लॉकडाउन के दौरान स्वास्थ्य सुविधाओं से वंचित रह गई थी स्लमों में रहने वाली दो-तिहाई किशोर बच्चियां

सर्वे में 78 फीसदी माओं ने माना कि लॉकडाउन के दौरान उनकी किशोर बच्चियों को सैनिटरी नैपकिन मिलने में कठिनाई हुई थी

By Lalit Maurya

On: Friday 04 March 2022
 

लॉकडाउन के दौरान दिल्ली, बिहार, महाराष्ट्र और तेलंगाना के शहरों में करीब 68 फीसदी किशोर बच्चियों को स्वास्थ्य और पोषण संबंधी सेवाएं और सुविधाएं नहीं मिल पाई थी। यह जानकारी 02 मार्च 2022 को सेव द चिल्ड्रन द्वारा जारी रिपोर्ट ‘वर्ल्ड ऑफ इंडियाज गर्ल्स (विंग्स) 2022’ में सामने आई है। इतना ही नहीं लॉकडाउन के बाद (नवंबर 2020 से जनवरी 2021) भी करीब 51 फीसदी से ज्यादा बच्चियों को स्वास्थ्य सुविधाओं के लिए कई चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है।

सेव द चिल्ड्रन ने अपनी इस रिपोर्ट में लॉकडाउन के दौरान (अप्रैल से जून 2020) 10 से 18 वर्ष की उम्र की किशोर बच्चियों के स्वास्थ्य, शिक्षा और विकास पर पड़ने वाले असर के बारे में जानकारी साझा की है। यह रिपोर्ट विशेषतौर पर दिल्ली, नासिक, पुणे, हैदराबाद, रंगारेड्डी, पटना और पूर्वी चम्पारण की झुग्गी बस्तियों में रहने वाली किशोरियों पर आद्यारित है।

यदि भारत की बात करें तो देश में आज भी गरीबी के बीच रह रही बच्चियों का जीवन आसान नहीं है, उन्हें स्वास्थ्य और पोषण के मामले आज भी कई चुनौतियों का सामना करना पड़ता है। ऐसा ही कुछ लॉकडाउन के दौरान भी देखें को मिला था।

सर्वे में 78 फीसदी माओं ने माना कि लॉकडाउन के दौरान उनकी किशोर बच्चियों को सैनिटरी नैपकिन मिलने में कठिनाई हुई थी, जिसके लिए उन्होंने सरकारी सप्लाई, पैसे की कमी और दुकानों के बंद होने को जिम्मेवार माना है।      

बच्चियों के लिए आज भी आसान नहीं शिक्षा की डगर

यदि शिक्षा से जुड़े आंकड़ों को देखें तो स्वास्थ्य की तरह ही लॉकडाउन के दौरान बच्चियों की शिक्षा पर भी व्यापक असर पड़ा था। रिपोर्ट के मुताबिक इस दौरान स्लम में रहने वाली करीब  67 फीसदी किशोर बच्चियां ऑनलाइन क्लासेज नहीं कर पाई थी।

शिक्षा संस्थानों के बंद होने के कारण 32 करोड़ बच्चे प्रभावित हुए थे जिनमें से अधिकांश (करीब 86 फीसदी) प्राथमिक और माध्यमिक स्तर पर थे। सर्वे में शामिल 73 फीसदी माताओं ने माना की की लॉकडाउन ने उनकी बच्चियों की पढाई पर बुरा असर डाला है। वहीं इस दौरान 42 फीसदी बच्चियों की स्कूल ने कोई सुध नहीं ली थी।

साथ ही करीब 23 फीसदी बच्चियों को किसी तरह की शिक्षण सामग्री नहीं मिल पाई थी। वहीं 46 फीसद बच्चियों के पास उनकी कोर्स बुक नहीं थी, जबकि 44 फीसदी माओं का कहना था की उनकी बच्चियां परेशान और चिंतित थी।    

