इससे लगभग 10 करोड़ कामगारों को लाभ पहुंचने की उम्मीद है। इस योजना का नाम “पीएम श्रमयोगी मानधन योजना” है
आखिरकार केंद्र सरकार ने अपने अंतरिम बजट में घरों में काम करने वाली महिलाओं, धोबी, ड्राइवरों, प्लंबर, बिजली का काम करने वाले और ऐसे ही अन्य काम करने वाले असंगठित क्षेत्र के कामगारों की सुध ली है और पेंशन देने की घोषणा की है। डाउन टू अर्थ ने बजट से एक दिन पहले ही इस बारे में बता दिया था। इससे लगभग 10 करोड़ कामगारों को लाभ पहुंचने की उम्मीद है। इस योजना का नाम “पीएम श्रमयोगी मानधन योजना” है।
इस योजना के अंतर्गत 15 हजार रुपए तक कमाने वाले 10 करोड़ श्रमिकों को लाभ मिलेगा। योजना के अंतर्गत कम आमदनी वाले श्रमिकों को पेंशन देगी सरकार। 100 रुपए प्रति महीने के अंशदान पर 60 साल की आयु के बाद 3,000 रुपए प्रति माह पेंशन की व्यवस्था होगी।
इस योजना के तहत 18 साल की उम्र से कोई श्रमिक जुड़ता है तो उसे 55 रुपए प्रति माह जमा कराने होंगे। यदि कोई 29 साल की उम्र में जुड़ता है तो उसे लगभग 100 रुपए जमा करने होंगे। इतनी ही रकम सरकार द्वारा भी जमा की जाएगी। यह रकम वह 60 साल तक जमा करनी होगी। इसके लिए सरकार ने अनुमानित 500 करोड़ रुपए रखे गए हैं। यदि इससे अधिक की जरूरत हुई तो ओर रकम की व्यवस्था की जाएगी।
सरकार ने श्रमिकों के लिए प्रधानमंत्री श्रमयोगी मान धन योजना के ऐलान के अलावा मजदूरों को सात हजार रुपए का बोनस देने का भी ऐलान किया है। जिन मजदूरों की आय 21 हजार रुपए है उन्हें सात हजार रुपए का बोनस मिलेगा। साथ ही काम के दौरान श्रमिकों की मौत पर उन्हें 6 लाख रुपए दिए जाएंगे।
इस योजना के लागू होने पर सालाना 1,200 करोड़ रुपए की जरूरत होगी और यह देश के 50 करोड़ कामगारों को यूनिवर्सल सोशल सिक्यॉरिटी देने के सरकार के विजन की दिशा में एक कदम हो सकता है। अभी न्यूनतम पेंशन 1000 रुपए महीने की है।
ध्यान रहे कि देश में लगभग 50 करोड़ कामगारों में से 90 फीसदी असंगठित कामगार हैं। श्रम मंत्रालय ने ऐसे असंगठित क्षेत्र के सबसे कमजोर 25 प्रतिशत लोगों के लिए एक वित्तीय सुरक्षा योजना शुरू करने की कार्ययोजना तैयार की थी और उसे वित्त मंत्रालय को कार्यरूप देने के लिए भेजी थी। इसके लिए केंद्र सरकार ने कई ट्रेड यूनियनों के साथ जनवरी, 2019 में बैठक आयोजित की थी। ये बैठक वित्त मंत्री अरुण जेटली के साथ हुईं थी। तभी जेटली ने कामगारों के लिए सोशल सिक्योरिटी की मांग पर सैद्धांतिक सहमति जताई थी।
यह योजना एक व्यापक यूनिवर्सल सोशल सिक्यॉरिटी सिस्टम बनाने की श्रम मंत्रालय की पहले की कोशिशों से कुछ मामले में अलग कही जा सकती है, जिसमें 50 करोड़ कामगारों को चार स्तरों में बांटा गया था। सबसे नीचे वाले 25 प्रतिशत वर्कर्स के लिए अंशदान सरकार को ही करना था, उसके ऊपर के 25 प्रतिशत हिस्से के लिए सब्सिडी दी जानी थी जबकि इससे ऊपर के स्तरों वालों को या तो खुद अंशदान करना था या उनके एंप्लॉयर्स को इसमें हाथ बंटाना था।
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