उत्तर प्रदेश में जापानी बुखार के मामलों में दर्ज की गई उल्लेखनीय गिरावट: समिति रिपोर्ट

2010 से 2020 के बीच यूपी में एक्यूट इंसेफेलाइटिस सिंड्रोम के कुल 31,830 मामले सामने आए हैं जबकि 4,639 लोगों की इसकी वजह से मौत हुई है

By Susan Chacko, Lalit Maurya

On: Tuesday 28 June 2022
 

उत्तर प्रदेश में एक्यूट इंसेफेलाइटिस सिंड्रोम (एईएस), जिसे लोग चमकी बुखार के नाम से भी जानते हैं, उसमें जापानी इंसेफेलाइटिस वायरस (जेई) के मामलों की संख्या में उल्लेखनीय कमी देखी गई है। यह जानकारी उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा गठित समिति रिपोर्ट में सामने आई है।

हालांकि देखा जाए तो यूपी में 2017 से 2021 के बीच कुल एक्यूट इंसेफेलाइटिस सिंड्रोम यानी एईएस मामलों में से स्क्रब टाइफस मामलों का अनुपात 32 फीसदी से बढ़कर 49 फीसदी पर पहुंच गया है। वहीं कुल एईएस मामलों में जापानी इंसेफेलाइटिस (जेई) मामलों का अनुपात 18 से 11 फीसदी तक कम हो गया है। इसी तरह एईएस के लिए उच्च जोखिम के रूप में चिह्नित गांवों की संख्या भी 2018 में 617 से घटकर 2022 में 208 रह गई है।

यह रिपोर्ट मीरा शुक्ला बनाम नगर निगम, गोरखपुर एवं अन्य के मामले में कोर्ट में सबमिट की गई है। गौरतलब है कि नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) की नई दिल्ली स्थित प्रिंसिपल बेंच के आदेश पर उत्तर प्रदेश सरकार ने इस मामले की जांच के लिए एक उच्च स्तरीय तकनीकी समिति का गठन किया था। इस समिति की अध्यक्षता निमहंस बेंगलुरु के न्यूरोवायरोलॉजिस्ट ने की थी, जबकि समिति में प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड, भारतीय चिकित्सा अनुसंधान परिषद, पशुपालन और स्वास्थ्य और परिवार कल्याण विभाग के सदस्य शामिल थे।

टीम ने इस बीमारी से बचाव के लिए क्या उपाय किए जा रहें हैं और उनकी स्थिति का जायजा लिया था। देखा जाए तो 1978 से उत्तर प्रदेश के गोरखपुर में एक्यूट इंसेफेलाइटिस सिंड्रोम का प्रकोप बताया जा रहा है। समिति के सदस्यों ने 18 और 19 मई 2022 को गोरखपुर में बैठक की और स्थिति का आकलन करने के लिए चिकित्सा केंद्रों का दौरा भी किया था। जिसमें पता चला है कि अधिकांश एईएस प्रभावित जिले राज्य के पूर्वी हिस्से में स्थित हैं।

देखा जाए तो 2010 से 2020 के बीच यूपी में एक्यूट इंसेफेलाइटिस सिंड्रोम के कुल 31,830 मामले सामने आए हैं जबकि 4639 लोगों की इसकी वजह से मौत (सीएफआर -14.6 प्रतिशत) हुई है। इनमें से 3,334 मामले जापानी इंसेफेलाइटिस वायरस (जेईवी) के थे, जिसकी वजह से 476 मौतें (सीएफआर 14.3 प्रतिशत)  हुई हैं।

पर्यावरण मानकों का पालन  कर रही थी मुरादाबाद की त्रिवेणी चीनी मिल

केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड और उत्तर प्रदेश प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड द्वारा तैयार एक संयुक्त रिपोर्ट में कहा गया है कि उत्तर प्रदेश के मुरादाबाद में त्रिवेणी इंजीनियरिंग एंड इंडस्ट्रीज लिमिटेड पर्यावरण मानदंडों का पालन कर रही थी। गौरतलब है कि एनजीटी ने त्रिवेणी रानीनंगल चीनी मिल के संचालन से उत्पन्न हो रही फ्लाई ऐश और खोई के कारण पैदा हो रहे वायु प्रदूषण के आरोपों की जांच करने का आदेश समिति को दिया था। 

अपनी रिपोर्ट में समिति ने कोर्ट को जानकारी दी है कि त्रिवेणी इंजीनियरिंग एंड इंडस्ट्रीज (रानीनंगल) के पास हानिकारक कचरे के भंडारण और निपटान के लिए 18 सितंबर, 2025 तक खतरनाक कचरे के भंडारण और निपटान के लिए हानिकारक और अन्य अपशिष्ट (प्रबंधन और पारगमन गतिविधि) नियम, 2016 के प्रावधानों के तहत उद्योग को चलाने का वैध लाइसेंस है।

इतना ही नहीं समिति ने अपनी रिपोर्ट में लिखा है कि पार्टिकुलेट मैटर के लिए सामान्य स्टैक के वायु गुणवत्ता निगरानी परिणाम से पता चलता है कि इकाई वायु प्रदूषण नियमों का पालन कर रही है। वायुमंडल में फ्लाई ऐश को छोड़ने से पहले सभी सावधानियों के साथ बॉयलर राख को अलग से एकत्र कर रहा था। इसके साथ ही यूनिट ने बॉयलर से निकलने वाली राख और उसके निपटान का सही रिकॉर्ड रखा है।

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