फालसा का फलसफा

बचपन में सबका ध्यान खींचने वाले और गुणों से भरपूर फालसे की खेती से बहुत कम लोग परिचित हैं

By Vibha Varshney

On: Thursday 15 November 2018
 

फालसे का शरबत गर्मी के मौसम में त्वचा को झुलसने से बचाता है और बुखार के उपचार में भी काम आता है (फोटो: विकास चौधरी / सीएसई)

जब हम बच्चे थे तब अपने गली-मोहल्ले में एक आवाज का बहुत उत्सुकता से इंतजार किया करते थे- काले-काले फालसे, शरबत वाले फालसे, ठंडे-मीठे फालसे, बड़े रसीले फालसे।

यह आवाज सुनते ही आस-पड़ोस के बच्चे गरमी की छुट्टियों के दौरान चिलचिलाती धूप में भी फालसे खरीदने के लिए दौड़ पड़ते थे। फालसा एक जामुनी रंग का करीब एक सेंटीमीटर व्यास का एक गोल फल होता है, जिसमें बीज के ऊपर गूदे की एक बेहद पतली परत होती है। इसका स्वाद खट्टा-मीठा होता है। बेचने वाले की टोकरी में बहुत कम फालसे होते थे और हमारा बाल मन यह समझ नहीं पाता था कि इतने कम फालसे बेचकर उसे कितना मुनाफा होता होगा।

हम सोचते थे कि इसकी झाड़ी में बहुत कांटे होते हैं, इसलिए उसमें से फालसे तोड़ना आसान काम नहीं होगा। इस लिहाज से बेचने वाला हमारे लिए वास्तविक हीरो था जो उन कांटों के बीच से स्वादिष्ट फालसे तोड़ लाता था। वास्तव में फालसे की झाड़ी में कांटे नहीं होते और टोकरी में इसके कम होने की वजह यह थी कि वह बहुत कम-कम मात्रा में पकता है और पके फालसों को हाथों से चुना जाता है। उसे अधिक दिनों तक बचाकर रखना भी सम्भव नहीं होता, क्योंकि ये जल्दी सड़ जाते हैं।

अनोखा फल

फालसा तिलासिया परिवार का एक फल है और इसके पेड़ झाड़ीनुमा होते हैं। तिलासिया परिवार में करीब 150 प्रजातियां पाई जाती हैं, जिनमें से फालसा एकमात्र ऐसा फल है जिसे खाया जाता है। ऐसी मान्यता है कि फालसा भारत का स्वदेशी फल है। हालांकि इसे नेपाल, पाकिस्तान, लाओस, थाइलैंड और कम्बोडिया में भी उगाया जाता है।

इसके पेड़ को ऑस्ट्रेलिया और फिलिपींस में खर-पतवार के तौर पर जाना जाता है। फालसे के पेड़ का वानस्पतिक नाम ग्रेविया आसीयाटिका है। आधुनिक वर्गीकरण के पिता कार्ल लिनौस ने नेहेमिया ग्रियु, जिन्हें फादर ऑफ प्लांट एनाटोमी भी कहा जाता है, के सम्मान में यह नाम दिया। बस इस फल का वैश्विक संबंध यहीं खत्म हो जाता है।

फालसे मुख्यतः मई-जून के महीने में पकते हैं। फालसा के फल बहुत नाजुक होते हैं और इसे आसानी से लम्बी दूरी तक नहीं लेकर जाया जा सकता। इस कारण इसका उपभोग मुख्यतः स्थानीय तौर पर ही किया जाता है। बड़े शहरों के निकट ही इसका उत्पादन सीमित है। फालसे के पेड़ मुख्य रूप से आम और बेल के बागानों में स्थान भरने के लिए उगाए जाते हैं। गर्मी के महीनों में इसके फल और इससे बना शरबत ठंडक का अहसास करवाते हैं। बहुत अधिक पके हुए फल शरबत बनाने के लिए ज्यादा ठीक होते हैं।

आयुर्वेद के अनुसार, फालसा का शरबत गर्मी के मौसम में त्वचा को झुलसने से बचाता है और बुखार के उपचार में भी काम आता है। फालसा हृदय के लिए अच्छा होता है। यह मूत्र संबंधी विकारों और सूजन के उपचार में भी कारगर है। आधुनिक चिकित्सा विज्ञान ने यह पाया है कि फालसा का सेवन मधुमेह रोगियों के खून में शर्करा की मात्रा को नियंत्रित करता है और विकिरण के प्रभाव से होने वाली क्षति से बचाव भी कर सकता है। फालसे में प्रचुर मात्रा में कैल्शियम, आयरन, फास्फोरस, विटामिन ए, बी और सी पाया जाता है।

