रुई होती है, जिसका इस्तेमाल तकिये या गद्दे भरने में किया जाता है। इसमें फूल दिसंबर-जनवरी महीने में आते हैं और अप्रैल-मई तक लगते रहते हैं।
मदार मुख्य रूप से भारत में पाया जाता है, लेकिन दक्षिण पूर्व एशिया और अफ्रीका में भी यह बहुतायत में पाया जाता है। थाईलैंड में मदार के फूलों का उपयोग विभिन्न अवसरों पर सजावट के लिए किया जाता है। इसे राजसी गौरव का प्रतीक माना जाता है और मान्यता है कि उनकी इष्ट देवी हवाई की रानी लिलीउओकलानी को मदार का पुष्पहार पहनना पसंद है। कंबोडिया में अंतिम संस्कार के आयोजन के दौरान घर की आंतरिक सजावट के साथ ही कलश या ताबूत पर चढ़ाने और अंत्येष्टि में इसका उपयोग किया जाता है।
हिंदुओं के धर्म ग्रंथ शिव पुराण के अनुसार मदार के फूल भगवान शिव को बहुत पसंद है इसलिए शांति, समृद्धि और समाज में स्थिरता के लिए भगवान शिव को इसकी माला चढ़ाई जाती है। मदार का फूल नौ ज्योतिषीय पेड़ों में से भी एक है। स्कन्द पुराण के अनुसार भगवान गणेश की पूजा में मदार के पत्ते का इस्तेमाल करना चाहिए। स्मृतिसार ग्रंथ के अनुसार मदार की टहनियों का इस्तेमाल दातुन के रूप में करने से दांतों की कई बीमारियां दूर हो जाती हैं। भारतीय महाकाव्य महाभारत के आदि पर्व के पुष्य अध्याय में भी मदार की चर्चा मिलती है। इसके अनुसार ऋषि अयोद-दौम्य के शिष्य उपमन्यु की आंखों की रोशनी मदार के पत्ते खा लेने के कारण चली गई थी। मदार की छाल का इस्तेमाल प्राचीन काल में धनुष की प्रत्यंचा बनाने में किया जाता था। लचीला होने के कारण इसका उपयोग रस्सी, चटाई, मछली पकड़ने की जाल आदि बनाने के लिए भी किया जाता है।
औषधीय गुण
वैसे तो मदार को एक जहरीला पौधा माना जाता है, और कुछ हद तक यह सही भी है, लेकिन यह कई रोगों के उपचार में भी कारगर है। मदार देश का एक प्रसिद्ध औषधीय पौधा है। इसके पौधे के विभिन्न हिस्से कई तरह के रोगों के उपचार में कारगर साबित हुए हैं। इनमें दर्द सहित मधुमेह के रोगियों में रक्त शर्करा के स्तर को कम करने के लिए इसका इस्तेमाल किया जाता है। मदार के औषधीय गुणों की पुष्टि कई वैज्ञानिक अध्ययन भी करते हैं। वर्ष 2005 में टोक्सिकॉन नामक जर्नल में प्रकाशित एक शोध के अनुसार मदार का दूध बहते हुए खून को नियंत्रित करने में उपयोगी है। मदार का कच्चा दूध कई प्रकार के प्रोटीन से लबरेज हैं, जो प्रकृति में बुनियादी रूप में मौजूद होते हैं।
वर्ष 2012 में एडवांसेस इन नैचरल एंड अप्लाइड साइंसेज नामक जर्नल में प्रकाशित एक शोध दर्शाता है कि मदार के पत्ते जोड़ों के दर्द और मधुमेह के उपचार में कारगर हैं। वहीं वर्ष 1998 में कनेडियन सोसायटी फॉर फार्मास्युटिकल साइंसेज में प्रकाशित शोध ने इस बात की पुष्टि की है कि मदार का रस दस्त रोकने में भी उपयोगी है।
इन सब के अलावा मदार के पौधे के विभिन्न हिस्सों को सौ से भी अधिक बीमारियों के उपचार में कारगर माना गया है। बिच्छू के डंक मार देने की स्थिति में भी मदार का दूध डंक वाली जगह पर लगाने से आराम मिलता है। हालांकि मदार का दूध आंखों के संपर्क में आ जाए तो यह मनुष्य को अंधा भी बना सकता है। इसलिए मदार का औषधीय तौर पर इस्तेमाल सावधानीपूर्वक किया जाना चाहिए।
व्यंजन
सामग्री:
आक की रोटी सामग्री:
विधि: सफेद मदार के पौधे को उखाड़ लें और जड़ काटकर अलग कर लें। अब एक बड़े पैन में मदार की जड़ को 4 लीटर पानी में डालकर उबालें। जब पानी सूखकर आधा हो जाए, तो पैन को आंच से उतार लें और जड़ को पानी से निकाल लें। अब उबले हुए पानी में गेहूं डाल कर पानी सोखने तक छोड़ दें। जब गेहूं सारा पानी सोख ले तो इसे धूप में सुखा लें। अब इस गेहूं को पीसकर आटा बना लें। इस आटे से रोटियां बनाएं और घी और गुड़ के साथ परोसें। ये रोटियां न सिर्फ पोषक तत्वों से भरपूर होती हैं, बल्कि गठिया जैसी बीमारियों को दूर भागने में भी सक्षम है। |