बिहार में कोरोना के कहर के बीच चमकी बुखार शुरू
अब तक आधिकारिक रूप से एक बच्चे की मौत हो चुकी है और तीन अन्य बीमार अवस्था में श्रीकृष्ण मेमोरियल कॉलेज अस्पताल, मुजफ्फरपुर में भर्ती हैं
On: Wednesday 01 April 2020
कोरोना संक्रमण की चुनौतियों का मुकाबला कर रहे बिहार के अपेक्षाकृत कमजोर स्वास्थ्य संसाधनों के सामने दोहरी चुनौती आ खड़ी हुई है। मुजफ्फरपुर और आसपास के इलाकसें में हर साल होने वाले चमकी बुखार का मौसम शुरू हो गया है। अब तक आधिकारिक रूप से एक बच्चे की मौत हो चुकी है और तीन अन्य बीमार अवस्था में श्रीकृष्ण मेमोरियल कॉलेज अस्पताल, मुजफ्फरपुर में भर्ती हैं। बहुत कम मैन पावर और संसाधनों वाला बिहार का स्वास्थ्य विभाग इन दिनों कोरोना के संक्रमण को कम करने में लगा हुआ है, ऐसे में यह सवाल उठ रहा है कि कहीं इस साल चमकी बुखार से पीड़ित बच्चों की स्थिति पिछले साल से भी बदतर न हो जाए। पिछले साल इस जानलेवा बुखार से 185 बच्चों की मौत हो गई थी।
इस साल वैसे तो दो हफ्ते पहले से चमकी जैसे लक्षण वाले मरीज एसकेएमसीएच में भर्ती होने लगे थे, मगर अस्पताल उन बच्चों में चमकी बुखार की पुष्टि नहीं कर रहा था। 29 मार्च, 2020 के दिन पहली दफा एसकेएमसीएच अस्पताल की तरफ से जानकारी दी गई कि इस मौसम के पहले चमकी रोगी मुजफ्फरपुर के सकरा प्रखंड के तीन वर्ष के बच्चे आदित्य कुमार की एइएस(चमकी) बुखार से मृत्यु हो गई। एक अन्य मरीज
पूर्वी चंपारण जिले की पांच साल की सपना कुमारी भी अस्पताल में इलाज करा रही है। मंगलवार, 31 मार्च की शाम को दो अन्य चमकी बुखार पीड़ित बच्चे अस्पताल में भर्ती हुए। उनका इलाज चल रहा है।
वैसे तो मुजफ्फरपुर जिले का स्वास्थ्य विभाग और एसकेएमसीएच अस्पताल के अधिकारी इस बात का दावा कर रहे हैं कि वे लोग कोरोना के साथ-साथ चमकी बुखार से मुकाबले के लिए भी तैयार हैं। मंगलवार को राज्य स्तर पर मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की अगुआई में हुई बैठक में भी यह दावा किया गया कि राज्य सरकार कोरोना संक्रमण के साथ-साथ, बर्ड फ्लू और एइएस से मुकाबले की तैयारी कर रहा है। मगर जमीनी हालात इस बार बहुत सकारात्मक नहीं लग रहे।
रुक गया है जागरुकता अभियान
चमकी बुखार को रोकने के लिए जागरुकता अभियान को बड़ा उपाय माना जाता है। इसके जरिए ग्रामीण स्वास्थ्य एवं पोषण कार्यकर्ता घर-घर जाकर बच्चों को रात में भूखे न सोने और चमकी बुखार से बचाव के उपाय समझाते हैं। बुखार होने पर क्या करना चाहिए इसकी जानकारी देते हैं। मगर कोरोना की वजह से हुए लॉकडाउन के कारण जागरुकता अभियान लगभग ठप है। नुक्कड़ सभाएं और जागरुकता रथ का काम भी रुक गया
है। स्वास्थ्य कार्यकर्ताओं को पंचायत स्तर पर बन रहे क्वारंटाइन सेंटर की देखरेख में लगा दिया गया है।
100 बेड के स्पेशल वार्ड के निर्माण का काम रुका
तय हुआ था एसकेएमसीएच अस्पताल में चमकी पीड़ित बच्चों के लिए 100 बेड का स्पेशल वार्ड इस सीजन से पहले बनकर तैयार हो जाएगा। मगर वह पहले ही लेट हो चुका था और अब पिछले तीन हफ्तों से उसके निर्माण का कार्य बंद है। कई प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों में चमकी बुखार के बच्चों के लिए बने स्पेशल पीकू वार्ड को कोरोना आइसोलेशन वार्ड में बदल दिया गया है।
लॉकडाउन में अस्पताल कैसे पहुंचेंगे बीमार बच्चे
लॉकडाउन की अवधि में बीमार पड़ने वाले बच्चों को अस्पताल तक पहुंचाना एक बड़ी चुनौती है। डॉक्टरों का कहना है कि ऐसे बच्चों के पास बचाव के लिए बमुश्किल छह घंटे का वक्त होता है। पिछले साल बच्चों के बीमार पड़ने पर पड़ोस के या गांव के मोटरसाइकिल सवार या ऑटो वाले इन बच्चों को अस्पताल पहुंचाया करते थे। इस साल लॉकडाउन और कोरोना संक्रमण के भय की वजह से लोग दूसरों की कितनी मदद कर पाएंगे, कहना मुश्किल है। मुजफ्फरपुर जिले में सिर्फ 34 सरकारी एंबुलेंस हैं। उनमें से आधे की स्थिति जर्जर बताई जा रही है। शेष बची एंबुलेंस पर कोरोना और चमकी दोनों का भार होगा। इन परिस्थितियों को देखते हुए ऐसा लगता है कि इस बार चमकी बुखार का कहर बच्चों के लिए कहीं पिछले साल से अधिक जानलेवा न हो जाए।