भारत में जन्म के समय 18 फीसदी नवजातों का वजन सामान्य से होता है कम, बौद्धिक विकास पर भी असर

भारत में बड़ी संख्या में नवजातों का वजन जन्म के समय सामान्य से कम होता है। इसका असर बच्चियों, ग्रामीण परिवारों सहित उन बच्चों के बौद्धिक विकास पर ज्यादा देखने को मिला था जिनकी माताएं कम शिक्षित थी

By Lalit Maurya

On: Tuesday 26 April 2022
 

क्या जन्म के समय बच्चे का वजन सामान्य से कम होना किसी देश के आर्थिक विकास पर असर डाल सकता है? बात आपको हैरान कर सकती है कि किसी बच्चे के जन्म के समय वजन और देश के आर्थिक विकास का क्या सम्बन्ध है। लेकिन देखा जाए तो ऐसा मुमकिन है।

भारत में नवजातों को लेकर किए गए एक अध्ययन से पता चला है कि यदि जन्म के समय बच्चे का वजन सामान्य से कम हो तो वो उसके बैद्धिक और मानसिक विकास पर असर डाल सकता है। जो आगे चलकर न केवल बच्चे और उसके परिवार बल्कि पूरी अर्थव्यवस्था के लिए भी नुकसानदेह साबित हो सकता है, क्योंकि यह बच्चे आगे चलकर इस अर्थव्यवस्था की रीढ़ बनेंगें।

देखा जाए तो जन्म के समय बच्चे का वजन सामान्य से कम होना न केवल भारत बल्कि दुनिया के कई देशों के लिए स्वास्थ्य से जुड़ा एक बहुत बड़ा मुद्दा है। जो स्पष्ट तौर पर दर्शाता है कि यह देश आज भी स्वास्थ्य और पोषण के मामले काफी पिछड़े हुए हैं।

ऐसे में एक सवाल यह बनता है कि आखिर जन्म के समय किसी बच्चे का वजन सामान्य है या नहीं यह कैसे तय होगा। इस बारे में विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्लूएचओ) के अनुसार जन्म के समय यदि किसी बच्चे का वजन ढाई किलोग्राम (2,500 ग्राम) से कम होता है तो उसे सामान्य से कम माना जाता है।

अनुमान है कि हर साल दुनिया भर में जन्म लेने वाले करीब 2.05 करोड़ बच्चों का वजन सामान्य से कम होता है। मतलब कि करीब 15 से 20 फीसदी बच्चे कम वजन के साथ पैदा होते हैं। देखा जाए तो यह पहले से ज्ञात है कि ऐसे शिशुओं में जन्म के पहले महीने में मृत्यु का जोखिम अन्य बच्चों की तुलना में कहीं ज्यादा होता है। हालांकि इस नए अध्ययन के मुताबिक इनमें से जो बच्चे जीवित रह जाते हैं, उनके मानसिक और बौद्धिक विकास पर इसका बुरा असर पड़ता है। 

जन्म के समय सामान्य से कम होता है भारत में 18 फीसदी नवजातों का वजन 

सेंटर फॉर डिजीज डायनामिक्स, इकोनॉमिक्स एंड पॉलिसी (सीडीडीईपी) के शोधकर्ताओं द्वारा सैम ह्यूस्टन विश्वविद्यालय और इंटरनेशनल इंस्टीट्यूट फॉर पॉपुलेशन साइंसेज (आईआईपीएस) के सहयोग से किए इस अध्ययन के मुताबिक भारत में करीब 18 फीसदी नवजातों का वजन उनके जन्म के समय सामान्य से कम होता है।

जर्नल ऑफ एप्लाइड इकोनॉमिक्स एंड पॉलिसी में प्रकाशित अपने इस अध्ययन में शोधकर्ताओं ने भारत में जन्म के समय नवजातों बच्चों के वजन और उनके बौद्धिक और संज्ञानात्मक विकास पर पड़ने वाले प्रभाव का आंकलन किया है। इसके लिए उन्होंने आंध्र प्रदेश में इंडियन यंग लाइव्स सर्वे (वाईएल) सर्वेक्षण से प्राप्त आंकड़ों का विश्लेषण किया है। 

देखा जाए तो जन्म के समय बच्चों के कम वजन को लेकर बहुत सारे अध्ययन किए गए हैं। लेकिन 5 से 8 वर्ष की आयु के बीच बच्चों के मानसिक और बौद्धिक विकास पर इसके पड़ने वाले असर का बहुत कम अध्ययन किया गया है। भारत में भी यह अपनी तरह का पहला शोध है, जिसमें जन्म के समय बच्चे का वजन और उसका पांच से आठ वर्ष की आयु में बच्चे के संज्ञानात्मक विकास पर पड़ने वाले असर का अनुमान लगाया गया है। देखा जाए तो इस आयु में बच्चों के स्वास्थ्य से जुड़े फैसले कहीं ज्यादा महत्वपूर्ण होते हैं।

अध्ययन में जन्म के समय कम वजन वाले बच्चों में सामान्य बच्चों की तुलना में टेस्ट स्कोर में कम अंक मिले थे, जो दर्शाता है कि बच्चों में जन्म के समय शारीरिक विकास पूरी तरह न हो पाने का असर उनकी बौद्धिक क्षमता पर भी पड़ता है। जो निष्कर्ष सामने आए हैं उनके अनुसार जन्म के समय बच्चे के वजन में आई सिर्फ 10 फीसदी की वृद्धि, 5 से 8 वर्ष की आयु में उसके संज्ञानात्मक परीक्षण स्कोर में 0.11 अंक की वृद्धि कर सकती है।

स्वस्थ समाज की नींव है स्वस्थ बच्चा

इतना ही नहीं शोध के अनुसार संज्ञानात्मक परीक्षण स्कोर में जन्म के समय कम वजन का प्रभाव बच्चियों, ग्रामीण परिवारों सहित उन बच्चों के बौद्धिक विकास पर ज्यादा देखने को मिला था, जिनकी माताएं कम शिक्षित थी

ऐसे में यह जरुरी है कि भारत सहित दुनिया के उन सभी पिछड़े देशों में स्वास्थ्य सम्बन्धी नीतियों को इस तरह डिजाईन किया जाए, जिससे इन बच्चों का शारीरिक और मानसिक विकास सुनिश्चित हो सके। इसके लिए प्रसवपूर्व देखभाल और मातृ पोषण तक पहुंच को बढ़ावा दिया जाना जरुरी है। 

इस बारे में सीडीडीईपी के निदेशक डॉक्टर रामनन लक्ष्मीनारायण का कहना है कि भारत में नवजातों की एक बड़ी आबादी का वजन जन्म के समय सामान्य से कम होता है। देखा जाए तो भारत में हर साल पैदा होने वाले 2.6 करोड़ बच्चे देश के आर्थिक विकास के लिए बहुत मायने रखते हैं। हालांकि जन्म से पूर्व माताओं को समुचित पोषण न मिल पाने के कारण यह बच्चे जन्म के समय कुपोषित पैदा होते हैं।

इस तरह यह बच्चे जन्म से ही वंचित रह जाते हैं। ऐसे में न केवल इन बच्चों के शारीरिक और मानसिक विकास के लिए बल्कि सम्पूर्ण देश के विकास के लिए मातृ पोषण में सुधार की जरुरत है, क्योंकि जब वो बच्चा स्वस्थ होगा तभी वो आगे चलकर स्वस्थ समाज का निर्माण कर सकेगा।

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