कैसे होगा सतत विकास का लक्ष्य हासिल जब हर दिन हो रही है 6,575 नवजातों की मौत

2020 के दौरान दुनिया भर में करीब 50 लाख बच्चे अपना पांचवा जन्मदिन नहीं देख पाए थे, जिनमें 24 लाख नवजात भी शामिल थे

By Lalit Maurya

On: Tuesday 21 December 2021
 

दुनिया भर में हर रोज 6,575 से ज्यादा नवजातों की मौत हो रही है। ऐसे में बड़ा सवाल यही है कि कैसे 2030 तक दुनिया एसडीजी 3.2 के लक्ष्य को हासिल कर पाएगी। संयुक्त राष्ट्र द्वारा हाल ही में जारी रिपोर्ट को देखकर तो ऐसा नहीं लगता। लेवल्स एंड ट्रेंड इन चाइल्ड मोर्टेलिटी नामक इस रिपोर्ट के हवाले से पता चला है कि 2020 के दौरान दुनिया भर में करीब 50 लाख बच्चे अपना पांचवा जन्मदिन नहीं देख पाए थे, जिनमें 24 लाख नवजात भी शामिल थे।

इतना ही नहीं 2020 में 5 से 24 वर्ष के 22 लाख बच्चों और युवाओं की मौत असमय हो गई थी, जिनमें से करीब 43 फीसदी किशोर थे। यदि रिपोर्ट में सामने आए आंकड़ों को देखें तो 2030 तक दुनिया के 50 से भी ज्यादा देश पांच वर्ष से कम आयु के बच्चों की मृत्यु दर में कमी लाने के अपने लक्ष्य को हासिल नहीं कर पाएंगे। वहीं 60 से भी ज्यादा देशों ने नवजातों की मृत्युदर में कमी लाने के लिए जरुरी तत्काल कदम न उठाएं तो वो अपने उस लक्ष्य को हासिल करने से चूक जाएंगे।      

गौरतलब है कि सतत विकास के लक्ष्य (एसडीजी) 3.2 के तहत 2030 तक दुनिया भर में 5 साल या उससे कम उम्र के नवजात शिशुओं और बच्चों की होने वाली मृत्यु दर में कमी लाना था। इस लक्ष्य के तहत जहां नवजात शिशुओं की मृत्यु दर को प्रति हजार जीवित जन्मे बच्चों में 12 पर लाना था, जबकि पांच वर्ष या उससे कम उम्र के बच्चों की मृत्युदर को प्रति हजार 25 पर सीमित करना था।  

भारत में पिछले तीन दशकों के दौरान स्थिति में काफी सुधार आया है, जहां 2020 में पांच वर्ष या उससे कम उम्र के बच्चों की मृत्युदर 32.6 प्रति हजार दर्ज की गई थी, जबकि 1990 में 126.2 प्रति हजार रिकॉर्ड की गई थी। वहीं नवजातों की मृत्युदर 1990 में 57.4 थी, जो 2020 में घटकर  20.3 पर पहुंच गई थी।     

आंकड़ों की कमी और उनकी गुणवत्ता भी है बड़ी समस्या

रिपोर्ट में यह भी सामने आया है कि दुनिया के अधिकांश देशों, विशेष तौर पर आर्थिक रूप से कमजोर देशों में बच्चे, किशोर और युवाओं के मृत्युदर सम्बन्धी नवीन और विश्वसनीय आंकड़ें उपलब्ध नहीं हैं, जोकि अपने आप में एक बड़ी समस्या है। इस समस्या को कोविड-19 महामारी ने और बढ़ा दिया है, जो आंकड़ों की उपलब्धता और उसकी गुणवत्ता में सुधार के लिए अतिरिक्त चुनौतियों पैदा कर रही है।

