सुप्रीम कोर्ट ने तमिलनाडु के बाल गृह में फैल रहे कोरोना के संक्रमण पर मांगी रिपोर्ट

इसके अलावा पर्यावरण संबंधी मामलों में हुई सुनवाई का सार पढ़ें

By Susan Chacko, Lalit Maurya

On: Monday 15 June 2020
 

सुप्रीम कोर्ट (एससी) ने 11 जून, 2020 को तमिलनाडु के स्वास्थ्य और परिवार कल्याण विभाग और समाज कल्याण विभाग दोनों के सचिवों से चाइल्ड केयर होम में फैल रहे कोविड-19 पर उनकी रिपोर्ट मांगी है| रोयापुरम, चेन्नई के बाल संरक्षण घर में 57 में से लगभग 35 बच्चे कोरोनावायरस से संक्रमित पाए गए थे, जोकि अब अस्पताल में भर्ती हैं|

इसके साथ ही सुप्रीम कोर्ट ने यह भी आदेश दिया है कि तमिलनाडु के अन्य संरक्षण गृहों में भी बच्चों के स्वास्थ्य की स्थिति का जायजा लिया जाए| गौरतलब है कि भारत का संविधान बच्चों की सुरक्षा और भलाई को सर्वोच्च प्राथमिकता देता है। किशोर न्याय (बच्चों की देखभाल और संरक्षण) अधिनियम, 2015 भी कठिन परिस्थितियों में बच्चों की उचित देखभाल, सुरक्षा, उपचार और उनके विकास पर जोर देता है|

इसके साथ ही सुप्रीम कोर्ट ने अन्य राज्य सरकारों से भी बच्चों को इस वायरस से बचाने के लिए उठाए गए कदमों के बारे में जानकारी मांगी है और यह भी पूछा है कि 3 अप्रैल को उसने जो आदेश दिया था उसका पालन कैसे हो रहा है।

कोरोना के संक्रमण को देखते हुए कोर्ट ने यह भी कहा कि वह एक प्रश्नावली जारी करेगी जिसे जुवेनाइल जस्टिसेस कमेटी राज्य सरकारों को भेजेगी। इस प्रश्नावली का उत्तर 30 जून 2020 तक देने को कहा गया है। इस प्रश्नावली को संस्थानों में बच्चों की स्थिति की निगरानी करने के लिए तैयार किया गया है जिन्हें कोविड-19 के संक्रमण को देखते हुए इलाज और संरक्षण की ज़रूरत है और जो 3 अप्रैल 2020 को दिए सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर आधारित है। 


चेन्नई, तमिलनाडु में पेट्रोकेमिकल इंडस्ट्री द्वारा समुद्र में किये जा रहे प्रदूषण का मामला  

एनजीटी ने समुद्र में हो रहे प्रदूषण पर समिति को अपनी रिपोर्ट जमा करने के लिए दो महीनों का अतिरिक्त समय दिया है| यह आदेश 11  जून को दिया गया है| गौरतलब है कमेटी को मनाली पेट्रोकेमिकल लिमिटेड, मैसर्स कोठारी पेट्रोकेमिकल लिमिटेड और मैसर्स तमिलनाडु पेट्रोकेमिकल लिमिटेड द्वारा समुद्र में किये जा रहे प्रदूषण पर कोर्ट के सामने अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत करनी थी|

इससे पहले 8 फरवरी को एनजीटी ने इस मामले पर एक संयुक्त जांच समिति के गठन का निर्देश दिया था| जिसमें कमेटी को इन यूनिट्स का निरिक्षण करना था| जिससे प्रदूषण की सही स्थिति का पता लगाया जा सके| इसके साथ ही समिति को यह भी देखना था कि क्या यह उद्योग तमिलनाडु प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड द्वारा निर्धारित मानकों को पूरा कर रहे हैं| साथ ही यह भी देखना था कि क्या समुद्रों में जो प्रदूषित जल बहाया जा रहा है वो भी तय मानकों के अंतर्गत है| इसके साथ ही क्या यह उद्योग प्रदूषण की रोकथाम और प्रबंधन पर काम कर रहे हैं| साथ ही दूषित जल का समुद्र पर क्या प्रभाव पड़ रहा है| उसकी भी जांच करनी थी|

