कोरोना से भी बड़ी महामारी बन सकता है मानसिक स्वास्थ्य

यूनिसेफ के मुताबिक, कोविड-19 जैसी वैश्विक महामारी ने बच्चों, युवाओं के मानसिक स्वास्थ्य को बहुत बुरी तरह प्रभावित किया है

By Shashi Shekhar

On: Wednesday 13 October 2021
 
Photo: Pixabay

इंटरनेशनल जर्नल ऑफ़ सोशल साइक्याट्री में पिछले साल एक रिसर्च पेपर प्रकाशित हुआ था। शांकेय वर्मा-अदिति मिश्रा ने अपने इस रिसर्च में बताया था कि कोरोना ने आम भारतीयों के मानसिक स्वास्थ्य को बहुत गहरे तक नुकसान पहुंचाया है। 354 प्रतिभागियों में से तकरीबन 25 फीसदी मानसिक स्वास्थ्य समस्या (डीप्रेशन, तनाव) से ग्रस्त पाए गए।

वर्मा ने सुझाव दिया था कि इस मसले पर और बड़े पैमाने पर स्टडी की जरूरत है और साथ ही सरकार व मेंटल हेल्थ एक्सपर्ट को इस पर तत्काल ध्यान देना चाहिए। इस रिपोर्ट को आए एक साल हो गए, लेकिन सरकार की तरफ से मानसिक स्वास्थ्य को ले कर कोई बड़ी पहली हुई हो, आम लोगों को कोई जानकारी नहीं है। 

स्टेट ऑफ द वर्ल्ड्स चिल्ड्रन-2021

इस बीच, यूनिसेफ की भी रिपोर्ट आ गयी है। यह रिपोर्ट समस्या के वृहद स्तर को तो बताती ही है, साथ ही इसका भी संकेत है कि अगर अभी भी सरकारी हस्तक्षेप शुरू नहीं हुआ तो परिणाम बहुत ही गंभीर होने वाले है।

यूनिसेफ की रिपोर्ट “स्टेट ऑफ द वर्ल्ड्स चिल्ड्रन-2021 ऑन माई माइंड : प्रमोटिंग, प्रोटेक्टिंग एंड केयरिंग फॉर चिल्ड्रन्स मेंटल हेल्थ'’ काफी चौंकाने वाली है।

यूनिसेफ के मुताबिक, कोविड-19 जैसी वैश्विक महामारी ने बच्चों, युवाओं के मानसिक स्वास्थ्य को बहुत बुरी तरह प्रभावित किया है। भारत के 15-24 साल के बच्चों में सिर्फ 41 फीसदी ने माना कि मानसिक स्वास्थ्य समस्या में उन्हें किसी की मदद लेना पसंद है, जबकि दूसरे कुछ देशों के लिए यह आकड़ा करीब 83 फीसदी है।

यूनिसेफ ने 2021 में 21 देशों के 20 हजार बच्चों और युवाओं पर यह सर्वे किया और पाया कि भारत में युवा मानसिक तनाव के दौरान किसी की मदद नहीं लेना चाहते हैं। यह रिपोर्ट बताती है की भारत में 15 से 24 साल के बच्चों में सात में से एक बच्चा खुद को निराश महसूस करता है। यानी लगभग 14 फीसदी बच्चें इस वक्त डिप्रेशन की गिरफ्त में है।

रिपोर्ट के अनुसार, दुनिया भर में 10 से 19 वर्ष की आयु के कम से कम 13% बच्चे मानसिक-स्वास्थ्य विकार के शिकार है। इससे पता चलता है कि किशोर मानसिक स्वास्थ्य अत्यधिक जटिल मुद्दा है, जिस पर बहुत कम काम किया गया है।

युवाओं (10-19 आयु वर्ग के) में चिंता और अवसाद के 40% से अधिक मामले हैं। यूनिसेफ रिपोर्ट बताता है कि दुनिया भर में, किशोरों (15-19 वर्ष की आयु) में आत्महत्या मृत्यु का चौथा सबसे आम कारण है (सड़क पर चोट लगने, तपेदिक और हिंसा के बाद)।  पूर्वी यूरोप और मध्य एशिया में, आत्महत्या इस आयु वर्ग के युवाओं की मृत्यु का प्रमुख कारण है, जबकि पश्चिमी यूरोप और उत्तरी अमेरिका में यह दूसरा सबसे बड़ा कारण है।