देखा जाए तो दुनिया के केवल 60 देशों मुख्य रूप से उच्च आय वाले देशों में बेहतर नागरिक पंजीकरण और सांख्यिकी प्रणाली मौजूद है जिसकी मदद से मृत्युदर सम्बन्धी उच्च गुणवत्ता वाले आंकड़ें हासिल किए जा सकते हैं। वहीं निम्न और मध्यम आय वाले देशों में अभी भी विशाल डेटा अंतराल बना हुआ है। जहां 135 में से करीब दो-तिहाई यानी 97 देशों में पिछले तीन वर्षों के मृत्युदर सम्बन्धी विश्वसनीय आंकड़ें उपलब्ध नहीं हैं। जिस पर गंभीरता से गौर किए जाने की जरुरत है। 

बड़े दुःख की बात है कि आज एक तरफ जहां हम विकास की इतनी बड़ी-बड़ी बाते कर रहे हैं, वहीं दूसरी तरफ हम अपनी आने वाली पीढ़ी को भी बचाने में नाकाम रह रहे हैं। दुःख तब होता है जब इन मौतों को टाला जा सकता था, पर इसके बावजूद हम उन बच्चों को महज इसलिए बचा पाने में असमर्थ रहे थे क्योंकि हमने उनके स्वास्थ्य पर पूरा ध्यान नहीं दिया था, और उनके लिए जरुरी सेवाएं उपलब्ध नहीं करा पाए थे। 

प्रयास से बचाई जा सकती हैं 80 लाख बच्चों की जिंदगियां

रिपोर्ट के मुताबिक यदि इस समस्या पर अभी गंभीरता से ध्यान न दिया गया और वर्तमान रुझान जारी रहते हैं तो 2030 तक पांच वर्ष से कम आयु के 4.8 करोड़ से ज्यादा बच्चों की मृत्यु हो जाएगी, जिनमें से आधे नवजात होंगें। इनमें से आधे से अधिक करीब 57 फीसदी मौतें अफ्रीका में होंगी, जिनकी कुल संख्या करीब 2.8 करोड़ होगी। वहीं अन्य 25 फीसदी मौतें दक्षिणी एशिया में सामने आएंगी, जोकि करीब 1.2 करोड़ के आसपास होंगी।

वहीं यदि 54 देश जोकि सतत विकास के लक्ष्य से भटक चुके हैं वो इस लक्ष्य को हासिल कर लेते हैं तो उसकी मदद से 2021 से 2030 के बीच पांच वर्ष से कम उम्र के करीब 80 लाख बच्चों की जिंदगियां बचाई जा सकती हैं। साथ ही इसकी मदद से 2030 तक हर साल होने वाली पांच वर्ष से कम आयु के बच्चों की मृत्यु को करीब आधा (25 लाख) किया जा सकता है। 

स्थिति में सुधार के लिए विश्व बैंक से जुड़े फेंग झाओ ने देशों के लिए बच्चों और महिलाओं से जुड़ी स्वास्थ्य सेवाओं की गुणवत्ता में सुधार, पोषण और अन्य जीवन रक्षक उपायों में निवेश करने की जरुरत पर बल दिया है। जिससे बाल मृत्यु दर में कटौती की जा सके और एसडीजी के लक्ष्यों को हासिल किया जा सके।

इस बारे में डब्ल्यूएचओ से जुड़े डॉ अंशु बनर्जी का कहना है कि सभी बच्चों और किशोरों के लिए स्वास्थ्य सम्बन्धी बेहतर सेवाओं और सुविधाओं के लिए काफी प्रयास करने की जरुरत है। साथ ही उनके स्वास्थ्य से जुड़े आंकड़ों को एकत्र करना भी काफी जरुरी है, जिससे यह सुनिश्चित किया जा सके की उनकी शारीरिक और भावनात्मक जरूरतों को जीवन भर पूरा किया जा रहा है। उनके अनुसार बच्चों पर किया गया निवेश उन महत्वपूर्ण चीजों में से एक है जिससे एक समाज बेहतर भविष्य का निर्माण कर सकता है। 

Subscribe to our daily hindi newsletter