रबी सीजन की फसलों का समर्थन मूल्य घोषित, गेहूं में की गई सबसे कम वृद्धि

रबी सीजन 2020-21 के लिए न्यूनतम समर्थन मूल्य घोषणा की गई है, सबसे कम गेहूं और सबसे अधिक मसूर में वृद्धि की गई है

By DTE Staff

On: Wednesday 23 October 2019
 
Photo: Meeta Ahlawat

केंद्र सरकार ने रबी सीजन 2020-21 के लिए फसलों के न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) की घोषणा कर दी है। बुधवार को हुई आर्थिक मामलों की मंत्रिमंडलीय समिति में एमएसपी बढ़ाने का निर्णय लिया गया। सरकार ने गेहूं में सबसे कम लगभग 4.61 फीसदी की वृद्धि की है, जबकि सबसे ज्यादा बढ़ोतरी मसूर के समर्थन मूल्य में 7.26 फीसदी की गई है।

गेहूं का समर्थन मूल्य में पिछले साल 6.05 फीसदी की गई थी, लेकिन इस बार इसमें और कम वृदि्ध की गई है। गेहूं का समर्थन मूल्य 1925 रुपए प्रति क्विंटल घोषित किया गया है। इसमें 85 रुपए की वृद्धि की गई है। रबी सीजन 2019-20 में गेहूं का समर्थन मूल्य 1,840 रुपए प्रति क्विंटल था। पिछले रबी सीजन में गेहूं का समर्थन मूल्य 105 रुपए प्रति क्विंटल बढ़ाया गया था। जबकि 2014 में केवल 75 रुपए प्रति क्विंटल ही वृद्धि की गई है। 

रबी दलहन की प्रमुख फसल चना का समर्थन मूल्य में 5.51 फीसदी वृद्धि की गई है। पिछले रबी सीजन में चना का समर्थन मूल्य 4620 रुपए प्रति क्विंटल था। इसे बढ़ा कर 4875 रुपये प्रति क्विंटल घोषित किया गया है। सबसे ज्यादा वृद्धि मसूर के समर्थन मूल्य में की गई है। यह लगभग 7.26 फीसदी है। पिछले रबी में इसका समर्थन मूल्य 4,475 रुपए प्रति क्विंटल था। इसमें 325 रुपए बढ़ा कर 4,800 रुपए प्रति क्विंटल तय किया गया है।

इसके अलावा जौ के समर्थन मूल्य में 5.90 फीसदी की वृद्धि की गई है। पिछले रबी सीजन में जौ का समर्थन मूल्य 1440 रुपए प्रति क्विंटल था। इसे बढ़ा कर 1525 रुपए कर दिया गया है।

रबी सीजन की प्रमुख फसल सरसों के समर्थन मूल्य में 5.35 फीसदी यानि 225 रुपए प्रति क्विंटल की वृद्धि की गई है। इसे अब 4425 रुपए प्रति क्विंटल की दर से बेचा जा सकेगा। सनफ्लावर के समर्थन मूल्य में 270 रुपए की बढ़ोतरी की गई है। इसका समर्थन मूल्य 5215 रुपए प्रति क्विंटल तय किया गया है।

गौरतलब है कि केंद्रीय पूल के लिए भारतीय खाद्य निगम (एफसीआई) पंजाब, हरियाणा, मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश और राजस्थान से ज्यादा खरीद करता है। रबी सीजन 2019-20 में समर्थन मूल्य पर 341.32 लाख टन गेहूं की खरीद की गई थी। दलहन और तिलहन की खरीद नेफेड और एजेंसियां करती हैं, लेकिन इनकी खरीद कुल उत्पादन के मुकाबले काफी कम होती है।

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