नए इलाज की खोज 

दुनिया भर में, चिंता और अवसाद का सबसे आम उपचारसेरोटोनिन क्लास की एक ड्रग है, जो दिमाग में सेरोटोनिन स्तर को बढ़ाता है। लेकिन इसकी प्रभावकारिता सामान्य होती है और इसके साइड इफेक्ट भी है।

इस वजह से वैज्ञानिक युवा अवसाद और चिंता को दूर करने के लिए नई तरीके/दवाइयां तलाश रहे है। शोधकर्ताओं ने पाया है कि युवा लोगों के संज्ञानात्मक और पारस्परिक कौशल में सुधार करने से कुछ स्थितियों में चिंता और अवसाद को रोका जा सकता है।

कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय के मार्क बेनेट कहते हैं, किसी व्यक्ति को नकारात्मक विचारों और भावनाओं से अलग रहने के लिए प्रोत्साहित करना, अवसाद और चिंता को रोकने और कम करने में मदद कर सकता है। टोरंटो के कैंपबेल फैमिली मेंटल हेल्थ इंस्टीट्यूट में अलेक्जेंडर डारोस और उनके सहयोगियों ने 90 रैंडमाइजड कंट्रोल ट्रायल की एनालिसिस की।

उन्होंने पाया कि युवाओं को उनके भावना-नियमन (इमोशन रेगुलेशन) कौशल में सुधार करने में मदद दी जाए तो उन्हें चिंता और अवसाद से बेहतर तरीके से निपटने में सक्षम बनाया जा सकता है। बहरहाल, भारत में भी क्या इस तरह के रिसर्च/उपाय तलाशे जा रहे हैं, कहना मुश्किल है। 

महामारी और मानसिक स्वास्थ्य

साल 2020, कोरोना महामारी की शुरुआत में ही लैंसेंट साइकियाट्री जर्नल में मानसिक स्वास्थ्य को लेकर एक रिपोर्ट छपी थी। साइकियाट्रिस्ट प्रोफेसर इड बुलमोर और उनकी टीम ने इंग्लैंड में कोविड-19 संक्रमण के बीच एक सर्वे के आधार पर इस रिपोर्ट को तैयार किया था।

बुलमोर ने इसमें बताया था कि सबसे महत्वपूर्ण निष्कर्ष यही है कि अभी और भविष्य में भी कोरोना महामारी का मानसिक स्वास्थ्य पर बड़ा और विपरीत प्रभाव पड़ सकता है।

यूनिवर्सिटी ऑफ ग्लास्गो के प्रोफेसर रोरी ऑ’कॉनर ने भी ये निष्कर्ष दिया था कि सार्स महामारी के बाद 65 साल से ऊपर के लोगों में आत्महत्या की दर 30 प्रतिशत से भी अधिक बढ़ गई थी।

बुलमोर की टीम ने सुझाव दिया था कि उन नीतियों के प्रभाव की भी समीक्षा करने की जरूरत है जो कोरोना महामारी को प्रबन्धित करने के लिए बनाई गई हैं। मसलन, बेरोजगारी, वित्तीय सुरक्षा और गरीबी ऐसे पहलू हैं, जो लोगों की मानसिक स्वास्थ्य दशा को बहुत हद तक प्रभावित करते हैं।

अमेरिका की ग्लोबल पॉलिसी थिंक टैंक रैंड कॉरपोरेशन की बिहेविरल साइंटिस्ट लीजा मेरडिथ ने आपदा की तैयारी पर काफी काम किया है। उनके मुताबिक, कोरोना महामारी की वजह से जो नाटकीय परिवर्तन आए हैं, उससे ऐसी मानसिक स्वास्थ्य समस्याएं उभरेंगी, जो लंबे समय तक लोगों को प्रभावित करेंगी।

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