चमकी बुखार: बिहार सरकार ने मानी 57 बच्चों की मौत की बात

स्थानीय मीडिया के अनुसार चमकी बुखार की वजह से 72 बच्चों की मौत हो चुकी है, उत्तर बिहार के छह जिले चपेट में हैं।

On: Friday 14 June 2019
 
अस्पताल में भर्ती चमकी बुखार से पीड़ित बच्चा। फोटो: पुष्यमित्र

पुष्यमित्र 

पिछले 20-22 दिनों से उत्तर बिहार के मुजफ्फरपुर, सीतामढ़ी, पूर्वी चंपारण, शिवहर, समस्तीपुर और वैशाली जिले में एक्यूट इनसेफ्लाइटिस सिंड्रोम (एईएस) का कहर जारी है। स्थानीय मीडिया में आयी खबरों के मुताबिक गुरुवार को देर रात तक 8 बच्चों की मौत हुई, इस तरह इस रोग से पिछले 13 दिनों में 72 बच्चों की मौत हो चुकी है और अब तक 199 रोगियों में इसकी पहचान हो चुकी है। हालांकि राज्य सरकार का स्वास्थ्य विभाग इसकी पुष्टि नहीं कर रहा। मगर आज मुजफ्फरपुर पहुंचे बिहार के स्वास्थ्य मंत्री ने स्वीकार किया है कि इस रोग से अब तक 57 बच्चों की मौत हो चुकी है।

इस रोग का जायजा लेने आज मुजफ्फरपुर पहुंचे बिहार के स्वास्थ्य मंत्री मंगल पांडेय ने कहा कि अब तक इस रोग से 57 बच्चों की मौत हो चुकी है, इनमें से 46 बच्चों की मौत एसकेएमसीएच मुजफ्फरपुर में और 8 की मौत केजरीवाल अस्पताल मुजफ्फरपुर में हुई है। शेष तीन बच्चों की मौत अन्य अस्पतालों में हुई है। उन्होंने कहा कि एक प्रोफेसर के नेतृत्व में तीन एसोसियेट प्रोफेसर, चार असिस्टेंट प्रोफेसर, नौ सीनियर रेसिडेंट और 15 जूनियर रेसिडेंट यानी कुल 32 चिकित्सकों की एक टीम गठित की गयी है, जो इस रोग के रोकथाम का प्रयास करेगी। अस्पताल में बेड की संख्या बढ़ाई जा रही है।

इस बीच मुजफ्फरपुर के एसकेएमसीएच अस्पताल में अभी भी कई जगह एक बेड पर दो-दो बच्चों का इलाज चल रहा है। दिल्ली से आयी केंद्रीय टीम ने साफ-साफ कहा है कि इसे एइएस ही माना जाये। इसे किसी और नाम से नहीं पुकारा जाये। टीम के प्रमुख राष्ट्रीय बाल स्वास्थ्य कार्यक्रम के सलाहकार अरुण कुमार सिन्हा ने इस बीमारी को हाइपो ग्लाइसेमिया मान कर एइएस का इलाज नहीं करना ठीक नहीं है। इलाज के दौरान बच्चों का लीवर बढ़े होने की शिकायतें भी सामने आ रही है।

यूनिसेफ बिहार के बाल स्वास्थ्य विशेषज्ञ डॉ हुबे अली जो पिछले कई सालों से इस रोग पर निगाह बनाये हुए हैं, कहते हैं, जागरूकता का अभाव सबसे बड़ी वजह है। लोगों को यह मालूम नहीं है कि उन्हें इलाज के लिए पहले प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र जाना चाहिए, जहां विशेष तौर पर इसके इलाज की व्यवस्था की गयी है। वे सीधे एसकेएमसीएच चले जाते हैं, जिसमें काफी वक्त लगता है और बच्चों की तबीयत बिगड़ जाती है। उन्होंने बच्चों को रात में भूखा न सोने देने और बुखार आने पर पट्टी देने और ओआरएस या चीनी-नमक का घोल पिलाने की सलाह दी।

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