सरकार जब से शासन में आई है तब से इस योजना की चर्चा है। 2015-16 के बजट भाषण में वित्त मंत्री ने एक लाख रुपए के कवरेज के साथ यही घोषणा की थी।
मंत्री अरुण जेटली ने 2018-19 के बजट में राष्ट्रीय स्वास्थ्य सुरक्षा योजना की घोषणा करते वक्त इसे विश्व की सबसे बड़ी स्वास्थ्य योजना बताया। वित्त मंत्री ने आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग के 10 करोड़ परिवारों के प्रति व्यक्ति को 5 लाख रुपए के स्वास्थ्य बीमा का वादा किया। अस्पताल में भर्ती होने पर प्रत्येक परिवार को हर साल 5 लाख का कवर मिलेगा।
सरकार जब से शासन में आई है तब से इस योजना की चर्चा है। 2015-16 के बजट भाषण में वित्त मंत्री ने एक लाख रुपए के कवरेज के साथ यही घोषणा की थी। इसके बाद 15 अगस्त 2016 को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपने भाषण में गरीबों की मदद के लिए इसका जिक्र किया। नवंबर 2016 से यह प्रस्ताव केंद्रीय मंत्रीमंडल के पास है।
2014 में लोकसभा चुनाव के दौरान भारतीय जनता पार्टी के अगुवाई वाले गठबंधन ने राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन को बेहतर योजना से बदलने का वादा किया था। इसमें बीमा के बदले मदद को तवज्जो दी गई थी। लेकिन घूम फिरकर सरकार वापस बीमा पर ही भरोसा दिखा रही है।
भारत में स्वास्थ्य बीमा का इतिहास
भारत सरकार एक तरफ तो सरकारी अस्पतालों की स्थिति कमजोर करती जा रही है और दूसरी तरफ लोगों को स्वास्थ्य सुरक्षा के नाम पर निजी अस्पतालों की तरफ धकेलती रही है और निजी अस्पतालों का इतिहास खासकर बीमा को लेकर बहुत सही नहीं रहा है।
जैसे डाउन टू अर्थ ने 2012 में बिहार के समस्तीपुर जिले में ऐसा ही एक मामला उजागर किया था, जहां बीमा योजना के शुरू करने के बाद 10,000 बच्चेदानी को निकालना के मामले पता चले थे। डाउन टू अर्थ ने पाया था कि अल्पायु लड़कियों की भी बच्चेदानी निकाल ली गई थी। ऐसे भी मामले सामने आए जहां पुरुषों ने महिलाओं के अंग हटाए। कई दस्तावेज भी अधूरे थे।
निजी क्षेत्र पर भरोसा
चूंकि सरकारी अस्पताल बद से बदतर होते जा रहे हैं तो लोगों के पास निजी अस्पतालों में जाने के सिवा कोई चारा नहीं है जहां उन्हें न केवल शोषण का शिकार होना पड़ता है बल्कि भारी कीमत की वजह से आर्थिक चुनौतियों का भी सामना करना पड़ता है। प्राइवेट अस्पतालों में इलाज से कई लोग कर्जदार हो जाते हैं। 2015 में नेशनल सैंपल सर्वे ऑर्गनाइजेशन (एनएसएसओ) के सर्वे के मुताबिक, 70 प्रतिशत से ज्यादा बीमारियों का इलाज निजी अस्पतालों में हुआ है। 72 प्रतिशत ग्रामीण क्षेत्र और 79 प्रतिशत शहरी क्षेत्र में रहने वाले लोगों ने निजी क्षेत्र पर भरोसा किया। निजी क्षेत्र में नर्सिंग होम और चेरिटेबल संस्थान भी शामिल हैं।
एसएसएसओ की एक दूसरी रिपोर्ट कहती है कि लोगों के द्वारा निजी क्षेत्र पर अधिक पैसा खर्च करने की वजह सरकारी स्वास्थ्य तंत्र का क्षरण है। प्राइवेट नर्सिंग होम में इलाज से औसतन 25,850 रुपए का खर्च बैठता है जो सरकारी अस्पताल के मुकाबले 3 गुणा अधिक है। प्राइवेट अस्पतालों की वास्तविक लागत और अधिक बैठेगी क्योंकि एनएसएसओ के सर्वे में चैरिटी हॉस्पिटल को प्राइवेट श्रेणी में माना गया है।
We are a voice to you; you have been a support to us. Together we build journalism that is independent, credible and fearless. You can further help us by making a donation. This will mean a lot for our ability to bring you news, perspectives and analysis from the ground so that we can make change together.
India Environment Portal Resources :
Comments are moderated and will be published only after the site moderator’s approval. Please use a genuine email ID and provide your name. Selected comments may also be used in the ‘Letters’ section of the Down To Earth print edition.