2017 से 2030 के बीच भारत में 68 लाख बच्चियां नहीं ले पाएंगी जन्म!

जर्नल प्लोस में छपे शोध के अनुसार 2017 से 2030 के बीच भारत में 68 लाख बच्चियां का जन्म नहीं होगा, क्योंकि बेटे की लालसा में उन्हें जन्म लेने से पहले ही मारा जा सकता है

By Lalit Maurya

On: Thursday 20 August 2020
 

2017 से 2030 के बीच भारत में 68 लाख बच्चियां जन्म नहीं ले सकेंगी, क्योंकि बेटे की लालसा में उन्हें जन्म लेने से पहले ही मार दिया जाएगा। यह जानकारी 19 अगस्त को जर्नल प्लोस में छपे एक नए शोध में सामने आई है। शोधकर्ताओं ने इसके लिए देश भर में हो रही कन्या भ्रूण हत्या को जिम्मेवार माना है। यह शोध फेंग्किंग चाओ और उनके सहयोगियों द्वारा किया गया है जोकि किंग अब्दुल्ला यूनिवर्सिटी ऑफ साइंस एंड टेक्नोलॉजी, सऊदी अरब से जुड़े हैं।

भारत में कन्या भ्रूण हत्या का इतिहास कोई नया नहीं है। लम्बे समय से लड़कों को दी जा रही वरीयता का असर लिंगानुपात पर भी पड़ रहा है। समाज में फैली इस कुरुति ने संस्कृति का रूप ले लिया है। लड़का वंश चलाएगा यह मानसिकता आज भी भारत में फैली हुई है। सिर्फ अनपढ़ और कम पढ़े-लिखे परिवारों में ही नहीं बल्कि शिक्षित लोगों में आज भी यह मानसिकता ख़त्म नहीं हुई है। 1970 के बाद से तकनीकी ज्ञान ने इस काम को और आसान कर दिया है। इसमें भ्रूण की पहचान बताने वाले अल्ट्रासाउंड सेंटर और नर्सिंग होम की एक बड़ी भूमिका है।

हर साल औसतन 469,000 कन्या भ्रूण नहीं ले पाएंगी जन्म

इस शोध में शोधकर्ताओं ने देश के 29 राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों को शामिल किया है और उनमें जन्म के समय लिंगानुपात का विश्लेषण किया है। 2011 के आंकड़ों के अनुसार यह देश की 98.4 फीसदी आबादी का प्रतिनिधित्व करते हैं। जिसमें से 9 में स्पष्ट तौर पर बेटे की वरीयता साफ झलकती है। इसमें से उत्तरपश्चिम के राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों की स्थिति सबसे ज्यादा खराब है।

यदि पूरे भारत को देखें तो 2017 से 2030 के दौरान 68 लाख कन्या भ्रूण जन्म नहीं ले पाएंगी। यदि 2017 से 2025 के बीच का वार्षिक औसत देखें तो यह आंकड़ा 469,000 के करीब है। जबकि 2026 से 2030 के बीच यह बढ़कर प्रति वर्ष 519,000 पर पहुंच जाएगी। शोधकर्ताओं के अनुसार कन्या जन्म में सबसे अधिक कमी उत्तर प्रदेश में होगी, जिसमें अनुमान है कि 2017 से 2030 के बीच 20 लाख बच्चियां जन्म नहीं ले पाएंगी।

केवल कानून से नहीं मानसिकता बदलने से आएगा बदलाव

हालांकि देश में इसको रोकने के लिए पीसी पीएनडीटी एक्ट अर्थात प्रसव पूर्व निदान तकनीक (विनियमन एवं दुरूपयोग निवारण अधिनियम-1994) बनाया गया था जिसे 1996 में लागु किया गया था। वर्ष 2003 में इसे संशोधित किया गया था, इसके तहत लिंग निर्धारण करते हुए पहली बार पकड़े जाने पर तीन वर्ष की सजा एवं 50 हजार का जुर्माना लगाने का प्रावधान था। जबकि दूसरी बार पकड़े जाने पर पांच वर्ष की जेल एवं एक लाख रुपये का अर्थ दंड निर्धारित किया गया है। इसके बावजूद देश में अभी भी इस कानून का उल्लंघन जारी है।

यह स्थिति तब तक नहीं सुधरेगी जब तक लोगों की मानसिकता नहीं बदलती। केवल कानून बना देने से इस समस्या का समाधान नहीं होगा। भारतीय समय में मानसिकता के बदलाव की जो प्रक्रिया है वो बहुत धीमी है। आज भी लोग बेटियों की जगह बेटों को तरजीह देते हैं। जिसके पीछे की मानसिकता यह है कि बेटों से वंश चलता है, जबकि बेटियां पराया धन होती हैं। जो शादी के बाद पराये घर चली जाती हैं।

देश में आज भी लड़की का मतलब परिवार के लिए अतिरिक्त खर्च होता है। इसमें समाज की भी बहुत बड़ी भूमिका है, बच्चियों के खिलाफ बढ़ते अपराधों की वजह से भी लोग बेटी के बदले बेटा चाहते हैं। तकनीक की मदद से गर्भ में ही बच्चे के लिंग का पता चल जाता है और बेटी होने पर गर्भपात करा दिया जाता है। ऐसे में कानून के साथ-साथ मानसिकता में भी बदलाव लाने की जरुरत है, जिससे वास्तविकता में बेटियों को बराबरी का हक़ दिया जा सके।

Subscribe to our daily hindi newsletter