राष्ट्रीय चिकित्सा आयोग के नए नियम से मेडिकल कॉलेजों में कम हों जाएंगे वैज्ञानिक शिक्षक

एनएमसी के नए नियम के चलते कई शिक्षक वैज्ञानिक जो मेडिकल कॉलेज में अध्यापन का काम कर रहे हैं प्रभावित होंगे। इस निर्णय को शिक्षक दल ने चुनौती दी है। 

By Vivek Mishra

On: Thursday 24 December 2020
 

मेडिकल कॉलेजों में चिकित्सा विज्ञान से पढ़ाई करके एमएससी या पीएचडी की डिग्री हासिल करके वैज्ञानिक शिक्षक के तौर पर अध्यापन करने वालों पर  राष्ट्रीय चिकित्सा आयोग (एनएमसी) के नए नियम से गाज गिरने वाली है। दरअसल ऐसे वैज्ञानिक शिक्षकों के फीसदी को मेडिकल कॉलेजों में कम करने का निर्णय लिया गया है। मेडिकल कॉलेज संकायों में इनकी संख्या 30 फीसदी से घटाकर 15 फीसदी तक करने की गाइडलाइन राष्ट्रीय चिकित्सा आयोग (एनएमसी) के जरिए ली गई है। 
 
वर्तमान में देशभर में मेडिकल कॉलेजों में चार हजार से अधिक "गैर-चिकित्सा" शिक्षक कार्यरत हैं, जिनमें से कई नए आरएमसी दिशानिर्देशों से प्रभावित होंगे। इस बीच राष्ट्रीय एमएससी मेडिकल टीचर्स एसोसिएशन (एनएमएमटीए) ने इन नियमों को चुनौती देते हुए दिल्ली उच्च न्यायालय में एक रिट याचिका दायर की है, जो 17 फरवरी, 2021 को अगली सुनवाई करेगी।
 
दरअसल मेडिकल एमएसससी का पुराना कोर्स कंपलीट करने के बाद जो वैज्ञानिक  मेडिकल कॉलेज में पढ़ाना चाहते हैं उनके लिए भी अवसर हैं लेकिन अब इन पर नई गाइडलाइन नकेल कस रही है। जबकि मेडिकल एमएससी या पीएचडी करने के बाद नेट की परीक्षा में भी ऐसा कोई विषय नहीं मिलता है।  
 
एनएमएमटीए ने इस मामले को  ने शिक्षा और स्वास्थ्य मंत्रालय के सामने भी उठाया है। दरअसल एनएमएमटीए की ओर से सुधार की मांग उठाते हुए कहा था कि हाल ही मे ंराष्ट्रीय चिकित्सा आयोग ने चुपचाप मेडिकल कॉलेज में गैर चिकित्सा क्षेत्र के वैज्ञानिक शिक्षकों की फीसदी को कम कर दिया है। 
 
एसोसिएशन की तरफ से अध्यक्ष श्रीधर राव और महासचिव अर्जुन मैत्र ने नीति आयोग और स्वास्थ्य सचिव से मुलाकात कर समाधान का रास्ता निकालने की मांग की। वहीं, मंत्रालय की ओर से इस मामले को देखने का आश्वासन भी दिया गया है। 
 
डॉ राव ने कहा कि मेडिकल कॉलेजों में एमडी कोर्स की तर्ज पर चलाए जा रहे मेडिकल एमएससी कोर्स में सुधार की जरूरत है। एमसीआई ने चुपचाप कोर्स पर लगने वाले विनियमन को हटा दिया है। अब यह कोर्स निजी हेल्थ यूनिवर्सिटी के जरिए संचालित हो रहे हैं।
 
वहीं, रेग्युलेटिंग साइंटिफिक काउंसिल की गैरमौजूदगी में इन पाठ्यक्रमों में प्रवेश के मोड, पाठ्यक्रमों की अवधि, शोध प्रबंध आदि के संबंध में काफी भिन्नताएं हैं। इसके अलावा, पाठ्यक्रम को बदलते समय के साथ उन्नत करने की भी आवश्यकता है। हालांकि यूजीसी इन पाठ्यक्रमों को मान्यता देता है।  ये पाठ्यक्रम मेडिकल कॉलेजों के दायरे में आते हैं। एसोसिएशन का कहना है कि वे इन पाठ्यक्रमों के सुधार और नियम चाहते हैं, केवल मेडिकल कॉलेजों को उन्हें चलाने की अनुमति दी जानी चाहिए ।
 
अर्जुन मैत्र ने कहा कि पीएचडी के इच्छुक लोग जो पीएचडी के लिए नेट परीक्षा में शामिल होना चाहते हैं, उन्हें लाइफ साइंसेज पर परीक्षा देने के लिए मजबूर किया जाता है क्योंकि मेडिकल एमएससी विषयों का अध्ययन करने वालों के लिए कोई अलग विषय उपलब्ध नहीं है।
 
सामान्य एमएससी और मेडिकल एमएससी भी अलग हैं क्योंकि पूर्व में मुख्य जीवन विज्ञान है और बाद में चिकित्सा क्षेत्र के अनुरूप है। यह काफी मुसीबत भरा है क्योंकि मेडिकल एमएससी के लिए नेट का विषय उपलब्ध ही नहीं है।  
 
डॉ राव ने कहा कि पिछले एमसीआई मानदंडों के अनुसार, गैर-चिकित्सकीय ​​विषयों में संकाय के 30 फीसदी (50 फीसदी जैव रसायन) में मेडिकल एमएससी अथवा पीएचडी योग्यता वाले वैज्ञानिक हो सकते हैं। नेशनल मेडिकल कमीशन (एनएमसी) ने यू टर्न लेते हुए वैज्ञानिक शिक्षकों के फीसदी को घटाकर एमबीबीएस वालों को वरदान दिया है लेकिन  हजारो वैज्ञानिक शिक्षाओं को कैरियर को नजरअंदार कर दिया है। स्वास्थ्य मंत्रालय को इस ओर ध्यान देते हुए अपनी नीतियों और दिशा प्रदान करना चाहिए। 

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