बच्चियों के लिए अभी भी बड़ी चुनौती है बाल विवाह

बाल विवाह एक ऐसी कुरीति है जिसकी रोकथाम पर देश को हाल के कुछ वर्षों में काफी सफलता मिली है। गौरतलब है कि 1970 में जहां इसका प्रसार 74 फीसदी था वो 2015 में घटकर 27 फीसदी रह गया था। अनुमान है कि जहां 1992-93 में 1.23 करोड़ बच्चियों का विवाह 18 वर्ष से पहले कर दिया गया था, वहीं 2015-16 में यह आंकड़ा घटकर 1.07 करोड़ पर आ गया था। लेकिन महामारी और लॉकडाउन के इस दौर ने एक बार इसको बुरी तरह प्रभावित किया है। गरीबी, पारिवारिक आय में कमी और नौकरियों का छूटना कुछ ऐसी वजह थी जिसने बाल विवाह को बढ़ावा दिया था। 

सर्वे के मुताबिक 14 फीसदी ने माना की महामारी ने बच्चियों के जल्द विवाह के खतरे को और बढ़ा दिया है। यदि लड़कों की तुलना में देखें तो बच्चियों के जल्द विवाह का खतरा ज्यादा रहता है। इस बारे में 52.4 फीसदी माओं ने माना की महामारी के दौरान लड़कों की तुलना में बच्चियों के जल्द विवाह की सम्भावना ज्यादा थी।

आज भी लोगों में जागरूकता और समझ की कमी साफ देखी जा सकती है जब 10 फीसदी माओं का विश्वास है कि बच्चियों के विवाह की सही उम्र 18 वर्ष से पहले होती है। वहीं 92 फीसदी माताओं ने इस बात को स्वीकार किया कि महामारी के दौरान उन्हें इस विषय पर जागरूक नहीं किया गया। 

 खेले बिना कैसे होगा विकास

लॉकडाउन के दौरान स्कूलों के बंद होने और बाहर आने जाने पर लगाए प्रतिबन्ध ने बच्चों के खेलकूद सम्बन्धी गतिविधियों को भी प्रभावित किया था। रिपोर्ट के मुताबिक इसका किशोर बच्चियों पर भी व्यापक प्रभाव पड़ा था। इस बारे में 10 में से 9 माओं का मानना है कि 10 से 18 वर्ष की उम्र में बच्चियों के लिए खेलकूद और मनोरजन बहुत जरुरी है।

स्कूलों के बंद होने के कारण बच्चियों पर इसका व्यापक असर पड़ा था, क्योंकि वो स्कूल में अपनी सहपाठियों के साथ इसमें शामिल होती हैं। 

सर्वे में शामिल 50 फीसदी बच्चियों का कहना था कि उन्होंने स्कूल आने जाने की कमी महसूस की थी। महिलाओं का कहना था कि उनकी बच्चियों का बाहर खेलने का समय घट गया था। लॉकडाउन के दौरान करीब 56 फीसदी बच्चियों को बाहर खेलने और मनोरजन का समय नहीं मिल पाया था।

वहीं 51 फीसदी का मानना था कि वो महामारी के दौरान पहले की तुलना में कहीं ज्यादा टीवी देख रही थी। 43 फीसदी ने घर के काम में इजाफे की बात कही जबकि 39 फीसदी का कहना था कि वो महामारी से पहले की तुलना में कहीं ज्यादा समय मोबाइल पर बिता रही थी।

ऐसे में रिपोर्ट में इस बात की वकालत की गई है कि बच्चियों की खाद्य सुरक्षा और स्वास्थ्य पर विशेष ध्यान दिया जाए। साथ ही बच्चियों को ध्यान में रखकर योजनाएं और कार्ययोजना बनाई जाए। बाल विवाह को रोकने के लिए सामुदायिक तौर पर मॉनिटरिंग सिस्टम बनाया जाए। शिक्षा पर जोर दिया जाए। डिजिटल और रिमोट लर्निंग को भी बढ़ावा देना चाहिए। बच्चों के खेलने के लिए कहीं ज्यादा सुरक्षित स्थान और पार्कों का प्रबंध करना। उनकी स्कूल वापसी को सुनिश्चित करना।  शिक्षण सामग्री की समान पहुंच आदि पर ध्यान देने के लिए जोर दिया गया है। 

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