इस मामले में संयुक्त जांच समिति ने 18 मई को अंतरिम रिपोर्ट प्रस्तुत की थी| जिसमें एनजीटी को सूचित किया गया था कि राष्ट्रीय समुद्री प्रौद्योगिकी संस्थान (एनआईओटी) द्वारा एन्नोर तट के पास समुद्र से नमूनों को एकत्र किया गया था| इसके साथ ही एन्नोर क्रीक के मुहाने पर अतिरिक्त नमूने एकत्र किए गए हैं| जिससे यह जाना जा सके की इस क्रीक से होने वाले प्रदूषण से समुद्र पर कोई असर तो नहीं पड़ रहा| प्रदूषित जल के असर को समझने के लिए समुद्रतल से कुल 48 नमूने लिए गए हैं| जबकि तलछट के भी 14 सैम्पल्स लिए गए हैं|

लेकिन जिस तरह कोविड-19 की वजह से लॉकडाउन हो गया था| उसकी वजह से जांच की रिपोर्ट मिलने में देरी हो रही थी| इसकी वजह को ध्यान में रखकर कोर्ट ने समिति को दो महीनों का अतिरिक्त समय दिया है|


तिहुरा नाले के प्रदूषण पर उत्तर प्रदेश प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड ने पेपर उद्योग पर लगाया जुर्माना

13 जून 2020 को यश पक्का लिमिटेड ने उत्तर प्रदेश प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड द्वारा लगाए जुर्माने के आदेश पर अपनी रिपोर्ट दायर कर दी है| यश पक्का लिमिटेड को इससे पहले मैसर्स यश पेपर्स लिमिटेड के नाम से जाना जाता था| गौरतलब है कि उत्तर प्रदेश प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड अयोध्या में सरयू नदी में मिलने वाले तिहुरा नाले को प्रदूषित करने पर इस उद्योग पर जुर्माना लगाया था|

इंडस्ट्री ने अपनी रिपोर्ट में कहा है कि उत्तर प्रदेश प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (यूपीपीसीबी) ने जो 40 लाख रुपए का जुर्माना लगाया है वो अनुचित है| क्योंकि प्रदूषण के लिए उद्योग जिम्मेदार नहीं है| 6 सितम्बर 2019 को जारी जांच रिपोर्ट से यह स्पष्ट हो जाता है कि किसानों द्वारा नाले पर किये अतिक्रमण के कारण नाले का प्रवाह बाधित हो गया था| जिस कारण प्रदूषण फैला था| 

इसके साथ ही इंडस्ट्री ने यह भी आरोप लगाया है कि कानून के तहत यूपीपीसीबी के पास पर्यावरण सम्बन्धी नुकसानों की भरपाई के लिए जुर्माना लगाने का अधिकार और शक्ति नहीं है| इसके केवल नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल द्वारा ही लगाया जा सकता है|

इसके साथ ही उद्योग ने यह भी कहा है कि उसने प्रदूषण को रोकने के लिए तिहुरा नाले को साफ करवाया था और 1 जनवरी 2020 को इस बाबत एक रिपोर्ट भी जमा कराई थी| जिसके आधार पर यूपीपीसीबी द्वारा गठित संयुक्त जांच समिति ने इसका निरिक्षण भी किया था| 


उत्तर प्रदेश जल निगम ने एसटीपी / सीईटीपी के निर्माण पर एनजीटी को सौंपी अपनी रिपोर्ट

15 जून 2020 को उत्तर प्रदेश जल निगम ने एसटीपी / सीईटीपी के निर्माण पर अपनी रिपोर्ट एनजीटी को सौंप दी है| गौरतलब है कि गंगा में हो रहे प्रदूषण को रोकने के लिए एसटीपी / सीईटीपी की स्थापना जिला संत कबीर नगर और गोरखपुर में की जानी थी|

यह मामला गोरखपुर में रामगढ़ झील, आमी नदी, राप्ती नदी और रोहणी नदी के प्रदूषण से जुड़ा हुआ है। यह सभी नदियां घाघरा नदी की सहायक नदिया हैं| आगे जाकर घाघरा नदी गंगा की सहायक नदी बन जाती है| रिपोर्ट के अनुसार 9 प्रमुख नाले बिना शोधन के ही राप्ती नदी में मिल जाते हैं| इनमें से 8 प्रमुख नालों पर नमामि गंगे परियोजना (चरण- I) के तहत रोकने, मार्ग में परिवर्तन और साफ करने के लिए चयनित किया गया है| जिसपर करीब 240.00 करोड़ रुपए का खर्च आएगा|

बिना उपचार के राप्ती नदी में गिरने वाले एक अन्य प्रमुख नाले से संबंधित जलग्रहण क्षेत्र को गोरखपुर-लखनऊ फोर लेन सड़क द्वारा अधिग्रहित कर लिया गया था| इसलिए नमामि गंगे योजना के तहत इसके लिए एक अलग परियोजना (चरण- II) में अगस्त 2020 तक तैयार और प्रस्तुत की जाएगी।

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