इसके स्वाद के कायल कई लोग इसके कठोर बीज को भी चबा जाते हैं। इस फल के बीज के तेल में एक प्रकार का वसा अम्ल (लिनोलेनिक ऐसिड) पाया जाता है, जो मनुष्य के शरीर के लिए बेहद उपयोगी है।

फालसे में प्रचुर मात्रा में कैल्शियम, आयरन, फास्फोरस, विटामिन ए, बी और सी पाया जाता है

मुश्किल है फालसे की खेती

दुर्भाग्यवश, फालसे की खेती किसानों के बीच लोकप्रिय नहीं है, क्योंकि इसकी खेती के तरीकों के बारे में बहुत कम लोग ही जानते हैं। कुछ अध्ययन बताते हैं कि गोबर और खाद के उपयोग से इसकी उपज बढ़ाई जा सकती है। हालांकि इसके बावजूद एक पेड़ प्रतिवर्ष 10 किलो से अधिक उपज नहीं दे पाता। यह भी कहा जाता है कि उपज बढ़ाने के लिए पेड़ों की छंटाई की जानी चाहिए, लेकिन अधिकतम उपज पाने के लिए छंटाई की क्या हद होगी, इसका अध्ययन किया जाना बाकी है।

वर्तमान में फालसे की खेती छोटे रकबे में पंजाब, हरियाणा, गुजरात, महाराष्ट्र और बिहार में होती है। यद्यपि फालसे की खेती को लोकप्रिय बनाया जा सकता है, क्योंकि इसके पौधे अनुपजाऊ मिट्टी में भी पनप सकते हैं। इसके पौधे सूखा रोधी होते हैं और अधिक तापमान पर भी जीवित रह सकते हैं। यह मिट्टी के कटाव को रोकने के साथ ही इसका उपयोग हवा के बहाव को बाधित करने के लिए भी किया जाता है। फालसा के पौधे की पतली शाखाओं का इस्तेमाल टोकरी बनाने में किया जा सकता है। इसकी छाल में एक चिपचिपा पदार्थ पाया जाता है, जिसका उपयोग गन्ने के रस को साफ करने के लिए किया जा सकता है, जिससे इस काम के लिए प्रयुक्त रसायनों के इस्तेमाल से बचा जा सके।

वैज्ञानिक तथा औद्योगिक अनुसंधान परिषद (सीएसआईआर) के तहत इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ इंटीग्रेटिव मेडिसिन ने हाल ही में जम्मू क्षेत्र में फालसे के पेड़ों को उगाने की पहल शुरू की है, जिससे इस स्वादिष्ट फल को इस क्षेत्र से विलुप्त होने से बचाया जा सके। संस्थान ने फालसे से एक प्रकार का हेल्थ ड्रिंक बनाने की तकनीक विकसित की है, जिसे वैष्णो देवी मंदिर जाने के रास्ते में तीर्थयात्रियों को बेचा जा रहा है।

व्यंजन
 

फालसा शरबत
सामग्री

  • फालसे: 200 ग्राम
  • गुड़: 25 ग्राम
  • काला नमक: स्वादानुसार
  • भुना हुआ जीरा: 2 चुटकी

 

विधि: फालसे को अच्छी तरह से धोकर गूदे से बीज को अलग कर लें। अब गूदे को एक छन्नी की सहायता से अच्छे से निचोड़कर इसका रस निकाल लें। एक बड़े कटोरे में ठंडा पानी, गुड़, काला नमक और भुना व दरदरा पिसा हुआ जीरा मिलाएं। अब इस घोल में निचोड़े गए फालसे का रस मिलाएं और परोसें।

पुस्तक

बेस्ट बीफोर: द एवोल्यूशन एंड फ्यूचर ऑफ प्रोसेस्ड फूड

लेखक: निकोला टेम्पल

प्रकाशक: ब्लूम्सबरी सिग्मा

पृष्ठ: 272 | मूल्य: $27.00

इस पुस्तक में बड़े व्यापार, उपभोक्ता मांग, स्वास्थ्य चिंताओं, नवीनता, राजनीतिक, अपशिष्ट और युद्ध के परिप्रेक्ष्य में खाद्य पदार्थों के प्रसंस्करण के तरीकों की पड़ताल की गई है।



चाय, चाट & चटनी : अ स्ट्रीट फूड जर्नी थ्रू इंडिया

लेखक: चेतन माकन
प्रकाशक: मिशेल बिजले
पृष्ठ: 240 | मूल्य: $29.99

इस पुस्तक में भारतीय व्यंजनों को बिल्कुल नए तरीक़े से बनाने की विधियों को शामिल किया गया है।

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